आजकल
मजहबी आतंक और गृहयुद्ध से गुजरते हुए एक अरब देश यमन फौजी-आतंकी जंग में मलबा भी बना हुआ है, और पहले से गरीब चले आ रहा यह देश अब कुपोषण और भुखमरी के चलते दम तोड़ रहा है। यहां के लोग जिंदा रहने को तरस रहे हैं, और पिछले कई बरसों में कुपोषण के शिकार बच्चों की दुनिया की सबसे भयानक तस्वीरें यमन से ही आई हैं। सरकार और आतंकियों के बीच बुरा टकराव चल रहा है, और इंसानों तक अंतरराष्ट्रीय राहत भी नहीं पहुंच पा रही है। यमन दुनिया के एक सबसे कम विकसित देशों में से है, और संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यहां की तीन चौथाई आबादी को तुरंत ही मानवीय मदद की जरूरत है। इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा भूखा देश करार दिया गया है, और ऐसे देश से कोई खुश करने वाली खबर आ सकती है, यह सोचना भी थोड़ा मुश्किल है।
बीबीसी हर हफ्ते एक हैप्पी पॉड ब्रॉडकास्ट करता है जिसमें दुनिया भर की अच्छी खबरें रहती हैं। आज सुबह ऐसी ही एक अच्छी खबर यमन से निकलकर आई थी जहां पर एक स्कूली छात्र ने अपनी स्कूल की शक्ल बदलने का काम किया है। अहमद नाम के 11 बरस के इस बच्चे पर बीबीसी ने दो बरस पहले भी एक रिपोर्ट की थी, और अब फिर वह रिपोर्टर सरकारी इजाजतों को जुटाते-जुटाते किसी तरह इस बच्चे तक पहुंची जो कि टीचर के न रहने पर अपनी क्लास को पढ़ाता भी है। उसे हर चीज में खूब दिलचस्पी है, वह खूब होशियार है, वह हर चीज याद रखता है, और एक छोटी सी दिक्कत भी है कि वह पूरी तरह से अंधा है। उसका स्कूल फौजी लड़ाई से मलबा बना हुआ दिखता है, और वैसे मलबे के बीच ही इस गरीब देश के बच्चे पढ़ रहे हैं, और अहमद उन्हें पढ़ा रहा है।
बीबीसी ने पहली बार जब उस पर रिपोर्ट तैयार की, वह 9 बरस का था, और आज 11 बरस का होने के बाद भी वह उसी उत्साह से हर काम में जुटा हुआ है, उसकी बड़ी हसरतें भी हैं, वह खुद टीचर, ड्राइवर, डॉक्टर, इंजीनियर, और पायलट भी बनना चाहता है, और बड़ा होकर एक खूबसूरत लडक़ी से शादी भी करना चाहता है। लेकिन इन सबसे ऊपर वह अपने स्कूल में ब्लैकबोर्ड चाहता है, दीवारें और खिड़कियां चाहता है। पिछली रिपोर्ट देखने के बाद दुनिया के लोगों ने इस स्कूल की मदद करने के लिए हाथ बढ़ाया, और अब दो बरस बाद दान से स्कूल में एक नया बिल्डिंग-ब्लॉक बन गया है जिसमें अहमद के साथ घूमते हुए बीबीसी रिपोर्टर ने उसकी बाकी हसरतें सुनीं। उससे पूछा गया कि क्या वह अपनी तमाम हसरतें पूरी करने की उम्मीद रखता है, तो उसने हॅंसते हुए कहा- बिल्कुल, मैं इनमें से सब कुछ करूंगा, और मैं शहर की एक खूबसूरत लडक़ी से शादी करूंगा, और वह मेरे लिए बिस्किट बनाएगी। उसका कहना है कि गांव की लड़कियां अच्छे बिस्किट बनाना नहीं जानती हैं।
जब अहमद से पूछा गया कि उसने आखिरी बार कब लड़ाई के धमाके सुने थे तो वह हॅंसते हुए कहता है बीती रात-बीती रात। जन्म से अंधे अहमद का घर हथियारबंद टकराव के मोर्चे के एकदम करीब है। उसका कहना है कि गोलियों की आवाज से उन सबको डर लगता है। जब लड़ाई शुरू होती है तो अहमद को तो कुछ दिखता भी नहीं रहता है।
बहुत से लोगों को अपनी मौजूदा जिंदगी दुनिया में बड़ी खराब लगती है। लेकिन जब अशांत देशों की विपरीत परिस्थितियों में कुदरत की ऐसी मार का शिकार ऐसा बच्चा पूरे उत्साह से अपने आसपास के सब कुछ को सुधारने में लगा दिखता है, तो लगता है कि दुनिया को हौसला उसी से सीखना चाहिए। स्कूल के मलबे के बीच साथी बच्चों को पढ़ाते हुए अहमद ने जिस तरह दुनिया का ध्यान खींचा, और अपनी स्कूल को एक नई इमारत ही दिलवा दी, वह दुनिया के तमाम लोगों इससे बहुत कुछ सीखने मिल सकता है।
दुनिया भर के बच्चों और बड़ों को दुनिया के खतरे में पड़े हुए देशों, वहां की खराब हालत के बारे में भी बताने की जरूरत है ताकि वे अपनी तकलीफों को ही सब कुछ न समझें, और एक विश्व-जिम्मेदारी निभाने के बारे में भी सोचें। आज दुनिया के बहुत से देश अतिसंपन्नता के ऐसे शिकार हैं कि वहां अंधाधुंध प्रदूषण हो रहा है, सामानों की जरूरत से कई गुना खपत हो रही है, और धरती के साधन इस्तेमाल किए जा रहे हैं। ऐसे लोगों को भी दुनिया के जरूरतमंद देशों और लोगों के बारे में कुछ अधिक बताने की जरूरत है, और उनके बीच यह जिम्मेदारी पैदा करने की जरूरत है कि दुनिया के संपन्न और विपन्न लोगों के बीच फासला इतना बड़ा नहीं होना चाहिए।
ऐसे हैप्पी पॉड पर बीबीसी हर हफ्ते बहुत सी सकारात्मक खबरें सामने रखता है, और उनसे बहुत कुछ सीखने की, खुशी पाने की गुंजाइश रहती है। भूख और कुपोषण के बीच, विस्फोटों से मलबा बन चुकी स्कूल में एक छोटा बच्चा किस तरह हौसले के साथ खुश रहता है, खुशियां बिखेरता है, अपनी जिम्मेदारी से बहुत आगे बढक़र काम करता है, यह सब कुछ देखने लायक है।