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...चौथाई सदी पहले दूध पीने वाले गणेश का नया अवतार फेसबुक पर
27-Aug-2023 3:37 PM
...चौथाई सदी पहले दूध पीने वाले  गणेश का नया अवतार फेसबुक पर

फेसबुक पर समझदार लोगों के लिए इन दिनों थकाने वाला सिलसिला चल रहा है। अनगिनत लोग लगातार यह पोस्ट कर रहे हैं कि उन्होंने फेसबुक को अपनी तस्वीरों या अपनी पोस्ट के इस्तेमाल का कोई हक नहीं दिया है। एक बना-बनाया ड्राफ्ट है जिसे सारे लोग एक-दूसरे के पेज से लेकर पोस्ट किए चले जा रहे हैं, और बहुत से जानकार और समझदार लोग इसे बता रहे हैं कि यह सिर्फ अफवाह है, इससे फेसबुक के साथ उनका कानूनी संबंध नहीं बदलता। लेकिन लोग हैं कि ऐसा एक नोटिस पोस्ट करके वे मान ले रहे हैं कि फेसबुक उनकी नीजता में कोई दखल नहीं दे सकता। इस पोस्ट में फेसबुक को लोगों के फोटो, वीडियो, नाम, और मोबाइल नंबर से इस्तेमाल करने से रोका जा रहा है। हड़बड़ी की एक वजह यह भी है कि झूठ फैलाने वाले ने यह भी लिखा है कि कल से फेसबुक का एक नया नियम चालू हो रहा है, इसलिए तुरंत ही ऐसा नोटिस पोस्ट करना जरूरी है। 

यह सिलसिला कई साल पहले भी चला था, और उस वक्त भी लोगों ने यह बताया था कि यह झूठ है, इससे फेसबुक के कोई भी नियम नहीं बदलते।  कई साल पहले भी ऐसे नोटिस फेसबुक पर आते रहे हैं, और 2012 से ही यह सिलसिला चल रहा है। फेसबुक का मालिकाना हक अब एक बड़ी कंपनी मेटा के तहत आ गया है, लेकिन उससे भी उसके नियम नहीं बदले हैं। दस बरस से चले आ रहे इस फर्जी नोटिस को हिन्दुस्तान के लोग हिन्दी और अंग्रेजी में लगातार पोस्ट किए जा रहे हैं, और बाकी भाषाओं में भी अगर यही हो रहा होगा तो हम उन्हें पढ़ नहीं सकते हैं। 

यह सिलसिला लोगों के धोखा खाने की क्षमता को साबित करता है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि 1995 में गणेश प्रतिमाओं के दूध पीने की अफवाह उड़ी थी, और हिन्दुस्तान के कम से कम हिन्दीभाषी इलाकों में 21 सितंबर 1995 को तमाम हिन्दू लोग लोटा-गिलास में दूध लेकर गणेश प्रतिमाओं तक पहुंचने लगे थे, और चम्मच से उन्हें दूध पिला रहे थे। कुछ दिनों के भीतर सबको यह समझ में आ गया था कि गणेश दूध नहीं पी रहे थे। लेकिन देश के लोगों की धोखा खाने की अपार क्षमता का वह एक टेस्ट था, और जनता उस पर सौ फीसदी खरी उतरी थी। हालत यह हो गई थी कि उस दिन दोपहर-शाम तक विश्व हिन्दू परिषद ने भी इस करिश्मे की घोषणा कर दी थी, और नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा, ब्रिटेन, जहां-जहां हिन्दू बसे हुए थे, वे सब गणेश प्रतिमा को दूध पिलाने पर आमादा हो गए थे। कई शहरों में मंदिरों के सामने ट्रैफिक जाम हो गया था, और देश की दुकानों से दूध खत्म हो गया था। ऐसे में यह सोच पाना आसान हो गया था कि धर्म के करिश्मे के नाम पर देश को किस तरह झोंका जा सकता है। अब अगर इसे किसी साजिश में इस्तेमाल किया जाए, तो हिन्दुस्तान के बहुत बड़े हिस्से की हिन्दू आबादी मंदिरों में पहुंची हुई थीं, और वहां से कोई अफवाह उड़ाना भी आसान हो जाता, या किसी किस्म की बीमारी का वायरस भी फैलाया जा सकता था। 

