आजकल
एक महिला डॉक्टर से सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बलात्कार और उसकी हत्या से उबला और बिफरा हुआ बंगाल कल फिर सुलग गया जब दस साल की एक बच्ची की लाश मिली। उसके गायब होने की शिकायत पुलिस में दर्ज थी लेकिन पुलिस पर कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए गांव की भीड़ ने पुलिस चौकी में आग लगा दी, और वहां खड़ी गाडिय़ों को भी। इसी के साथ दूसरी खबर गुजरात की है। वहां एक नाबालिग लडक़ी से उसके दोस्त की मौजूदगी में ही दो लोगों ने वडोदरा शहर के बाहरी हिस्से में बलात्कार किया। जिस वक्त गुजरात में चल रहे विख्यात सालाना गरबा महोत्सव के आने-जाने वाले लोगों की भीड़ पूरी रात सडक़ों पर रहती है। ये दोनों स्कूटी पर आ रहे थे, और आधी रात के करीब दो दोपहियों पर पांच लोगों ने उन्हें रोका, और इनमें से एक ने लडक़े को पकडक़र रखा, और दो ने इस लडक़ी से बलात्कार किया। इसी रात महाराष्ट्र में पुणे शहर के किनारे पर अपने दोस्त के साथ जा रही एक युवती से तीन अनजान लोगों ने बलात्कार किया। उन्होंने इस पुरूष-दोस्त को उसके कपड़ों और बेल्ट से बांधकर घायल भी कर दिया था।
अब बंगाल की घटना तृणमूल कांग्रेस की मुख्यमंत्री ममता के राज की है, गुजरात की घटना भाजपा शासन की है, और महाराष्ट्र घटना भाजपा गठबंधन सरकार की है। इसलिए ये घटनाएं अभी अधिक बड़ा राजनीतिक मुद्दा नहीं बन रही हैं, कम से कम राष्ट्रीय स्तर पर। एक वजह यह भी हो सकती है कि मध्यप्रदेश में हरदा जिले की महिला कांग्रेस अध्यक्ष के पति ने शादी का झांसा देकर एक युवती से कई बार बलात्कार किया, और उसकी रिपोर्ट पर अब इसे गिरफ्तार कर लिया गया है। ऐसी ही खबरों को देखें तो दो दिन पहले यूपी में समाजवादी पार्टी के एक पूर्व विधायक रामेश्वर सिंह यादव, और उनके छोटे भाई जुगेन्द्र समेत चार लोगों पर 9 साल बाद बलात्कार का जुर्म दर्ज हुआ है। इन दोनों भाईयों के खिलाफ पहले से डेढ़ सौ से अधिक मुकदमे दर्ज हैं, दोनों अभी अलग-अलग जेलों में दूसरे जुर्मों में बंद हैं, और इनके खिलाफ बलात्कार के भी कई मामले दो बरसों में दर्ज हुए हैं। याद रखने की बात यह है कि 2017 से यूपी में भाजपा के योगी आदित्यनाथ ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं, और उनके राज में बलात्कार की खबरें आना कभी थमी नहीं हैं।
भारत के बारे में पूरी दुनिया में यह तस्वीर बनी हुई है कि यहां कोई भी महिला सुरक्षित नहीं है। और इस बात को देश पर सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ इसलिए नहीं माना जाना चाहिए कि दिल्ली जैसे एक राज्य को छोडक़र बाकी तमाम राज्यों में तो अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं, और सिर्फ दिल्ली में ही पुलिस केन्द्र सरकार के मातहत है। बाकी राज्यों में तो वहां की स्थानीय सरकारें पुलिस महकमा चलाती हैं, और जुर्म, कानून-व्यवस्था जैसे मामले प्रदेश सरकार के जिम्मे ही आते हैं। इसलिए देश के बाहर अगर भारत की इस बात को लेकर बदनामी है कि यहां कोई महिला या लडक़ी सेक्स-अपराधों के खतरे से परे नहीं हैं, तो इसे केन्द्र सरकार को अपनी बदनामी नहीं मानना चाहिए।
