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महिलाओं के खिलाफ उठने वाली उंगलियों वाले खूंखार पंजों के राज
14-Jan-2024 4:19 PM
महिलाओं के खिलाफ उठने वाली उंगलियों वाले खूंखार पंजों के राज

न सिर्फ हिन्दुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में एक तो महिलाओं को आदमियों के मुकाबले दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है, उन्हें हिकारत से देखा जाता है। पश्चिमी सभ्यता में सुनहरे बालों वाली गोरी महिलाओं को ब्लॉंड कहकर उनकी काल्पनिक बेवकूफियों के अंतहीन लतीफे बनाए जाते हैं। पूरी दुनिया में महिलाओं खराब ड्राइवर माना जाता है, यह माना जाता है कि उनकी व्यंग्य की समझ कम रहती है। सोशल मीडिया पर ऐसे लतीफे भरे रहते हैं जो कि शादीशुदा जिंदगी में मर्द की नर्क सरीखी जिंदगी, और उसके लिए जिम्मेदार उसकी बीवी की कहानी बताते हैं। यह सब कुछ इतना आम हो चुका है कि खुद महिलाएं ऐसे लतीफे बताते हुए हिचकती नहीं हैं। 

लेकिन आम महिलाओं के मुकाबले जहां कोई महिला कामकाजी हो जाती है, राजनीति या सार्वजनिक जीवन में किसी ऊंचाई पर पहुंच जाती है, वहां उसके खिलाफ और हजार किस्म की बातें होने लगती हैं। महिला का घर की दहलीज के बाहर पांव रखना उसे कई किस्म की अप्रिय चर्चाओं का सामान बना देता है। इसके बाद जैसे-जैसे उसका काम का दायरा बढ़ता है, जैसे-जैसे उसे अधिक लोगों के साथ उठना-बैठना पड़ता है, काम के सिलसिले में कहीं-कहीं जाना पड़ता है, वैसे-वैसे वह अधिक निशाने पर आते चलती हैं। उसकी हर कामयाबी के लिए उससे ऊंची जगह पर बैठे हुए किसी मर्द की मेहरबानी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है, और उस महिला की मानो आगे बढऩे, ऊपर पहुंचने, कामयाब होने की कोई क्षमता ही न हो। यहां पर भी किसी भी पेशे या कारोबार में कामयाब महिला के खिलाफ बोलने वालों में उससे कम कामयाब महिलाओं का बड़ा हिस्सा रहता है। 

अगर कोई महिला जरा सी खूबसूरत हो गई, तो उसकी हर कामयाबी को उसके रूप-रंग से जोडक़र देखा जाता है, और यह ढूंढने की कोशिश होती है कि उसके ऊपर के किस मर्द को इस रूप-रंग की मेहरबानी से जोड़ा जा सके, ताकि महिला की तरक्की को इस काल्पनिक मेहरबानी से जोड़ा जा सके। किसी संस्थान में महिला को तरक्की मिली, तो बोलचाल की आम जुबान में कहा जाता है कि बॉस के साथ सोकर आई होगी। अंग्रेजी जानने वाले लोग इसे कार्पोरेट क्लाइंबर कहते हैं, और हर तरक्की के साथ महिला के चाल-चलन को और गंदा ठहराने का सिलसिला आगे बढ़ते रहता है। एक वक्त था जब लोग यह मानकर चलते थे कि महिला घर के बाहर निकल रही है, तो फिर अब उसका बचे रहना मुमकिन नहीं होगा। 

दरअसल, किसी भी महिला का आसपास के पुरूषों से अधिक कामयाब होना तो दूर रहा, महज बराबरी का कामयाब हो जाना भी उसके चाल-चलन पर हमले का सामान बन जाता है। और तो और साहित्य जैसे पढ़े-लिखे दायरे में भी किसी लेखिका का महत्व पा जाना, या अधिक छप जाना संपादक के साथ उसके रिश्तों की सेक्सी-कल्पनाओं को पैदा कर देता है। किसी अखबार या टीवी चैनल में किसी लडक़ी या महिला को उसकी काबिलीयत से कोई मौका मिल जाना भी अपनी देह को सीढ़ी बनाकर उसके ऊपर चढऩे से जोड़ दिया जाता है, मानो उसके पास देह से अधिक कुछ न हो। 

