आजकल

आजकल : इतना खनकता कंगना !
07-Sep-2020 5:38 PM
आजकल :  इतना खनकता कंगना !

लगातार पढऩे वाले पाठकों से भी कई बार कुछ मुद्दों पर लिखने की सिफारिश मिलती है। अभी एक ने अर्नब गोस्वामी का एक वीडियो भेजा, और उसके साथ लिखा कि महाराष्ट्र सरकार के लोगों के बारे में यह कैसी जुबान में कहा जा रहा है, इस बारे में मुझे लिखना चाहिए। अर्नब गोस्वामी की कोई भी वीडियो क्लिप खोलना मैंने बरसों से बंद कर दिया है क्योंकि अपने खुद के शहर की, अपने घर-दफ्तर के आसपास की नालियां जाम रहती हैं, और गंदगी वहां दिखती रहती है। ये पत्रकार साथी चाहते थे कि मैं इस पर लिखूं ताकि वे बाद में मुझे मेरे नाम सहित अपनी वेबसाईट पर प्रकाशित भी कर सकें, लेकिन किसी दोस्त की सिफारिश पर भी मैं इतनी गंदगी में उतरना नहीं चाहता। एक रूपए का सिक्का अगर नाली में गिर जाए, तो मैं उसे ढूंढने के लिए नाली में नहीं उतरूंगा। टीवी पर किसी किस्म की नफरत, हिंसा, साम्प्रदायिक भडक़ाऊ बकवास सुनकर अपना दिन क्यों खराब करना। 

लेकिन महाराष्ट्र सरकार इन दिनों खबरों के घेरे में आई है, और सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया शिवसेना शायद लंबे समय बाद एक बेहूदे बवाल में फंस गई है जिसमें से कोई इज्जतदार रवानगी थोड़ी मुश्किल दिख रही है। ऐसा भी नहीं है कि अलग-अलग किस्म के बवाल को शिवसेना को कोई परहेज रहा हो, और अपनी संस्थापक बाल ठाकरे के वक्त से शिवसेना तरह-तरह के विवादों और बवालों से बुरी शोहरत और अच्छी ताकत पाते रही है। इसलिए अभी जब शिवसेना के अखबार के संपादक और उसके मीडिया-चेहरा संजय राऊत ने जब फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत (या रनौत) से एक सार्वजनिक टकराव मोल लिया, तो वह कुछ अधिक दूर तक चले गया। विपक्ष में रहने वाली शिवसेना की जुबान तेजाबी और तीखी रहती है, लेकिन इस बार उसे अपनी टक्कर की एक जुबान कंगना की शक्ल में मिली है जिसके पीछे भाजपा और केन्द्र सरकार जमकर खड़ी दिख रही हैं। 

दरअसल यह बवाल कंगना और शिवसेना के भी पहले से सुशांत राजपूत नाम के अभिनेता की मौत से चल रहा है जिसे बिहार सरकार, और बिहार में चुनाव लडऩे जा रहे गठबंधन में भागीदार भाजपा मौत से परे कुछ साबित करने पर उतारू हैं, और सुशांत राजपूत बिहार का सपूत करार देते हुए यह साबित करने की कोशिश हो रही है कि महाराष्ट्र की पुलिस इस मौत की जांच करने की क्षमता और शायद नीयत नहीं रखती। यह बात मेरी साधारण समझ से परे की है कि महाराष्ट्र पुलिस की इस मौत में किसी को बचाने, या किसी को फंसाने की क्या नीयत हो सकती है। यह तो एक मौत है, जो खुदकुशी साबित हो तो केस बंद हो जाएगा, जो कत्ल साबित हो तो शक के घेरे में आए लोगों पर मुकदमा चलेगा, और इनमें से कोई भी सरकार का हिस्सा नहीं है। लेकिन जिस तरह से बिहार के डीजीपी ने एक सार्वजनिक मोर्चा खोलकर, उसे लगातार जारी रखकर उसे बिहार की अस्मिता का मुद्दा बनाया, उसे बिहार चुनाव तक जारी रखने का एक चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश हुई, जिस हलकट-जुबान में डीजीपी ने मुम्बई की एक अभिनेत्री के बारे में बयान दिया, जिन अनगिनत शब्दों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चापलूसी की, उन सबको देखते हुए यह शक होना नाजायज नहीं होगा कि यह सब एक मौत का चुनावी इस्तेमाल होने जा रहा है, बल्कि डीजीपी खुद चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। 

सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ, बिहार सरकार ने जिस जोर-शोर के साथ सुशांत राजपूत की मौत की जांच करने के लिए अपनी पुलिस मुम्बई भेज दी, मुम्बई में क्वारंटीन नियमों पर अमल की वजह से उसने यह शिकायत की कि मुम्बई पुलिस बिहार पुलिस को जांच नहीं करने दे रही है, और बिहार सरकार की मांग पर, महाराष्ट्र के तमाम विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार ने मुम्बई में हुई मौत की सीबीआई जांच का हुक्म दे दिया। 

