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जिम्मेदार लोगों की बदनसीबी में भड़ास में जीने के सिवा कुछ नहीं
05-Sep-2021 4:31 PM
जिम्मेदार लोगों की बदनसीबी में भड़ास में जीने के सिवा कुछ नहीं

अमेरिका में अभी एक नई बहस छिड़ी है कि जिन लोगों ने कोरोना की वैक्सीन नहीं लगवाई है, उन्हें हवाई जहाज में चढऩे दिया जाए या नहीं? वहां सरकार ने वैक्सीन लगवाने का फैसला तो लोगों पर छोड़ा है, लेकिन वहां भारत जैसी हालत भी नहीं है कि विमान में चढऩे के पहले वैक्सीन सर्टिफिकेट दिखाना पड़े या कोरोना नेगेटिव होने का सर्टिफिकेट दिखाना पड़े। अमेरिका में लोग अपनी निजी स्वतंत्रता को लेकर अधिक जागरूक या, बेहतर होगा यह कहें कि, अधिक अडिय़ल है। उनमें से बहुत से लोग तो मास्क लगाने से भी इंकार कर देते हैं कि यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। वैक्सीन न लगवाने वाले भी बहुत से जिद्दी लोग हैं जिनका कई किस्म का तर्क रहता है। लेकिन महज अमेरिकी लोगों को ही जिद्दी क्यों कहें, हिंदुस्तान के इतिहास को देखें तो जब कस्तूरबा गांधी की तबीयत बहुत खराब हुई थी, और पुणे के आगा खान महल में वे महात्मा गांधी के साथ रखी गई थीं, तब अंग्रेज डॉक्टर उन्हें देखने आया था। उसने जब पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाने की तैयारी की तो गांधी उससे इस बहस में उलझ गए कि किसी दवा को इंजेक्शन से शरीर में डालना प्रकृति के खिलाफ है। और इनके बीच कुछ बातचीत के बाद वह इंजेक्शन नहीं लग पाया, और दवा मौजूद रहते हुए भी कस्तूरबा चल बसी थीं। तो गांधी की जिद ने कस्तूरबा की जान ले ली थी। आज भी गाँधी होते तो कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाते क्योंकि वह प्रकृति के खिलाफ होती। उसी तरह अमेरिका में बहुत से लोग जिद पर अड़े हुए हैं कि वे वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि वैक्सीन न लगवाने वाले लोगों का नुकसान और खतरा वे लोग क्यों झेलें जो कि वैक्सीन लगवा चुके हैं? बात सही भी है, गैरजिम्मेदार लोगों के हिस्से का नुकसान जिम्मेदार लोग क्यों झेलें ?

लेकिन अमेरिका और टीकों से परे की बात देखें तो भी दुनिया भर में यह देखने मिलता है कि किसी कार्यक्रम में समय पर पहुंचने वाले लोग अपने वक्त की बर्बादी करते उन लोगों का इंतजार करने को मजबूर रहते हैं जो देर से आने की आदत रखते हैं और कार्यक्रम जिनके लिए इंतजार करते रहता है। और तो और अपनी खुद की शादी में दूल्हा-दुल्हन कई बार दावत में इतनी देर से पहुंचते हैं कि वहां आए हुए मेहमान उनके इंतजार में खड़े रहते हैं। किसी बैठक में भी यही होता है कि समय पर पहुंचे हुए लोग अपने मन में खुद को और लेट-लतीफ लोगों को कोसते हुए बैठे रहते हैं, और देर से आने वाले लोग मजे से हंसते-मुस्कुराते पहुंचते हैं।

जो लोग सिगरेट-बीड़ी नहीं पीते हैं, उन्हें किसी जगह पर मौजूद दूसरे ऐसे लोग तकलीफ देते हैं, लेकिन ऐसे अनचाहे धुंए को झेलने के लिए मजबूर लोग नुकसान पाते हुए वहां खड़े या बैठे रहते हैं। हिंदुस्तान में यह सिलसिला इतना अधिक है कि बहुत से लोगों को यह अफसोस होता है कि वे इतने असभ्य देश में पैदा क्यों हुए हैं जहां एक काल्पनिक इतिहास के ऊपर तो सबको गर्व है, लेकिन आज मौजूद शर्मनाक वर्तमान पर किसी को शर्मिंदगी नहीं है। अभी छत्तीसगढ़ में भाजपा की एक बड़ी नेता और छत्तीसगढ़ की प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने कहा कि भाजपा के लोग एक बार थूक दें तो भूपेश बघेल की पूरी सरकार बह जाएगी। बात सही भी हो सकता है क्योंकि भाजपा छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक सदस्यों वाली पार्टी होने का दावा करती है, और उसके बहुत से लोग तंबाकू-गुटखा खाकर इतना इतना थूक उगलते हैं कि हो सकता है कि एक सैलाब आ जाए। जो लोग सार्वजनिक जगहों पर नहीं थूकते हैं उन्हें ही दूसरों का ऐसा थूका हुआ अधिक खटकता है। जो लोग हर कुछ देर में किसी ना किसी साफ-सुथरी और सार्वजनिक जगह को देखकर थूकने में लग जाते हैं, उन्हें तो भला क्या बुरा लगता होगा।

