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रोहन बोपन्ना के बहाने जिंदगी के बाकी दायरे..
28-Jan-2024 4:13 PM
रोहन बोपन्ना के बहाने जिंदगी के बाकी दायरे..

भारत के टेनिस खिलाड़ी रोहन बोपन्ना लॉन टेनिस ओपन एरा के इतिहास के सबसे उम्रदराज ग्रैंड स्लैम चैंपियन हो गए हैं। उनकी खुशी देखते ही बन रही थी। वे दो दशक से इस खिताब की कोशिश में लगे हुए थे, और किसी भी खेल के मैदान पर इतना लंबा जीवन असाधारण होता है। वे तकरीबन 44 बरस के हो रहे हैं, और यह उम्र अधिकतर खिलाडिय़ों के लिए खेल से बाहर होने की होती है। यह मेंस डबल टूर्नामेंट उनके लिए बाद में खिताब लेकर आया, और वे इसके पहले 2017 में मिक्स्ड डबल्स का ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुके थे। आधी सफेद हो रही दाढ़ी के साथ जब वे ऑस्ट्रेलियन ओपन की यह ट्रॉफी लेकर अपने जोड़ीदार मैथ्यू एब्डेन के साथ खड़े हुए, तो वे संघर्ष और सब्र की एक बड़ी मिसाल दिख रहे थे। 

मुझे खेलों की अधिक समझ नहीं है, और मैं ऐसे खिताबों को भी अधिक नहीं समझता, लेकिन मैं ऐसे संघर्ष को समझता हूं जो कि रोहन बोपन्ना ने इस खिताब के पहले दिखाया है। टेनिस की खबरों के आंकड़े बताते हैं कि 19 अलग-अलग जोड़ीदारों के साथ इतने बरसों में मैच खेलते हुए रोहन ने 61 कोशिशों के बाद यह खिताब पाया है। अब जब उन्होंने यह खिताब जीता है, तो वे इसे जीतने वाले सबसे उम्रदराज, सबसे अधिक कोशिशों वाले खिलाड़ी बने हैं। 

अब खेलों से परे की बात करें तो जिंदगी के बाकी दायरों में भी यह बात लागू होती है कि आप अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, इरादा कितना पक्का रखते हैं, और कितने अलग-अलग रास्ते ढूंढते हैं। इसे इंसानों से परे भी समझने के लिए चींटियों को देखा जा सकता है, जो किसी चीज को ढोते हुए सामूहिक मेहनत करती हैं, तरह-तरह के मुश्किल रास्तों से होकर गुजरती हैं, मंजिल तक पहुंचने के लिए कल्पनाशील होकर रास्ते निकालती हैं, और कामयाब होती हैं। दुनिया का सबसे बड़ा खेल मुकाबला आसान नहीं होता है, दुनिया की तमाम आबादी में से निकलकर आए चुनिंदा और शानदार खिलाड़ी वहां तक पहुंचते हैं, और उनके बीच मुकाबला सबसे ही मुश्किल होता है। अपने आपमें अच्छा खिलाड़ी होना काफी नहीं होता, बल्कि उस मुकाबले के हर मैच में दूसरे खिलाडिय़ों से बेहतर होना भी जरूरी होता है। 

हम इस मिसाल पर आज इसलिए भी लिख रहे हैं कि लोग अपनी आसान जिंदगी में छोटी-छोटी मुश्किलों के आने पर भी हौसला छोडऩे लगते हैं। कहीं किसी कोचिंग संस्थान में इम्तिहान की तैयारी कर रहे बच्चे खुदकुशी कर लेते हैं, तो कहीं प्रेमसंबंधों या शादीशुदा जिंदगी में तनाव और नाकामयाबी मिलने पर लोग जान दे देते हैं। कुछ लोग बीमारी से तंग आकर खत्म हो जाते हैं, तो कुछ लोग आर्थिक तंगी का सामना नहीं कर पाते। इस एक आखिरी बात के लिए अमिताभ बच्चन की मिसाल देखनी चाहिए कि कुछ दशक पहले वे दसियों करोड़ के कर्जतले आ गए थे, और आज 80 बरस से अधिक की उम्र में वे हजारों करोड़ का ब्रांड बन चुके हैं। उनकी जिंदगी में जाने कितनी बार ऐसे हादसे हुए कि अस्पताल में उनके बचने की उम्मीद भी कम रह गई थी, लेकिन वे निकलकर आकर आसमान चीरकर शोहरत के अंतरिक्ष तक पहुंच गए। उनकी जिंदगी में शुरूआती बरसों में काम के लिए संघर्ष भी कम नहीं रहा, वे अपने वक्त के नायकों की बंधी-बंधाई छवि से भी बिल्कुल अलग थे, और उनकी भावनात्मक जिंदगी भी कहा जाता है कि कई किस्म के उतार-चढ़ाव से गुजरी है। लेकिन किसी भी पल जिंदगी के किसी भी मोर्चे पर उन्हें हिम्मत छोड़ते नहीं देखा गया, और यही वजह है कि आज वे हिन्दुस्तान की मनोरंजन की दुनिया में, इश्तहारों और मॉडलिंग में, ब्रांड प्रमोशन में बेताज बादशाह हैं। 

