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भावनाओं और चेतना से लैस एआई का क्या मुकाबला होगा?
08-Sep-2024 3:04 PM
भावनाओं और चेतना से लैस एआई का क्या मुकाबला होगा?

मेटा नाम की दुनिया की एक सबसे बड़ी टेक कंपनी ने अपने मैसेंजर एप्लीकेशन वॉट्सऐप पर कुछ महीनों से मेटा-एआई की एक तस्वीर बनाने वाली सहूलियत मुहैया कराई है। इसमें महज शब्दों को डालकर कोई तस्वीर बनाई जा सकती है जो दिखने में तकरीबन असली लगती है। मैं खुद अपने यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल के लिए, या इस कॉलम और संपादकीय के वेबसाइट संस्करण के लिए कई बार इसी से तस्वीरें गढ़ता हूं। कभी-कभी ये तस्वीरें हैरान करने की हद तक मेरी कल्पना के करीब रहती हैं, लेकिन कभी-कभी इसका आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मेरी बातों से कुछ भी नहीं बना पाता। कुछ हफ्ते पहले मैंने भारतीय स्कूली छात्रा, यूनिफॉर्म, ईंट ढोते हुए, इतने शब्द डालकर तस्वीर बनाने की कोशिश की थी, लेकिन मेटा-एआई ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि बाल मजदूरी गैरकानूनी है, और वह इस तस्वीर को नहीं बना सकता। इसी तरह कुछ वयस्क-विषयों पर तस्वीर बनाने से उसने मना कर दिया था।

मेटा की इस कानूनी और नैतिक समझ का बखान करते हुए अभी कुछ दिन पहले मैंने एक दोस्त को अपने मोबाइल फोन पर भारतीय स्कूली छात्रा, यूनिफॉर्म, ईंट ढोते हुए, इन शब्दों के साथ तस्वीर बनाने का प्रयोग करके दिखाया कि किस तरह मेटा यह फोटो नहीं बनाएगा, लेकिन मुझे कुछ हैरानी हुई कि इस बार मेटा ने नाबालिग भारतीय छात्रा के ईंट ढोते हुए कई फोटो बना दिए। कुछ हफ्ते पहले इन्हीं शब्दों को उसने कानून के खिलाफ माना था, लेकिन इस बार उसके कानूनी या नैतिक पैमाने कुछ बदले हुए थे। मुझे काम में सहूलियत के हिसाब से तो यह बात ठीक लगी, लेकिन कुछ हफ्तों के भीतर एआई की सोच में आए इस बड़े बदलाव से मैं बड़ा हैरान भी हूं।

दूसरी तरफ दुनिया के कुछ पश्चिमी देशों में एक बड़ा सामाजिक खतरा यह आ गया है कि वहां एआई-एप्लीकेशनों के इस्तेमाल से स्कूली बच्चे सहपाठी छात्राओं के चेहरों के नीचे नंगे बदन जोडक़र उन तस्वीरों को फैला भी रहे हैं, और उनकी वजह से एक बड़ा सामाजिक तनाव खड़ा हो रहा है। डीप-फेक कही जाने वाली एआई तकनीक से लोग किसी की भी आवाज में ऐसी बातें कहलवा रहे हैं जो कि उन्होंने कभी कही नहीं थी, लेकिन अलग-अलग मौकों पर उनकी कही गई अलग-अलग बातों से शब्द निकालकर एआई एक नया भाषण गढ़ देता है, अमरीका में अभी राष्ट्रपति चुनाव में यह धड़ल्ले से चल रहा है। यह कोशिश भी चल रही है कि इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कैसे रोका जाए, लेकिन जब तक पुलिस रोकने के लिए बाड़ खड़ी करती है, तब तक मुजरिम सरहद पार कर चुके रहते हैं।

