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उम्र और सेहत अमरीकी राष्ट्रपति बनने में आखिर कितना बड़ा रोड़ा?
07-Jul-2024 12:55 PM
उम्र और सेहत अमरीकी राष्ट्रपति बनने में आखिर कितना बड़ा रोड़ा?

अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में बाकी तमाम मुद्दों के साथ-साथ एक मुद्दा यह भी बना हुआ है कि मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन को क्या इस बढ़ती हुई उम्र में एक बार फिर उम्मीदवार बनना चाहिए? चार बरस के मौजूदा कार्यकाल में बाइडन की उम्र और उनकी सेहत कई बार अमरीका की फिक्र का सामान बन चुकी है। वे बहुत सी बातों को भूल जाते हैं, कई मौकों पर वे लडख़ड़ाते नजर आते हैं, और अभी जब भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ उनकी एक बहस का जीवंत प्रसारण हो रहा था, उस वक्त वे स्टेज पर तकरीबन सोए हुए से थे, और ट्रंप के अंतहीन हमलों के मुकाबले बाइडन का हाल इतना खराब था कि अब सुनने में आ रहा है कि उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी को चंदा देने वाले लोग उनको मनाने में लग गए हैं कि वे चुनाव न लड़ें। वैसे भी जितने किस्म के पोल अमरीका में हुए हैं, उनमें बाइडन खासे पिछड़े हुए हैं, और इस ताजा बहस के प्रसारण के बाद माना जा रहा है कि उनके लिए इससे हुए नुकसान से उबरना मुमकिन नहीं होगा।

सवाल यह उठता है कि बहुत जिम्मेदारी का कोई ओहदा संभालने वाले लोग उम्र या फिटनेस के किसी पैमाने पर कितने खरे उतरने चाहिए? कहने के लिए तो डोनल्ड ट्रंप भी 78 बरस के हैं, और बाइडन 81 बरस के। दोनों की उम्र में बहुत बड़ा फर्क नहीं है, लेकिन ट्रंप बेहतर सेहत में दिखते हैं, और अभी तक वे औरतों को दबोचने के तरीके बताते हुए दर्ज होते रहते हैं, और उनका हमलावर मिजाज अपने ओछे औजारों के साथ और कम उम्र का लगता है। दूसरी तरफ बाइडन की उम्र और सेहत दोनों को मिलाकर देखें, तो लगता है कि अभी तो राष्ट्रपति चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं, तब तक उनकी सेहत और कमजोर हो सकती है, और अगर वे जीतते हैं तो राष्ट्रपति का चार बरस का अगला कार्यकाल पार होने तक तो वे खासे बूढ़े हो चुके रहेंगे। आज की दुनिया में अमरीका को जितनी जायज और नाजायज दखल रखनी पड़ती है, क्या वह सब बाइडन के लिए बढ़ती उम्र और गिरती सेहत के साथ मुमकिन हो सकेगा?

लेकिन इस बारे में अमरीका के स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों से बात करें तो यह समझ पड़ता है कि ट्रंप की तरह सांड जैसी ताकत से काम चाहे बाइडन न कर सके, लेकिन वे जितने बरसों से अमरीकी राजनीति में हैं उससे उन्हें एक अनोखा तजुर्बा हासिल है, और 1972 से अमरीकी संसद में पहुंचकर उन्होंने आधी सदी से अधिक देश और दुनिया को संसद और सरकार के भीतर से जिस तरह देखा है, वैसा तजुर्बा किसी सांड सरीखी सेहत वाले नेता को भी नहीं हो सकता। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बाइडन का यह असाधारण लंबा अनुभव उन्हें शारीरिक कमजोरी के बावजूद राष्ट्रपति पद का शानदार दावेदार बनाता है। मजबूत सेहत तो हर नौजवान या बुजुर्ग को हासिल हो सकती है, लेकिन आधी सदी का संसदीय तजुर्बा भला कितनों को हासिल हो सकता है, शायद किसी और को नहीं।

लेकिन इन खूबियों के बावजूद जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुत से लोग सार्वजनिक रूप से उन्हें सुझा रहे हैं कि राष्ट्रपति चुनाव लडऩे के अपने फैसले पर उन्हें फिर से विचार करना चाहिए। बाइडन ने एक सवाल के जवाब में कहा है कि पिछले हफ्ते ट्रंप से बहस के दौरान वे बहुत बुरे जुकाम के शिकार थे, और उसकी वजह से थके हुए थे। उन्होंने कहा कि अगर ईश्वर ही नीचे आकर कहे कि वे इस मुकाबले से बाहर निकल जाएं, तो ही वे पीछे हटेंगे। ट्रंप के तमाम उकसावे के बावजूद वे लगातार अपना काबू कायम रखे हुए हैं, और अपनी जीत को लेकर भरोसेमंद हैं।

ट्रंप की शक्ल में दुनिया के इस सबसे ताकतवर और असरदार मुल्क से उठ रहे सवाल दुनिया में कई और जगहों पर भी लोगों को परेशान कर सकते हैं, जहां 80 बरस के बुजुर्ग सत्ता की घोड़ी चढऩे के लिए दूल्हे बनकर तैयार खड़े हों। हिन्दुस्तान में कम से कम भाजपा में एक बात को बार-बार कहा गया है कि 75 बरस उम्र होने पर नेताओं को सत्ता से परे हो जाना चाहिए, हालांकि इस तर्क का इस्तेमाल अडवानी, मुरली मनोहर जोशी को किनारे करने के लिए किया गया, लेकिन कर्नाटक में येदियुरप्पा को 75 बरस का हो जाने के बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया। इसलिए ऐसा लगता है कि भाजपा में भी 75 बरस की सीमा को कुछ लोगों को किनारे करने की सहूलियत के लिए इस्तेमाल किया गया है।

उम्र और सेहत हर किसी की एक सरीखी नहीं रहती, इसलिए कई लोग जवान होते हुए भी मेहनत से दूर रह सकते हैं, और कई बुजुर्ग उम्र के लोग भी उनसे अधिक काम कर सकते हंै। अमरीका में एक संवैधानिक इंतजाम किया गया है कि अगर राष्ट्रपति ओहदे पर रहते हुए गुजर जाते हैं तो उपराष्ट्रपति को तुरंत ही राष्ट्रपति बना दिया जाता है। अगर जो बाइडन के सामने ऐसी कोई नौबत आती है, या फिर वे सेहत की किसी वजह से कोमा में चले जाते हैं, तो भी उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाया जाता है, तो कमला हैरिस या कोई और उपराष्ट्रपति अमरीका को हमेशा ही मुसीबत में हासिल रहेंगे।

इसलिए ट्रंप जैसे बदचलन, अहंकारी, अनैतिक, सनकी, और भ्रष्ट व्यक्ति को राष्ट्रपति बनने देने से बेहतर यही होगा कि उसके मुकाबले डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन, या किसी भी दूसरे उम्मीदवार को चुना जाए। जो बाइडन का जितना लंबा तजुर्बा है, और उन्होंने अमरीका को जिस तरह से एक बेहतर अर्थव्यवस्था मुहैया कराई है, जिस तरह डेढ़ करोड़ नौकरियां पैदा की हैं, 50 लाख अमरीकियों का पढ़ाई का लोन खत्म कर दिया है, वह असाधारण उपलब्धियां हैं। ट्रंप ने अपने चार साल के कार्यकाल में सिवाय नंगई के और कुछ नहीं किया था। इसलिए जो बाइडन उम्मीदवार बनने लायक हैं, और यह डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर की बात है कि वह किसे अपना उम्मीदवार बनाती है।

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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