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शिकायतचंद न बनें, न उन्हें बर्दाश्त करें
20-Feb-2022 1:43 PM
शिकायतचंद न बनें, न उन्हें बर्दाश्त करें

अपने आसपास बहुत से लोग हमें ऐसे देखने मिलते हैं जिन्हें अक्सर ही जिंदगी की किसी न किसी, या हर किसी, बात से शिकायत रहती है। नतीजा यह निकलता है कि उनके पास शिकायत, मलाल, या नाराजगी के अलावा आसपास के लोगों को देने के लिए और कुछ नहीं रहता। शायद ऐसे ही लोगों को ध्यान में रखते हुए अभी दुनिया में एक जगह एक ऐसा महीना मनाया गया जिसमें हिस्सा लेने वाले लोगों के लिए यह शर्त रखी गई कि वे इस पूरे महीने को बिना कोई शिकायत किए हुए गुजारेंगे। ऐसी कोशिश करने वाले लोगों के पास मनोवैज्ञानिकों का यह निष्कर्ष था कि लोग जब शिकायत करते हैं तो उनका दिमाग स्ट्रेस हार्मोन रिलीज करता है जो कि दिमाग के उन हिस्सों को नुकसान पहुंचाता है जो परेशानी का इलाज ढूंढने का काम करते हैं।

इस प्रोजेक्ट को डिजाइन करने वालों के पास यह वैज्ञानिक तथ्य भी है कि दिमाग के इस हिस्से को उस वक्त भी नुकसान पहुंचता है जब वे लगातार अनुपातहीन तरीके से दूसरों की शिकायत सुनते रहते हैं। इस विषय पर लिखी गई एक किताब में लेखक ने यह लिखा था कि शिकायतों से होने वाली परेशानी पैसिव स्मोकिंग जैसा नुकसान करती है जिसमें सिगरेट कोई और पी रहे हैं, लेकिन आसपास के लोगों को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसे प्रयोग में शामिल होने वाले लोगों ने अपने तजुर्बे लिखे हैं जिन्हें पढऩा और सुनना दिलचस्प हो सकता है।

लोग अपने आसपास के लोगों से बहुत बुरी तरह प्रभावित होते हैं। बहुत से लोगों का यह मानना रहता है कि कोई व्यक्ति उतने ही अच्छे हो सकते हैं जितनी अच्छाई उनके आसपास के सबसे करीबी पांच लोगों की औसत अच्छाई होती है। सयाने बड़े बुजुर्ग हमेशा संगत के बारे में कहते आए हैं कि संगत अच्छी रखनी चाहिए। यह बात दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं में अलग-अलग शब्दों में कही गई है, और चूंकि पुरूषवादी भाषा का हमेशा से बोलबाला रहा है इसलिए दार्शनिक बातें भी मानो महज पुरूषों के लिए कही जाती हैं, और कहा गया था- अ मैन इज नोन बाइ द कंपनी ही कीप्स। मतलब यह कि महिला तो अच्छी या बुरी तरह की संगत के लायक भी नहीं है, और महिला कैसे लोगों के साथ रहती है, या कैसे लोगों को साथ रखती है उससे भी कोई मायने नहीं रखता।

लेकिन आज के मुद्दे की बात पर लौटें, तो लोगों को बारीकी से यह सोचना चाहिए कि वे तमाम जिंदगी से और तमाम लोगों से अपनी शिकायतों को कम कैसे कर सकते हैं? जिस तरह एक गिलास में आधे भरे पानी को देखकर आधी खाली ग्लास पर अफसोस भी किया जा सकता है, और आधे भरे पानी की खुशी भी मनाई जा सकती है, उसी तरह असल जिंदगी भी रहती है। लोग अंबानी की दौलत से अपनी तुलना करें, तो नवीन जिंदल भी बाकी पूरी जिंदगी मलाल मनाते काट सकता है, और नहीं तो जिनका पैर टूट गया है वे भी यह देखते हुए तसल्ली से जी सकते हैं कि जिन लोगों के दोनों पैर कट चुके हैं वे लोग भी जिंदा रहते हैं, और नकली पांवों के साथ एवरेस्ट भी जीतकर आ जाते हैं।

लोगों को दुनिया में नकारात्मकता कम करने के लिए सबसे पहले अपनी सोच को सकारात्मक बनाना चाहिए और स्थायी रूप से चौबीसों घंटे मलाल का गमी का जलसा मनाना बंद करना चाहिए। ऐसा करने पर लोगों को यह समझ में आएगा कि जिंदगी की बहुत सी तकलीफें तो अपनी ही सोच से पैदा होती है, और अपनी कुछ तकलीफों के बारे में पूरे वक्त सोचने और लोगों से बार-बार कहने की वजह से उन तकलीफों की गूंज अपने ही दिल-दिमाग में भर जाती हैं, और कई गुना अधिक तकलीफ देती हैं। अपनी जिंदगी से हताश-निराश लोग  मानो दुनिया की शिकायत करते हुए अपने ही बारे में इतना बुरा बोलने लगते हैं कि धीरे-धीरे उनके शब्द उन पर ही खरे उतरकर यह साबित करने लगते हैं कि अगर यही बात उन्हें इतनी पसंद है, तो फिर यही सही। वैसे भी किसी समझदार इंसान ने कभी कहा था कि अपने खुद के बारे में भी कभी बहुत बुरा नहीं बोलना चाहिए क्योंकि बंद घड़ी का बताया वक्त भी हर दिन दो बार तो सही निकलता ही है।

फिर यह बात भी समझना चाहिए कि शिकायतों से लिपटे हुए जीने वाले लोगों से आसपास के समझदार लोग भी थककर कतराने लगते हैं। सिर्फ वे ही लापरवाह लोग आसपास रह जाते हैं जिन्हें इस नकारात्मकता से खुद को होने वाले नुकसान की फिक्र नहीं रहती। जबकि संक्रामक रोग की तरह शिकायती जिंदगी लगातार लोगों को और शिकायतों का अहसास कराती चलती है, और यह सिलसिला अपने भीतर भी बढ़ते चलता है, और अपने इर्द-गिर्द भी। इसलिए समझदार लोगों को शिकायतों के इस जाल में फंसने से बचना चाहिए, चाहे यह खुद की कही जा रही शिकायतें हों, या कि दूसरों से सुनी गई शिकायतें हों। शिकायतों को सुनना भी तभी चाहिए जब किसी सरकारी या निजी नौकरी के तहत शिकायतों को सुनने और दर्ज करने के लिए तनख्वाह मिलती हो। जब तक रोजी-रोटी न जुड़ी हो, लोगों को लगातार शिकायतें सुनने से भी मना कर देना चाहिए क्योंकि हर शिकायत का इलाज तो उस कथित ईश्वर के पास भी नहीं है जिसे कि सब कुछ जानने वाला सर्वज्ञ कहा जाता है।

कुल मिलाकर एक महीना ऐसा गुजारकर देखें जिसमें जिंदगी से, लोगों से, दुनिया से कोई शिकायत न रहे, और हो सकता है कि महीना गुजरने तक आपको यह अहसास होने लगे कि आप एक बेहतर दुनिया में, बेहतर लोगों के बीच, एक बेहतर जिंदगी जी रहे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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