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वर्दीधारी गुंडे हर जगह सत्ता को इतने सुहाते हैं
10-Mar-2024 4:23 PM
वर्दीधारी गुंडे हर जगह सत्ता को इतने सुहाते हैं

सुप्रीम कोर्ट अभी यह देखकर हक्का-बक्का रह गया कि राजस्थान में एक महिला के कत्ल के मामले में पुलिस ने उसकी नाबालिग बेटी को ही प्रताडि़त करके फंसाने की कोशिश की, और उसे ही हत्यारा बनाकर कोर्ट में पेश कर दिया। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने राजस्थान के पुलिस प्रमुख को मामले की जांच करके रिपोर्ट देने कहा है कि एक बच्ची पर किस तरह गुनाह कबूलने को जुल्म करके उसे तैयार किया गया कि वह मां का कत्ल करना मान ले। चौदह बरस की इस बच्ची के साथ पुलिस के रवैये पर जज हैरान थे। और बच्ची को फंसाने का यह काम हत्यारे के साथ मिलकर पुलिस ने किया था। मामले के खुलासे को पढऩा दहशत पैदा करता है कि किस तरह लडक़ी को फंसाने के लिए पुलिस ने साजिश रची, और उसे मार-मारकर यह कबूलवाया कि उसी ने मां को गोली मारी थी। 

दुनिया भर के सभ्य देशों में बच्चों को सिखाया जाता है कि वे खतरा देखें, या परेशानी में पड़ें, तो वे सीधे पुलिस के पास जाएं। बच्चों को भरोसा दिलाया जाता है कि पुलिस हर नौबत में हर तरह से उनकी मदद करेगी। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान में जमीनी हकीकत देखते हुए बच्चों को यह ठीक ही समझाया जाता है कि वे समय पर सो जाएं, समय पर खाना खा लें, वरना पुलिस उन्हें उठाकर ले जाएगी। आज पुलिस के बीच से कुछ लोग अच्छा काम करते भी दिखते हैं, कहीं किसी भूखे को खिलाते हैं, तो कहीं किसी बुजुर्ग को सडक़ पार कराते हैं, लेकिन देश भर में पुलिस का आम हाल इतना खराब है कि लोग उससे दूर रहने में ही अपना भला मानते हैं। जाने कितने ही मामले ऐसे हुए हैं जिनमें अदालत के सामने पुलिस मुजरिम और गुंडा साबित हो चुकी है। असल जिंदगी में तो लोग देखते ही हैं कि संगठित अपराधों को इजाजत देने के लिए पुलिस खुद एक संगठित अपराधी की तरह काम करती है। भारत के अधिकतर प्रदेशों में पुलिस सत्ता के हाथ का हथियार बनी रहती है, और अगर सत्ता की दिलचस्पी पुलिस के बेजा इस्तेमाल में न भी हो, तो भी पुलिस अपने आपको हथियार की तरह पेश करती है। अभी कुछ ही दिन पहले साम्प्रदायिक हिंसा से गुजर रहे उत्तराखंड में एक मुस्लिम मोहल्ले में एक हिन्दू की लाश मिली, जिसकी तोहमत जाहिर तौर पर मुस्लिमों पर ही लगनी थी। लेकिन उसी प्रदेश की पुलिस ने जांच करने पर पाया कि वहीं के एक स्थानीय हिन्दू पुलिसवाले ने एक निजी रंजिश निकालने के लिए एक हिन्दू नौजवान का कत्ल किया, और उसकी लाश को मुस्लिम मोहल्ले में फेंक दिया था। सुबूत मिल जाने पर इस पुलिसवाले को गिरफ्तार किया गया है। ठीक ऐसा ही एक दूसरा मामला उत्तरप्रदेश में एक जगह सामने आया था जहां पर एक हिन्दू संगठन के लोगों ने अपने अवैध कारोबार को बेरोकटोक चलाने के लिए उस इलाके के पुलिस अफसर का तबादला करवाने की योजना बनाई, और इसके लिए गाय काटकर जगह-जगह उसके टुकड़े फेंके गए, उनके साथ एक बेकसूर मुस्लिम का नाम जोड़ा गया, उसका आईडी कार्ड साथ डाल दिया गया। बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने ही हिन्दू संगठन की यह साजिश पकड़ी, और तमाम लोगों को गिरफ्तार किया, इसके बाद नाजायज गिरफ्तार बेकसूर मुस्लिम को रिहा किया गया। 

पुलिस जगह-जगह सबसे परले दर्जे के संगठित मुजरिमों की तरह काम करने के लिए एक पैर पर तैयार खड़ी रहती है। और ऐसा करने वाले लोगों की गिनती अपवाद सरीखी नहीं है, पुलिस का एक खासा हिस्सा भ्रष्टाचार में तो डूबा रहता ही है, वह बेकसूरों को फंसाने, और मुजरिमों को बचाने में भी लगा रहता है। हमने मुम्बई के बड़े चर्चित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिसवालों को देखा है कि वे किस तरह आगे चलकर भूमाफिया बन जाते हैं, और बंदूकबाज होने की अपनी शोहरत का इस्तेमाल करके मुजरिमों की सरगना बन जाते हैं। हिन्दुस्तानी कानून व्यवस्था में पुलिस को जुर्म दर्ज करने और गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई के लिए अंधाधुंध अधिकार मिले हुए हैं, और यह उसका एकाधिकार सरीखा रहता है। इसलिए उससे बचना बड़ा मुश्किल रहता है। राजनीतिक ताकतें अपने बुरे लोगों को बचाना, और विरोधियों को झूठे मामलों में फंसाना इन्हीं पुलिसवालों के सहारे करती हैं। अधिकतर जिलों और थाना इलाकों में अवैध कमाई और उगाही का जमा जमाया कारोबार रहता है, और ऐसी कमाऊ कुर्सियों पर पहुंचने के लिए पुलिस अपने आपको औजार और हथियार की तरह पेश भी करती है, और मोटी पेशगी भी देती है।

ऐसे भ्रष्ट सिलसिले को तोडऩा जरूरी है। यह सिलसिला जारी रहे तो राजनेता इसके आदी भी हो जाते हैं, क्योंकि पेशेवर भ्रष्ट पुलिसवाले उन्हें यह भी समझा देते हैं कि वे कैसे विरोधियों को निपटा सकते हैं, कहां-कहां से कमा सकते हैं। ऐसी पुलिस कभी-कभी अदालत के सामने उजागर होती है, तो फंसती है, आमतौर पर निचली अदालतों का मिजाज ही ऐसा रहता है कि वहां पुलिस या सरकार जो मामला पेश करे, उन्हें अदालतें सच और सही मानकर चलती हैं। राजस्थान का यह मामला देश में पुलिस की बदनामी का न तो पहला मामला है, न आखिरी है। पंजाब में केपीएस गिल जैसे अफसर के मातहत जिस तरह सैकड़ों बेकसूर लोगों की पुलिस-हत्या के आरोप लगे थे, और बाद में दर्जनों पुलिसवालों को अदालत से सजा भी हुई थी, उसे भी नहीं भूलना चाहिए। अभी दो दिन पहले ही दिल्ली में एक नमाजी को पुलिस ने जिस तरह मारा है, उसे भी नहीं भूलना चाहिए। पुलिस सत्ता की चापलूस बनकर हर तरह के जुर्म करने को तैयार रहती है, और इसके सबसे बुरे शिकार सबसे कमजोर तबके होते हैं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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