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कोख किराए पर देने पर इतना हंगामा क्यों बरपा?
17-Mar-2024 4:11 PM
कोख किराए पर देने पर इतना हंगामा क्यों बरपा?

पंजाब में 2022 में वहां के एक लोकप्रिय गायक सिद्धू मुसेवाला का एक गिरोह ने साजिश के साथ बड़ी तैयारी से कत्ल कर दिया था। सिद्धू अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था। अब उसके बूढ़े मां-बाप ने उसकी याद में, और अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से एक बेटे को जन्म दिया है। सिद्धू के 60 बरस के पिता बलकौर सिंह ने सोशल मीडिया पर बेटे के साथ अपनी फोटो पोस्ट की है, और कहा है कि सब स्वस्थ हैं। पंजाब में बड़े-बड़े गिरोह काम करते हैं, और उनके सरगना तिहाड़ जैसी जेल में रहकर भी अपना गिरोह चलाते हैं, या विदेश में रहकर भी। लेकिन पंजाब के ऐसे संगठित अपराध पर चर्चा उतनी अहमियत नहीं रखती जितनी अहमियत यह बात रखती है कि बुजुर्ग हो चुकी एक महिला किस तरह 58 बरस की उम्र में अपने बेटे की याद में एक और बेटे को जन्म देती है। भारत में शायद कुछ कानूनी अड़चन के चलते ऐसा गर्भधारण करना मुमकिन नहीं था तो सिद्धू मुसेवाला की मां चरणकौर ने दूसरे देश में यह मेडिकल मदद ली। यह अपने किस्म का पहला मामला नहीं है जिसमें एक महिला इस उम्र में मां बने, लेकिन यह कुछ अनोखा मामला तो है ही क्योंकि दुनिया की साधारण समझबूझ यह सुझाती है कि इस उम्र में मां-बाप बनना उतनी समझदारी की बात नहीं है। 

अपने बेटे की याद में कुछ करना अच्छी बात है, लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि इंसान के शरीर और उसकी जिंदगी की कुछ सीमाएं रहती हैं, और लोगों को उनका ख्याल इसलिए रखना चाहिए कि जिन बच्चों को मां-बाप अपनी भावनात्मक जरूरतों से पैदा करते हैं, उन्हें बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े होने में खासा समय लगता है, और तब तक उनकी जिम्मेदारी निभाने के लिए मां-बाप की उम्र तो बची होनी चाहिए। वैसे तो बच्चों को जन्म देना हर किसी का मौलिक अधिकार होना चाहिए, लेकिन जब कोई देश एक जनकल्याणकारी राज्य की तरह काम करता है, तो वहां पर अजन्मे बच्चों के अधिकारों की भी फिक्र करनी चाहिए। 

आज 60 बरस की उम्र में अगर कोई पिता बना है, और 58 बरस की उम्र में कोई मां बनी है, तो उनकी अपनी जिंदगी का कितना लंबा ठिकाना रहेगा?  यह जरूर हो सकता है कि परिवार संपन्न होने पर बच्चे की देखरेख के लिए पैसों का इंतजाम तो पुख्ता हो सकता है, लेकिन मां-बाप दोनों की उम्र अगर बुढ़ापे में दाखिल हो चुकी है, तो उनके अभी हुए बच्चे की जिंदगी के पहले 20-25 बरस मां-बाप के साथ की कोई गारंटी नहीं दिखती है। यहां पर आकर अगर कोई देश कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के इस्तेमाल के लिए कोई उम्र सीमा तय करते हैं, तो वह निजी मामलों में दखल नहीं मानी जानी चाहिए। 

हिन्दुस्तान में हमने सरोगेसी का कानून आने के ठीक पहले तक कई फिल्मी सितारों को इस तकनीक से बच्चे पैदा करते देखा है, और कुछ तो ऐसे भी रहे जिनके पहले से पर्याप्त बच्चे थे, लेकिन उन्होंने इस तकनीक से और बच्चे हासिल किए। सरोगेसी जैसी तकनीक को लेकर पूरी दुनिया में कई तरह की सोच है, और कई तरह के कानून हैं। यह सिर्फ हिन्दुस्तान में नहीं हैं, बल्कि बहुत सी जगहों पर लोगों को दूसरे देशों में जाना पड़ता है, क्योंकि अपनी खुद की जमीन पर उन्हें इसकी इजाजत नहीं रहती है। 

