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हिन्दुस्तानी समाज सेक्स की जरूरत का दुश्मन बन बैठा
09-Jun-2024 4:00 PM
हिन्दुस्तानी समाज सेक्स की जरूरत का दुश्मन बन बैठा

मेरे करीब के एक कस्बे की खबर है कि एक आदमी ने देर रात अपनी पत्नी का कत्ल कर दिया। 75 बरस के पति ने 72 साल की पत्नी से देर रात सेक्स की फरमाईश की, पत्नी ने मना कर दिया, तो उसने फावड़े से कई वार करके पत्नी को वहीं मार डाला। गिरफ्तार पति से ही यह बात पुलिस को पता लगी। 75 और 72 बरस की उम्र में सेक्स को लेकर अलग-अलग दर्जे की जरूरतें रहने की बात तो बिल्कुल नई सरीखी है, लेकिन काफी कम उम्र में ही अधेड़ हो जाने पर ही भारत में बहुत से जोड़ों के बीच यह दिक्कत होने लगती है। अधिक जगहों से यह सुनाई पड़ता है कि पत्नी की दिलचस्पी सेक्स में पहले खत्म हो गई है, और पति की जरूरत बाकी है, और इसलिए वह बाहर मुंह मारने लगा है। जितने जोड़े, उतने किस्म की बातें। 

अब अगर जमीनी हकीकत को देखें तो भारत में परिवारों का ढांचा, समाज की सोच, और धर्म का प्रभाव, इन सबका नतीजा यह होता है कि शादीशुदा जोड़ों के बीच भी देहसंबंध की गुंजाइश या तो घटने लगती है, या फिर जोड़ों के बीच के तनाव ऐसे रहते हैं कि मन तन को पास आने नहीं देता। आम हिन्दुस्तानी आदमी इतने किस्म की थकान लेकर, या मानसिक तनाव लेकर बिस्तर पर पहुंचते हैं कि वहां बीवी के साथ अधिक कुछ होने या करने की गुंजाइश नहीं रहती है। दूसरी तरफ घर के काम के बोझ से लदी हुई, अब घर-घर में बन गए शौचालयों के लिए मीलों से पानी ढोकर लाने वाले टूटते हुए बदन वाली औरत को बिस्तर पर नींद और आराम से जरूरी और कुछ नहीं लगता। इसलिए बहुत से जोड़े ऐसे हैं जो एक ही कमरे में परिवार के और लोगों के साथ रहने की मजबूरी के चलते, या बगल के कमरे तक आवाज जाने की आशंका में जीते हुए किसी सेक्स के लायक बचते भी नहीं हैं। 

भारत के संयुक्त परिवारों में घर की महिला से बिल्कुल सुबह से लेकर देर रात तक लगातार काम की उम्मीद की जाती है, और उससे कुछ पाने वालों की लिस्ट में उसके पति का नाम सबसे आखिर में रहता है। परिवार के बाकी बच्चे-बूढ़े, जवान या अधेड़ जोड़े की जरूरत को समझ भी नहीं पाते, या समझना ही नहीं चाहते। नतीजा यह होता है कि संयुक्त परिवार बहू की गोद तो हमेशा भरी देखना चाहता है, लेकिन बहू को उसके पति संग अलग से समय मिल सके, इसमें उसकी खास दिलचस्पी नहीं रहती। 

अब इतनी बातों के बाद धर्म का दखल शुरू होता है, जो कि सामान्य और स्वाभाविक शारीरिक जरूरतों वाले जोड़ों में भी सेक्स के खिलाफ एक नापसंदगी पैदा करते रहता है। देह की जरूरतों को काम-वासना जैसे अपमानजनक नाम दिए जाते हैं, और लोगों के दिमाग में लगातार यह भरा जाता है कि उन्हें सेक्स जैसी चीज में नहीं उलझना चाहिए, ईश्वर की आराधना करनी चाहिए जिससे मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा। अब अगर स्वर्ग में भी सेक्स से ऐसा ही परहेज सिखाया जाएगा, तो बिना सेक्स वाली वह जगह भला कैसे स्वर्ग कही जा सकेगी? धर्म से जुड़े हुए भारत के एक आध्यात्मिक कहे जाने वाले संगठन की तो नसीहत यही है कि पति-पत्नी को भाई-बहन की तरह रहना चाहिए। अब अगर वे भाई-बहन की तरह रहेंगे, तो देहसंबंध किससे बनाएंगे? अगर जीवनसाथी को ही भाई-बहन मानना है, तो फिर देह की जरूरत के लिए चारों तरफ अनैतिक कहे जाने वाले काम करने होंगे। लेकिन धर्म और आध्यात्म लोगों को स्वाभाविक सेक्स से दूर धकेलते रहते हैं, फिर चाहे देश के एक सबसे बड़े प्रवचनकर्ता और स्वघोषित संत आसाराम अपनी सेक्स की जरूरतों के लिए नाबालिग से बलात्कार ही क्यों न करता रहे। हिन्दुस्तान के जो लोग धर्म और आध्यात्म के अधिक झांसे में रहते हैं, उनका सेक्स-जीवन बर्बाद होने का बड़ा खतरा मंडराते रहता है। 

धर्म और समाज, परिवार और पारंपरिक सामाजिक शिक्षा के चलते हुए भारत के लोगों में सेक्स को लेकर हिचक और झिझक भर जाती है। नतीजा यह होता है कि जोडिय़ों में से किसी एक की जरूरत पूरी नहीं होती, दूसरे को परवाह नहीं रह जाती। ऐसे में विवाहेत्तर संबंध बनने लगते हैं, और कई जगहों पर आगे जाकर प्रेमिका की हत्या, या प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या जैसी बातें होने लगती हैं। जोड़ों के बीच की हिंसा लगातार बढ़ती चल रही है, इसकी एक वजह भारतीय समाज में सेक्स की जरूरत को कम आंकना है, और लोगों को धर्म की तरफ धकेलना है। इससे लोग भी इस झांसे में आ जाते हैं कि दो-दो बच्चे हो जाने के बाद सेक्स की क्या जरूरत है। जबकि यह पूरी तरह धर्मान्ध सोच है कि मनचाही संख्या में बच्चे हो जाने के बाद लोगों को मन भजन-पूजन में लगाना चाहिए। कई परिवारों में जीवनसाथियों के बीच इस बात को लेकर झड़प भी रहती है कि क्या अब इन बातों की उम्र रह गई है? धर्म सेक्स को लेकर लोगों के मन में एक बड़ा अपराधबोध पैदा कर देता है कि बच्चे हो जाने के बाद भी उनका मन इसी काम-वासना में लगा हुआ है। 

ऑस्ट्रेलिया और अमरीका के एक सबसे बड़े मीडिया कारोबारी रूपर्ट मर्डोक ने अभी 93 बरस की उम्र में 5वीं शादी की है, और इस बार यह शादी 67 बरस की एक रूसी मालिक्यूलर बायोलॉजिस्ट से हुई है। लोगों की तन और मन की जरूरत कब तक जारी रहती है, इसके लिए कोई एक पैमाना बनाना जायज नहीं है। लोगों को धर्म और समाज, आध्यात्म और परिवार की नसीहतों से परे अपनी शादीशुदा जिंदगी की जरूरतों पर खुद फैसले लेना चाहिए।   

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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