बीच-बीच में केरल की कुछ खबरें आती हैं कि किस तरह वहां 80 या 85 बरस की किसी बुजुर्ग महिला ने 5वीं का इम्तिहान पास किया, और कहीं से ऐसी खबर आती है कि कुदाली-फावड़ा लेकर किसी एक आदमी ने पहाड़ के आर-पार अकेले ही एक सडक़ बना दी। कुछ ऐसी खबरें भी आती हैं कि कहीं किसी पति-पत्नी ने मिलकर 25-30 बरस में एक बंजर पहाड़ को पूरे का पूरा हरियाली से भर दिया, और हौसले की कई ऐसी खबरें हैं कि किस तरह कोई नेत्रहीन एवरेस्ट पर पहुंच चुके हैं, और किस तरह दोनों नकली पैरों के साथ कुछ दूसरे लोग एवरेस्ट जीत चुके हैं। फौलादी नकली अंग लगे हुए ऐसे लोग सर्द-बर्फीली हवाओं के बीच कई बार अपने कटे हुए अंगों को और जख्मी कर लेते हैं, लौटकर ऑपरेशन के बाद उनके अधूरे अंग और कुछ इंच छोटे हो जाते हैं, लेकिन वे हौसला नहीं छोड़ते। शायद ऐसे ही लोगों को देख-देखकर चींटियां कोशिश करना सीखती हैं। 

जिंदगी में हमेशा अच्छा ही होता रहे यह जरूरी नहीं रहता, अगर खुद की जिंदगी में सब कुछ अच्छा है, तो भी आसपास के लोगों की जिंदगी में कुछ न कुछ गड़बड़ हो सकता है। और ऐसे में लोगों को चाहिए कि संघर्ष, हौसले, जीत की कहानियां जहां से मिल सकें, वहां से लेकर आसपास लोगों तक पहुंचाएं ताकि लोग अपनी निराशा में डूब रहे हों, तो भी वे उससे उबर सकें। इस बात की अहमियत को समझना चाहिए कि आज अगर आप किसी और के काम आते हैं, तो कल आपके डूब रहे हौसले को उबारने के लिए कुछ दूसरे भी काम आ सकते हैं। दुनिया एक-दूसरे के सहारे से तैर सकती है, और एक-दूसरे से मिली बोझिल निराशा से डूब भी सकती है।

रोहन बोपन्ना की इस खबर से आज मुझे ही न सिर्फ लिखने के लिए एक विषय मिला है, बल्कि अपनी असल जिंदगी की कोशिशों से न थकने की एक मिसाल भी मिली है। लोगों को जिस मंजिल को पाने की हसरत हो, उसके लिए खूब तैयारी करनी चाहिए, जमकर कोशिश करनी चाहिए, और फिर उसकी उम्मीद छोडऩी नहीं चाहिए। साथ-साथ यह भी समझना जरूरी है कि जिंदगी में जो पाने की संभावना बिल्कुल भी न हो, खुद की तैयारी वहां तक न पहुंचा सके, उनके लिए अंतहीन कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। रोहन बोपन्ना की मिसाल तर्क और समझ से परे किसी अंधविश्वास के लिए नहीं है, बल्कि एक असल संभावना के लिए है, जिसे तौल लेना हर समझदार इंसान के लिए बेहतर बात होती है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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