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आपस के रिश्तों में मशगूल हिन्दुस्तानी कोर्ट और सरकार
17-Jul-2022 3:48 PM
आपस के रिश्तों में मशगूल हिन्दुस्तानी कोर्ट और सरकार

केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने अदालतों और देश की न्याय व्यवस्था से अपील की है कि आजादी की 75वीं सालगिरह, 15 अगस्त 2022 पर अधिक से अधिक विचाराधीन कैदियों को रिहा करने की कोशिश की जाए। उन्होंने कल जयपुर में 18वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा अथॉरिटी के आयोजन में न्याय व्यवस्था से यह अपील की। उन्होंने कहा कि देश के हर जिले में विचाराधीन कैदियों के मामलों पर विचार करने के लिए जिला जज की अगुवाई में रिव्यू कमेटी हैं, और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को दिलचस्पी लेकर इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए, और अधिक से अधिक लोगों को रिहा करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग पैसे वाले हैं, वे काबिल वकीलों की सेवाएं ले सकते हैं। अगर वकील एक-एक पेशी का दस-पन्द्रह लाख रूपए तक लेते हैं तो आम लोग यह खर्च कैसे उठा सकते हैं? उन्होंने कहा कि अदालतें सिर्फ ताकतवर लोगों के लिए नहीं हो सकतीं, और उनके दरवाजे सभी के लिए खुले रहने चाहिए।

इसी कार्यक्रम में मंत्री की बातों के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि देश में अदालती मामलों के बढऩे की मुख्य वजह अदालती कुर्सियों का खाली रहना है। उन्होंने कहा कि आज कि जजों की कुर्सियां खाली पड़ी हैं, और अदालती ढांचे में साधन-सुविधा की कमी भी है, इस वजह से भी सुनवाई और फैसलों में वक्त लगता है, और मामले बढक़र करोड़ों में पहुंच गए हैं। उन्होंने कहा कि आज जजों के मंजूर पद भी दस लाख आबादी पर बीस जजों के हैं, जो कि बहुत ही नाकाफी हैं। जब तक जिला अदालतों का ढांचा मजबूत नहीं होगा, न्याय व्यवस्था की बुनियाद मजबूत नहीं होगी।

कानून मंत्री और मुख्य न्यायाधीश की मंच और माइक से औपचारिक बातों की एक सीमा रहती है, और उनसे बहुत सी सच्चाईयों पर बोलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। जो लोग भारत की न्याय व्यवस्था से जूझते हैं, वे जानते हैं कि न्याय व्यवस्था का एक हिस्सा, जांच और मुकदमा चलाने वाली एजेंसियों का भ्रष्टाचार भी अदालती बोझ बढऩे की एक बड़ी वजह है। पुलिस से लेकर दूसरी जांच एजेंसियों तक के काम में भारी भ्रष्टाचार रहता है, और इससे गुजरते हुए भी जब कोई मामला अदालत तक पहुंचता है, तो न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार कोई अनसुनी या अनोखी बात नहीं है। लोगों को याद होगा कि सुप्रीम कोर्ट के जजों के भ्रष्ट होने का आरोप लगाने वाले देश के दो सबसे बड़े वकीलों, शांतिभूषण और उनके बेटे प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना का मुकदमा भी चलाया गया था, और पिता-पुत्र ने कोई माफी मांगने से इंकार भी कर दिया था। फिर भ्रष्टाचार सिर्फ आर्थिक भ्रष्टाचार हो यह भी जरूरी नहीं है, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के जजों के बीच एक और किस्म का भ्रष्टाचार बड़ा आम है, उनके रिटायर होने के बाद पुनर्वास की उनकी महत्वाकांक्षा। आज देश-प्रदेश में सैकड़ों ऐसी कुर्सियां तय की गई हैं जिन पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जजों को ही तैनात किया जा सकता है। इन ओहदों पर इन भूतपूर्व जजों को अगले कई बरस के लिए बंगला, गाड़ी, मोटा वेतन, इन सबकी सहूलियत रहती है, और  बहुत से जजों की नजरें इन पर टिकी रहती हैं। मानवीय स्वभाव को देखते हुए यह मानने की कोई वजह नहीं है कि सरकारों से ऐसे तोहफे की उम्मीद करने वाले जजों में से कुछ जज अपने आखिरी बरसों में ऐसे फैसले देते होंगे जो कि सरकार को खुश करने वाले रहते होंगे। हमने नौकरी के आखिरी महीनों में ऐसे फैसले देने वाले जज देखे हैं जो कि उसके तुरंत बाद किसी राजभवन में राज्यपाल होकर चले गए, या राज्यसभा चले गए।

जब तक हितों के टकराव का यह मामला निपटाया नहीं जाएगा, तब तक इंसाफ नाम के सिलसिले पर सरकारी असर का खतरा टलेगा नहीं। अदालतें अपने फैसलों में कई मामलों में हितों के टकराव का मुद्दा उठाती हैं, लेकिन खुद जजों के रिटायर होने के बाद उनकी मंजूर की जाने वाली कुर्सियों को लेकर हितों के टकराव की बात कभी नहीं उठती। हमने तो इसी जगह पर कुछ महीने पहले यह सुझाव भी दिया था कि कोई हाईकोर्ट जज जिन राज्यों में काम कर चुके हैं, उन राज्यों में उन्हें रिटायरमेंट के बाद कोई ओहदा नहीं मिलना चाहिए, ताकि वे अपने आखिरी बरसों में सरकार को खुश करने के खतरे से बच सकें। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर रिटायर्ड जजों के लिए तय की गई कुर्सियों को भी घटाना चाहिए, और उनके रिटायर होने के बाद कुछ बरस तक उनके किसी भी ओहदे पर जाने पर रोक लगानी चाहिए। यह मामला केन्द्रीय कानून मंत्री और मुख्य न्यायाधीश की कही बातों से अलग है, लेकिन जब देश की न्याय व्यवस्था पर असर रखने वाले ये दो सबसे बड़े लोग बात कर रहे हैं, तो उन्हें जजों के हितों के टकराव, और अदालती भ्रष्टाचार की बात याद दिलाना भी जरूरी है क्योंकि इस पर इन दोनों ने इस कार्यक्रम में कुछ नहीं कहा।

दरअसल सरकार में बैठे लोगों को भी यह बात सुहाती है कि वे जजों को रिटायर होने के बाद कुछ देने का अधिकार अपने पास रखें। जाहिर है कि लोग लेन-देन की मानवीय व्यवस्था को समझते हैं, और आज एक हाथ दिया, कल दूसरे हाथ लिया की व्यवहारिकता को भी जानते हैं। यह पूरा सिलसिला खत्म होना चाहिए। आज हिन्दुस्तान में आम लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था पर से पूरी तरह उठ चुका है। अदालत से इंसाफ पाने के बजाय अगर उनके पास मुम्बई के किसी माफिया के घर जाकर वहां से इंसाफ पाने का कोई विकल्प हो, तो शायद बहुत से लोग उसे बेहतर समझेंगे। आज हिन्दुस्तान की अदालतों में प्रक्रिया ही पनिशमेंट हो गई है। फैसला चाहे जो हो, मुकदमे के चलते हुए लोग बरसों तक जो यातना झेलते हैं, वह फैसले के बाद की संभावित सजा से अधिक हो जाती है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। भारत की न्याय प्रणाली में सुधार के लिए सरकार और अदालत को सामाजिक कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों को शामिल करना चाहिए, वरना सरकार और अदालत एक-दूसरे की बातों तक सीमित रह जाएंगे।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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