लेकिन इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए एक सवाल यह सूझता है कि क्या अपनी गर्भ किराए पर देकर अगर कोई बहुत गरीब महिला नौ महीनों बाद अपने परिवार का बेहतर ख्याल रख सकती है, तो क्या उसकी इजाजत दी जानी चाहिए? यह एक समय बिकने वाली किडनी से कुछ अलग मामला है। बदन में किडनी सीमित रहती हैं, और एक किडनी जरूरतमंद मरीज को दे देने पर अपने खुद के बदन पर कई तरह के खतरे आ जाते हैं, और कई तरह की सीमाएं बाकी जिंदगी पर लागू हो जाती हैं। दूसरी तरफ किसी महिला का गर्भाधान उसके लिए उतना बड़ा खतरा नहीं रहता, और उसकी बाकी जिंदगी पर इसकी वजह से कोई बहुत बुरा असर नहीं पड़ता। फिर अपनी कोख किराए पर देना किसी तरहसे अंगदान जैसा नहीं है कि जिससे शरीर के किसी हिस्से को बेचने का काम हो जाए। आज जब देश में भुगतान की क्षमता वाले लोग हैं, और सबसे गरीब लोग पैसों की कमी से एक सामान्य जिंदगी नहीं जी पाते हैं, उनके बच्चे अभाव में बड़े होते हैं, किन्हीं अवसरों तक नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में भारत के मौजूदा सरोगेसी कानून के तहत क्या ऐसी कोई ढील नहीं देनी चाहिए जिससे गरीब परिवारों की महिलाएं किसी बच्चे को जन्म देकर अपने खुद के बच्चों के लिए एक अच्छी रकम जुटा सकें? यह बात सुनने में अमानवीय लग सकती है कि हम कोख किराए पर देने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन यह बात किसी महिला की अपनी और उसके परिवार की जिंदगी को बेहतर बनाने की बात भी है, साथ-साथ बिना बच्चों वाले लोगों के लिए एक मौका मुहैया कराने की बात भी है। 

हिन्दुस्तान जैसे मुल्क की इस हकीकत को नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में महिलाएं अपने बच्चों को कुपोषण से मरते देखती हैं, बिना इलाज बच्चे बड़े सब मर जाते हैं, छोटे-छोटे बच्चे सडक़ों पर कचरा बीनने और भीख मांगने जैसे रोजगार में लगने को मजबूर रहते हैं। और इससे भी अधिक कड़वी हकीकत यह भी है कि ह्यूमन राईट्स वॉच नामक संस्थान के एक अंदाज के मुताबिक हिन्दुस्तान में करीब डेढ़ करोड़ महिलाएं देह बेचने के धंधे में लगी हुई हैं। एशिया का सबसे बड़ा सेक्स बाजार मुम्बई है जहां पर एक लाख से अधिक वेश्याएं काम करती हैं। सरकारें इन आंकड़ों को न जानना चाहती हैं, न मानना चाहती हैं, लेकिन जब अपनी जिंदगी और परिवार को चलाने के लिए इस देश में डेढ़ करोड़ महिलाएं दुनिया में सबसे अधिक बीमारियों के खतरे वाला यह धंधा करती हैं, तो क्या इसके मुकाबले किसी के बच्चे की मां बन जाना अधिक बुरा काम होगा? 

चूंकि वेश्यावृत्ति को कानूनी हक देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकार और संसद को इस बारे में कुछ नहीं करना पड़ा, इसलिए वे असुविधा से बचे हुए हैं। लेकिन चूंकि सरोगेसी को लेकर संसद को कानून बनाना पड़ा है इसलिए सरकार और संसद उस मामले में ऐसे दिखना नहीं चाहते कि वे बदन को किराए पर देने का समर्थन कर रहे हैं। जबकि शरीर को कुछ मिनटों या घंटों के सेक्स के लिए किराए पर देने का कारोबार सबकी जानकारी में है, और उसे मानते कोई भी नहीं हैं। 

हमने बात तो सिद्धू मुसेवाला के मां-बाप के बच्चे के फैसले को लेकर शुरू की थी, लेकिन वह आगे बढक़र इस तकनीक पर आ गई है, और किस तरह इस तकनीक से कुछ कमाने की इजाजत लोगों को मिलनी चाहिए, क्योंकि वे अपने बदन के कई और अधिक बुरे इस्तेमाल कर ही रहे हैं। आज भी हिन्दुस्तान में किडनी ट्रांसप्लांट जैसे कारोबार में कानून को चकमा देकर किडनी की खरीद-बिक्री चलती ही है। संसद में पिछले बहुत समय से किसी कानून को लेकर सार्थक चर्चा और बहस का सिलसिला खत्म हो गया है, इसका नतीजा यह हुआ है कि कई ऐसे कानून भी बन जाते हैं जो कि जायज नहीं होते। सरोगेसी कानून का गरीबों के जिंदा रहने के लिए किस तरह इस्तेमाल हो सकता है इस पर बात होनी चाहिए।  

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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