किसी संपन्न कॉलोनी में भी रहने वाले लोगों को आसपास के असभ्य पड़ोसियों और उनके मेहमानों की बदतमीजी को झेलना पड़ता है, जिनकी गाडिय़ां आड़ी-तिरछी खड़ी रहती हैं, जो घरों के बाहर जोर-जोर से फिजूल की बात करते हुए मोबाइल फोन लिए टहलते रहते हैं, आते जाते घर की घंटी की जगह हॉर्न बजाते हैं और रास्ता रोकते हैं, और अड़ोस-पड़ोस की दीवार पर पेशाब करने में जुट जाते हैं। ऐसे लोग गिनती में बहुत कम रहते हैं जो अपने घर आने वालों या अपने मेहमानों को तमीज याद दिलाने की जहमत उठाएं। अधिकतर लोग दूसरों के प्रति किसी भी जिम्मेदारी को लेकर पूरी तरह बेफिक्र रहते हैं और अपने अधिकारों का दावा करने के लिए उतने ही चौकन्ने रहते हैं।

हिंदुस्तानी लोगों का यह मिजाज बड़ा ही दिलचस्प है कि हर सुबह अपने घर-दुकान के सामने का कचरा झाड़ू से सडक़ के दूसरी तरफ कर दें, मानो सडक़ एक सरहद है और उसकी दूसरी तरफ कोई दुश्मन देश है। एक बार दुनिया के सभ्य देशों में जाकर जो हिंदुस्तानी लौटते हैं उनका मोटा-मोटा अंदाज यह रहता है कि वहां जैसी सभ्यता, वहां जैसी साफ-सफाई और साफ हवा, तमीज हिंदुस्तान में सैकड़ों बरस तक नसीब नहीं होनी है। यहां पर लोग दूसरे लोगों की गंदगी और गलतियों की तकलीफ भुगतने के लिए मजबूर रहते हैं, और गंदगी फैलाने वाले, परेशानी फैलाने वाले लोग इस हद तक बेशर्म रहते हैं कि उन्हें शायद इस बात का एहसास भी नहीं होता कि वह कुछ गलत कर रहे हैं।

हिंदुस्तान की सडक़ों पर देखें तो दारु पिए हुए या दूसरे किस्म के नशे में गाड़ी चलाने वाले लोगों की संख्या कम नहीं रहती है। लेकिन लोग उन्हें रोक नहीं सकते क्योंकि रोकने का काम पुलिस का है, और पुलिस उन्हें कई वजहों से नहीं रोकती क्योंकि एक तो उसकी क्षमता इतनी गाडिय़ों और ड्राइवरों को जांचने की नहीं है, दूसरा यह कि इनमें से जो पिए हुए रहते हैं उनसे कुछ कमाई हो जाती है, इसलिए भी वह उन्हें जाने देते हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि सडक़ों पर पिए हुए लोग दूसरों पर खतरा रहते हैं। वे अपनी जान खतरे में डालें न डालें, दूसरों को कुचल सकते हैं। ऐसे में सडक़ों पर जिम्मेदारी से चलने वाले लोगों के क्या अधिकार हैं जिससे वे पिए हुए या नशे में लोगों को रोक सकें ? जो जिम्मेदार हैं उनके कोई अधिकार नहीं है, और जो गैरजिम्मेदार हैं उन पर कोई रोक नहीं है। हिंदुस्तान में सार्वजनिक जगहों का यही हाल है।

लोग अपने बच्चों को महंगी गाडिय़ां खरीद कर देते हैं जिनमें से बच्चे किसी के साइलेंसर फाड़ देते हैं, किसी के हेडलाइट को बदल देते हैं, किसी में प्रेशर हॉर्न लगवा लेते हैं, और दूसरों का जीना हराम करते चलते हैं। कभी-कभार भूले-भटके कोई अफसर ऐसी कुछ दर्जन गाडिय़ों पर कोई कार्यवाही करवा दे तो करवा दे, वरना आमतौर पर किसी को इनमें कोई बुराई नहीं दिखती क्योंकि हमारा मिजाज ही ऐसा हो गया है कि इस देश में तकलीफ पाना लोगों की बदनसीबी है, पिछले जन्मों के कर्मों का नतीजा है,  और इसमें सरकार का या किसी और का दखल देना ठीक नहीं है।

कुल मिलकर जिम्मेदार लोगों की किस्मत में भड़ास में जीने के अलावा और कुछ नहीं है। अगले जन्म में किसी सभ्य देश में पैदा होने के लिए इस जन्म में कुछ नेक काम करते चलें।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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