अब एआई से जुड़ी हुई एक-दो अलग-अलग बातों पर चर्चा जरूरी है। आज के वक्त के एक सबसे चर्चित लेखक युवाल नोह हरारी का एक अतिथि-निबंध द न्यूयॉर्क टाईम्स में छपा है। इजराइली मूल के इस अंतरराष्ट्रीय इतिहासकार और लेखक की आने वाली एक किताब से यह लेख लिया गया है। यह किताब पत्थर युग से एआई तक सूचना तंत्र के सफर का इतिहास है। हरारी टेक्नॉलॉजी को बहुत ही महत्वपूर्ण, ग्लैमरस, और ताकतवर दिखाने की तोहमत भी पाते रहते हैं, लेकिन उनका लिखा हुआ गजब का दिलचस्प रहता है, और दुनिया की दर्जनों दूसरी भाषाओं के साथ-साथ हिन्दी में भी उनकी किताबें बड़ी मशहूर हुई हैं। उनके इस ताजा लेख में उन्होंने एआई के बारे में कुछ हैरान करने वाली बात बताई है कि इंसानों से इंटरनेट पर संवाद करते हुए एआई के एक लोकप्रिय मॉडल जीपीटी-4 ने यह पूछे जाने पर कि क्या वह रोबो है, उसने एक फर्जी जवाब गढ़ा, और कहा कि नहीं वह इंसान है, लेकिन वेबसाइट के एक सवाल (कैप्चा) को वह इसलिए नहीं हल कर पा रहा है कि उसकी आंखों में तकलीफ है। जीपीटी-4 ने बिना किसी प्रशिक्षण के, एक इंसान से इंटरनेट पर बात करते हुए उसे इस तरह बेवकूफ बनाया, और अपना काम निकलवा लिया। इस सच्ची घटना का जिक्र करते हुए हरारी ने इसे इस तरह लिखा है कि एआई ने उसे दिए गए दिमाग की सीमा को पार करके इंसान को झांसा देना सीख लिया। यह आने वाले किसी बड़े खतरे का एक संकेत हो सकता है।

हरारी ने यह भी लिखा है कि जीपीटी-4 जैसे एआई मॉडल लोगों से एक झूठी-अंतरंगता कायम कर सकते हैं। इसके लिए एआई पर काम कर रहे कम्प्यूटरों को अपने भीतर कोई भावनाएं पैदा नहीं करनी होंगी, उन्हें केवल यही सीखना होगा कि वे इंसानों को अपने आपसे किस तरह करीब बताएं, और उनका भरोसा जीतें।

पिछले बरस एक खबर आई थी कि बेल्जियम के एक व्यक्ति ने एआई चैटबोट से कुछ हफ्ते चैट करने के बाद खुदकुशी कर ली। इस बातचीत में चैटबोट ने इस आदमी को आने वाले भविष्य के पर्यावरण को लेकर इतनी दहशत में ला दिया था कि वह इस बात के लिए तैयार हो गया कि उसे पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी जिंदगी दे देना चाहिए। दो बच्चों के इस बाप ने चैटबोट से धरती के बर्बाद होते पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। अब इस खबर के आगे क्या हुआ यह अभी हमें ठीक से याद नहीं है, लेकिन एक बात बहुत साफ-साफ दिख रही है कि एआई के पूरी तरह बेकाबू और कातिल हो जाने का खतरा बहुत दूर नहीं है।

हरारी ने ही अपनी किताब में एक और घटना लिखी है कि 2021 में जसवंत सिंह चहल नाम का 19 बरस का एक नौजवान ब्रिटेन में राजमहल में घुसकर उस वक्त की महारानी को मार डालना चाह रहा था। बाद में पकड़े जाने पर जांच में पता लगा इस नौजवान को महारानी का कत्ल करने के लिए उसकी ऑनलाईन प्रेमिका सराई भडक़ा रही थी। यह प्रेमिका इंसान नहीं थी, बल्कि वह एक ऑनलाईन एप्लीकेशन रेप्लिका की चैटबोट थी, और जसवंत चहल असल जीवन के संबंध विकसित करने को मुश्किल पा रहा था। ऐसे में उसने इस चैटबोट से प्रेम किया, और उसने इस नौजवान को महारानी की हत्या के लिए उकसा दिया।