यह सिलसिला बड़ा अटपटा चल रहा था, और इसमें सौ-पचास दूसरे लोग अपने-अपने बयानों के तीर भी चला रहे थे, और इस बीच जाने कहां से कंगना ने मोर्चा सम्हाल लिया, और हमला सीधे शिवसेना पर किया। या अधिक सही यह कहना होगा कि कंगना के बयानों पर शिवसेना ने हमला किया, और फिर यह छोटी बयानबाजी एक बड़ी जंग में तब्दील हो गई, जिसका एक नाटकीय मोड़ अभी इस पल खबरों में आ रहा है कि केन्द्र सरकार ने कंगना को मुम्बई जाने के ठीक पहले वाई केटेगरी की सुरक्षा दे दी है। मतलब यह कि वह केन्द्रीय सुरक्षा बल की बंदूकों के घेरे में मुम्बई पहुंचेगी, और शिवसेना का उसे वहां आने न आने देने को लेकर दिया गया बयान किनारे रह जाएगा। जिस जुबान में कंगना ने शिवसेना से बहस शुरू की है, वह हमें पिछले कई दशकों में शिवसेना के लिए किसी और के मुंह से सुनाई नहीं दी थी। अब हालत यह है कि या तो सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया खुद ही कानून तोडक़र कंगना के आने के खिलाफ बवाल खड़ा करे, या फिर अपने ही किए हुए दम-खम के दावों, और धमकियों को भूलकर घर बैठे। 

आज जब देश जमीनी दिक्कतों, मुसीबतों के बीच मरने की नौबत में है, तब देश के कुछ राज्य, केन्द्र सरकार में सत्तारूढ़ पार्टी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा हिस्सा, और सोशल मीडिया का उससे भी बड़ा हिस्सा इस बकवास को लेकर बहस में उलझे हुए हैं। टीवी के पर्दों को देखें तो लगता है कि इस देश में परसों तक अकेला सुशांत राजपूत राष्ट्रीय मुद्दा था, फिर कल उसकी प्रेमिका रही रिया चक्रवर्ती नाम की अभिनेत्री राष्ट्रीय मुद्दा बन गई, और आज तो महज कंगना ही कंगना खनक रहा है। यह कंगना इस कदर खनक रहा है कि देश के भूखों, बीमारों, बेरोजगारों, और कोरोना से कराहते या मरते लोगों की आवाजें भी दब गई हैं। यह पूरा देश एक गैरमुद्दे को अकेला राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर उसमें उलझ गया है, या उलझा दिया गया है। 

केन्द्रीय रेलमंत्री रहते हुए ममता बैनर्जी जब बंगाल जाती थीं, तो वहां सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार की सुरक्षा पर भरोसा करने के बजाय वे रेलवे पुलिस के घेरे में जाती थीं। खैर वे तो फिर भी केन्द्रीय मंत्री थीं। अब जिस अंदाज में कंगना को देश की दूसरे-तीसरे दर्जे की हिफाजत दी गई है, वह कई किस्म के सवाल खड़े करती है। हम इसमें केन्द्र सरकार को अधिक कुसूरवार नहीं मानते क्योंकि महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने जिस जुबान में कंगना के लिए सार्वजनिक बयान दिया था, और जिस जुबान में सत्तारूढ़ शिवसेना के बयान आ रहे थे, उन्हें देखते हुए केन्द्र सरकार ऐसी हिफाजत दे भी सकती थी, जो कि बहुत नाजायज नहीं कही जा सकतीं। 

लेकिन दिक्कत यह है कि जिस जुबान में महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री और शिवसेना के प्रवक्ता एक अभिनेत्री से उलझे हैं, उससे महाराष्ट्र सरकार की स्थिति कमजोर हुई है। एक विपक्षी पार्टी के रूप में अराजकता की बातें शिवसेना के लिए नई नहीं होतीं, लेकिन एक सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में उसे अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए थी, और वह चूक गई। किसी निजी टीवी चैनल के एंकर तो कितनी भी हिंसक और भडक़ाऊ, साम्प्रदायिक और अश्लील बातें कर सकते हैं, अपनी मौजूदगी में लाईव टेलीकास्ट में मां-बहन की गालियां प्रसारित करवा सकते हैं, लेकिन एक सरकार की अपनी सीमाएं होती हैं, महाराष्ट्र के गृहमंत्री का यह बयान कि अगर कंगना को मुम्बई सुरक्षित नहीं लगता है, तो उन्हें यहां नहीं आना चाहिए, यह सरकारी ओहदे की जिम्मेदारियों से परे की बात थी।

सुशांत राजपूत की मौत के अलग-अलग कई पहलुओं, और उसकी लाश पर रोटी सेकते बाकी दर्जनों लोगों के बयान अलग रहे, लेकिन एक राज्य को ऐसे विवाद में नहीं उलझना चाहिए। जहां तक कंगना का सवाल है, तो वह तो कमर कसकर, हाथ में तलवार लेकर केन्द्र सरकार में अगले किसी ओहदे की तरफ बढ़ती हुई दिख रही है, और सोशल मीडिया ऐसे मजाक से भी भरा हुआ है कि स्मृति ईरानी को सम्हल जाना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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