इस देश में बलात्कार सिर्फ आज की लडक़ों या मर्दों की उत्तेजना का नतीजा नहीं है, इसके पीछे भारतीय समाज की सदियों की सोच भी जिम्मेदार है, और समाज का आज का यह पाखंड भी जिम्मेदार है कि लडक़े-लड़कियों को मिलने-जुलने नहीं देना। जब किशोरावस्था के बाद जवान लडक़े-लड़कियों की देह तैयार हो जाती है, जब उनके तन-मन की जरूरतें बढ़ जाती हैं, तब भी उनका आपस में मिलना सामाजिक हिकारत का शिकार होता है, और उन्हें किसी होटल के बंद कमरे में मिलना जुर्म जैसे साए तले हो पाता है। एक स्वाभाविक हमउम्र प्यार को, सेक्स की जरूरत को, भारत में जिस तरह अनदेखा किया जाता है, उसके पीछे यह सामाजिक सोच भी है कि प्यार और सेक्स शादी के बाद की चीजें हैं। इस तरह जब प्यार और सेक्स को अवांछित करार दिया जाता है, तो लोग कम से कम सेक्स को पाने के लिए जुर्म करने को भी तैयार हो जाते हैं। भारत में सेक्सकर्मियों के कारोबार को कानूनी मान्यता नहीं है। इसलिए जिनके दिमाग पर सेक्स सवार रहता है, जो हिंसा की हद तक जाकर बलात्कार को भी तैयार हो जाते हैं, उनके पास पैसे खर्च करके सेक्स पाने का कोई आसान विकल्प नहीं रहता है। सेक्स कारोबार भारत में अभी भी जुर्म सरीखा है, और नतीजा यह होता है कि सेक्स-कुंठा के शिकार लोग आसपास के बच्चों तक को नहीं छोड़ते हैं।
दूसरी बात सामाजिक स्थिति की है, परिवारों के भीतर लड़कियों और महिलाओं को परिवारों के ही बड़े आदमियों की हिकारत और हिंसा का शिकार देखते हुए बड़े होने वाले बच्चे वैसी ही मानसिकता लेकर बालिग होते हैं। उन्हें यही समझ रहती है कि लड़कियां और महिलाएं बलात्कार के लायक हैं, हिंसा के लायक हैं। नतीजा यह होता है कि ऐसे नौजवान, अधेड़ और बूढ़े हो जाने पर भी ऐसी हिंसा को अपना हक मानते हैं, और परिवार में, समाज-व्यवस्था में, जाति-व्यवस्था में, आर्थिक पैमानों पर अपने से कमजोर लडक़ी या महिला को बलात्कार का सामान मानकर चलते हैं। दूसरी तरफ हमने यह देखा है कि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष जिस डंके की चोट पर संसद में भी बने रहे, और बहुत लंबे समय तक इस महासंघ पर भी काबिज रहे, भाजपा में भी बने रहे, और सुप्रीम कोर्ट के हुक्म पर ही दिल्ली पुलिस ने इस बाहुबली नेता के खिलाफ जुर्म दर्ज करके जांच शुरू की थी। इसलिए जब दुनिया की यह सबसे बड़ी संसद, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी अपने देह-शोषण के आरोपी को किसी कार्रवाई के लायक नहीं पाते, तो फिर यह बात एक मिसाल बनकर सब पर लागू हो जाती है, हर किसी का हौसला बढ़ा देती है।
लोकतंत्र सिर्फ अदालत से चलने वाली व्यवस्था नहीं हो सकती कि किसी प्रदेश में होने वाले सबसे चर्चित बलात्कार की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाए, और उसकी निगरानी में कई तरह के हुक्म हो, और उससे देश सुधर जाए। देश को चलाने का सबसे बड़ा जिम्मा राजनीतिक दलों के नेताओं की अगुवाई में चलने वाली सरकारों का है। लोकतंत्र के दो और स्तंभों, विधायिका, और न्यायपालिका की भूमिकाएं सरकार के मुकाबले कम दखल की रहती हैं। और आज इन दोनों की कोई दिलचस्पी देश में बलात्कार घटाने में नहीं है, बल्कि सिर्फ इसमें है कि किस तरह अपने करीबी बलात्कारियों को बचाया जाए, और विरोधियों के करीबी बलात्कारियों के खिलाफ जुलूस निकाले जाएं।
देश की जिस संसद को बलात्कार घटाने के लिए एक गंभीर चर्चा करनी थी, वह इतनी भयानक गुटबाजी में फंसी हुई है, उसमें सत्ता और विपक्ष के गठबंधनों का इतना मजबूत ध्रुवीकरण है कि वहां पर किसी तरह की उन्मुक्त चर्चा मुमकिन ही नहीं है। बल्कि संसद के हाल को देखें तो ऐसा लगता है कि इस देश में किसी संसदीय बहस की जरूरत नहीं है, और अलग-अलग राजनीतिक दलों के कोई एक प्रतिनिधि भी अपनी सांसद-संख्या के मुताबिक वोट डाल दें, वही काफी होगा, किसी चर्चा की जरूरत ही क्या है? यह नौबत इस देश में बलात्कार के पीछे की सामाजिक हकीकत पर, कानूनी कमजोरियों पर कभी गंभीर चर्चा नहीं होने देगी, और बलात्कार को महज एक पुलिस और अदालत का मामला मानकर यह देश कभी इस हिंसा पर काबू नहीं पा सकेगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)