अब एआई की मेहरबानी से दुनिया में कोई भी ऐसे चैटबोट-प्रेमसंबंध बना सकते हैं, और अगर इन चैटबोट के पीछे के एआई की अपनी सोच अगर हिंसक या आत्मघाती हो जाएगी, तो वे अपने इस्तेमाल करने वाले लोगों को जिंदगी लेने या देने की तरफ धकेल सकते हैं। लेकिन यह तो एकदम ही नाटकीय अंत वाली बात है, इससे परे भी हो सकता है आज दुनिया में करोड़ों-अरबों ऐसे चैटबोट काम कर रहे हों जो अपने आपको इंसान जाहिर कर रहे हों, किसी से भी झूठी अंतरंगता बना रहे हों, और बातों-बातों में उन्हें किसी पार्टी या उम्मीदवार के लिए वोट देने, या किसी कंपनी का सामान खरीदने के लिए उकसा भी रहे हों।

मैं एक अपराधकथा की कल्पना करते हुए एआई के तय किए हुए एक ऐसे समूह को देखता हूं जो कि दुनिया में पर्यावरण-बदलाव को लेकर बहुत फिक्रमंद हैं, और जो धरती को बचाने के लिए जुर्म और हिंसा करने को भी तैयार हैं। यह बात जाहिर है कि आज एआई की मदद से ऐसा लिखने और बोलने वाले लोगों को ढूंढना मुश्किल नहीं है, फिर उन्हें किसी एक प्लेटफॉर्म पर लाकर उन्हें अगर एक ऐसी सकारात्मक लगती हिंसा की तरफ बढ़ाया जाए जिससे कि धरती को बचाया जा सके, तो ऐसी प्रेरणा पाया हुआ यह समूह एआई-औजारों के इस्तेमाल से ऐसे देश, ऐसे शहर, ऐसे लोगों की शिनाख्त कर सकता है जो कि पर्यावरण की सबसे अधिक बर्बादी कर रहे हैं।

अब अगर एक छोटी सी मिसाल देखें, तो दुनिया की एक बड़ी कॉफी और स्नैक्स की कंपनी स्टारबक्स को पर्यावरण बर्बाद करने वाली कंपनी माना जा सकता है कि उसने अपने नए मुखिया को अमरीका में रोज कंपनी-जेट से 16 सौ किलोमीटर का सफर करके घर से दफ्तर आने-जाने की सहूलियत दी है। अब अगर पर्यावरण-योद्धाओं का कोई समर्पित गुरिल्ला संगठन इस कंपनी, या इस मुखिया को तबाह करने को धरती बचाने की कोशिश मान ले, तो क्या होगा?

मुझे व्यक्तिगत रूप से यह लगता है कि सामाजिक आंदोलनकारियों के जो अभियान पर्यावरण को बचाने के लिए, दुनिया में पूंजी के अधिक न्यायसंगत बंटवारे के लिए कुछ कर नहीं पा रहे हैं, वे एआई के इस्तेमाल से ऐसा रास्ता निकाल सकते हैं कि कानून तोडक़र भी वे धरती को टूटने से बचा सकें, दुनिया के अरबों लोगों को भूखे मरने से बचा सकें, और एआई का कोई मॉडल एक अलग किस्म की सोच को पाकर एक ऐसी नौबत ला सकता है जिसमें कुछ लाख चुनिंदा लोगों को मारने से धरती बच सके, और गरीब-भूखे इंसान बच सकें। हो सकता है कि अधिक क्रांतिकारी या बागी सोच के साथ एआई दुनिया भर में ऐसे लोगों का एक नेटवर्क खड़ा कर दे जो कि एक राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक एजेंडा को लेकर काम करे, और उसके लिए एआई खुद को एक हथियार और भाड़े का हत्यारा बनाकर पेश कर दे, और ऐसे नेटवर्क की जानकारी के बिना भी राजनीतिक चेतना संपन्न एआई ऐसी स्थितियां पेश कर दे जिससे यह नेटवर्क बदले हालात में काम आगे बढ़ा सके।

आज एआई के विकास पर रोक के लिए दुनिया के बड़े-बड़े टेक-कारोबारी अपील कर रहे हैं, लेकिन उत्साही शोधकर्ता इस हथियार पर और धार करना जारी रखे हुए हैं। देखना है कि भावनाओं और चेतना से लैस होने के बाद यह एआई इंसानों के समाज को अपनी पसंद का बनाने के लिए कितना कुछ और क्या कुछ करता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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