यह पूरा सिलसिला मर्दों की असुरक्षा की भावना से उपजा हुआ रहता है जो कि किसी भी कामयाब या काबिल लडक़ी या महिला को देखकर तुरंत ही हीनभावना के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें पीढिय़ों से यही सोच विरासत में मिली है कि लड़कियों और महिलाओं को मर्दों के मातहत ही काम करना चाहिए। मनुस्मृति ने यही सिखाया है कि किस तरह लडक़ी को पहले पिता, फिर पति, और फिर पुत्र का गुलाम रहना चाहिए। बचपन से स्कूली किताब में कमल घर चल, और कमला जल भर पढऩे वाले लडक़े जब मर्द बनते हैं, तो वे कमला को पढ़ते देखकर सहम जाते हैं, और जब कमला पढ़ाई में कमल से आगे निकल जाती है, तो उसके मुकाबले अधिक पढऩा तो बड़ा मुश्किल रहता है, लेकिन उसे बदनाम करना बड़ा आसान रहता है। इसलिए मर्दों की सोच अपने-अपने देश की मनुस्मृतियों की अलग-अलग किस्मों का शिकार रहती हैं, और दुनिया का कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जो कि औरत को बराबरी का दर्जा देता हो। कोई महिला पोप नहीं बन सकती, न पादरी बन सकती, न मौलवी बन सकती, न शंकराचार्य बन सकती, न पुजारन बन सकती। और तो और देवी की प्रतिमाओं के कपड़े बदलते हुए बाहर पर्दा टांगकर भीतर यह काम पुरूष पुजारी ही करते हैं, ऐसे काम के लिए भी किसी महिला को मौका नहीं मिलता कि वह देवी के मंदिर में पुजारन हो जाए। इसलिए धर्म ने पूरी दुनिया में हजारों बरसों से औरतों को नीचा दिखाने का जो सिलसिला चला रखा है, तमाम पुरूष-सोच उसी का शिकार है, और आज भी लोगों को किसी भी दायरे में आगे बढ़ती महिला आंखों की किरकिरी सरीखी खटकती है। 

मेरा देखा हुआ है कि किसी पेशे में काम करती हुई कोई महिला रोजाना दस-दस घंटे काम करे, और काम से लौटकर घर का पूरा काम करे, सामाजिकता निभाए, परिवार के आग्रह पर प्रवचन में भी जाकर बैठे, दोनों तरफ के परिवारों की तमाम जरूरी और गैरजरूरी जिम्मेदारियां उठाए, और इसके बाद भी हर तरफ से शिकायतें पाए, हर तरफ बदनामी झेले। ऐसी कई कामकाजी, और बहुत ईमानदारी से मेहनत करने वाली, होनहार महिलाओं के मामले मेरे देखे हुए हैं जिनकी सौ फीसदी जायज तरक्की भी उनके बदन से जोड़ दी जाती है। और ऐसे बहुत से मामलों में तोहमत लगाने वालों की एक और नीयत शामिल रहती है। कामकाजी महिला घर, दफ्तर, और दुनिया तीनों में बदनाम होती है। फिर चाहे वह हर मोर्चे पर कमरतोड़ काम करके, होनहार होने से, अपने हुनर से कामयाब हुई हो। जो हाथ उसे दबोच न पाएं, या जिन हाथों से वह छूट जाए, उनकी उंगलियां उसके खिलाफ सबसे पहले उठ जाती हैं, उसके खिलाफ सबसे पहले नुकीले पत्थर उठा लेती हैं।

इस आखिरी बात का आधा हिस्सा तो मैंने सोचा था, लेकिन इसे एक महिला दोस्त को भेजा तो उसने इसमें बाकी आधा हिस्सा जोड़ दिया। जाहिर है कि महिला के साथ होती बेइंसाफी की कल्पना कुछ हद तक तो मेरे लिए मुमकिन था, लेकिन बाकी हिस्सा एक भुगते हुए सच से निकला था, जो कि किसी महिला के लिए ही मुमकिन था।  

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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