अब अगर किसी अपराधकथा के नजरिए से इस नौबत को देखा जाए तो गणेश को दूध पिलाने पर अड़े हुए लोगों की अंधविश्वासी भीड़ को जाति या धर्म की किसी दूसरी अवैज्ञानिक बात में भी उलझाया जा सकता था। कोई साम्प्रदायिक अफवाह फैलाई जा सकती थी, इतनी भीड़ के बीच कोई आतंकी हमला भी किया जा सकता था। हिन्दुस्तान में होली के मौके पर बहुत से लोग केंवाच नाम के एक पौधे की फल्लियों को कहीं बिखरा देते हैं, और उनके संपर्क में आने वाले लोगों के बदन में अंधाधुंध खुजली होने लगती है जो कि आसानी से खत्म नहीं होती। अब यह कल्पना की जाए कि दूध पिलाने वाली भीड़ पर ऐसा कोई हमला करवा दिया जाए, और उसकी तोहमत किसी दूसरे धर्म के लोगों पर जड़ दी जाए तो क्या होगा? 

फेसबुक पर ऐसे झूठ को आगे बढ़ाने वाले लोग भी हो सकता है कि किसी ऑनलाईन सर्वे का सामान बन गए हों, जिनसे कोई अंतरराष्ट्रीय एजेंसी यह नतीजा निकाल रही हो कि अफवाहों पर आसानी से कौन भरोसा करते हैं, कौन लोग अपनी तर्कशक्ति का इस्तेमाल नहीं करते हैं, और फिर ऐसे लोगों को ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से अलग-अलग तबकों मेें बांटकर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
 
इसे इस तरह समझने की जरूरत है कि जो लोग फेसबुक के नाम पर फैलाए गए एक झूठ को आसानी से मान रहे हैं, वे लोग किसी राजनीतिक या साम्प्रदायिक झूठ पर भी जल्दी भरोसा कर सकते हैं। ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस उनकी पोस्ट देखकर उन्हें, जाति, धर्म, संस्कृति, राजनीति जैसे कई तबकों में बांट सकता है, और फिर जब कोई नफरत फैलानी हो, लोगों को किसी साजिश में झोंकना हो, तो फिर सीधे ऐसे ही लोगों को एक झूठ भेजकर उन्हें सीधे जोड़ा जा सकता है क्योंकि यह बात तो दिख चुकी है कि ऐसे लोग झूठ पर भरोसा भी कर लेते हैं, और सोचे-समझे उसे आगे भी बढ़ा देते हैं।
 
आज पूरी दुनिया में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा माना जा रहा है, क्योंकि यह सोशल मीडिया पर लोगों की सोच का अध्ययन करके उनके अलग-अलग समूह बना सकता है, और उनकी राजनीतिक सोच को प्रभावित कर सकता है, चुनाव में किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में लोगों को बड़ी संख्या में मोड़ सकता है। कई देशों में इतने असर से चुनावी जीत-हार में जमीन-आसमान का फर्क पड़ सकता है। यह लिखते हुए हमारी जानकारी इस बारे में नहीं है, लेकिन यह बिल्कुल मुमकिन हो सकता है कि अमरीका और भारत जैसे बड़े देश जहां पर दसियों करोड़ लोग सोशल मीडिया पर हैं, वहां पर जनमत प्रभावित करने की ऐसी साजिशें तैयार हो चुकी हों, और उन पर अमल भी हो रहा हो। और हो सकता है कि फेसबुक को लेकर यह ताजा अफवाह वेबकूफों की शिनाख्त करने के लिए गढ़ी गई हो, और अब ऐसे लोग आगे जनमत प्रभावित करने की साजिशों में इस्तेमाल किए जाएंगे। 

ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और सोशल मीडिया के अकल्पनीय असर के इस दौर में लोगों को सावधान रहना अगर मुमकिन न भी हो तो भी उन्हें ऐसी साजिशों के बारे में मालूम होना चाहिए। इसके बिना वे एक ऐसी सरकार पा सकते हैं जो कि वे सामान्य रूप से न चाहते रहे हों।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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