विचार / लेख

क्राइसिस में भी लालफीताशाही
08-May-2021 6:05 PM
क्राइसिस में भी लालफीताशाही

-गिरीश मालवीय

विदेश से जो मेडिकल मदद आ रही है उसको लेकर मोदी सरकार कितनी लापरवाह है ये भी समझ लीजिए।  25 अप्रैल को मेडिकल हेल्प पहली खेप भारतीय बंदरगाहों पर पुहंच गई थी उसके वितरण के नियम यानि स्ह्रक्क स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2 मई को जारी किए। यानी एक हफ्ते तक आई मेडिकल मदद एयरपोर्ट, बंदरगाहों पर यूं ही पड़ी रही। यानि केंद्र में बैठी मोदी सरकार को इस बारे में स्ह्रक्क बनाने में ही सात दिन लग गए कि इसे कैसे राज्यों और अस्पतालों में वितरण करे जबकि अगर आमद के साथ ही यह राज्यों में पहुंचना शुरू हो जाती तो कई मरीजों की जान बचाई जा सकती थी।

एक और बात है भारत सरकार विदेशों से आ रही मेडिकल मदद रेडक्रॉस सोसायटी के जरिए ले रही है, जो एनजीओ है। मेडिकल सप्लाई राज्यों तक न पहुंच पाने के सवाल पर रेडक्रॉस सोसायटी के प्रबंधन का कहना है कि उसका काम सिर्फ मदद कस्टम क्लीयरेंस से निकाल कर सरकारी कंपनी एचएलएल (॥रुरु) को सौंप देना है। वहीं, ॥रुरु का कहना है कि उसका काम केवल मदद की देखभाल करना है। मदद कैसे बांटी जाएगी, इसका फैसला केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय करेगा। स्वास्थ्य मंत्रालय इस बारे में चुप्पी साधे हुए है।

अभी भाई दिलीप खान की पोस्ट पर पढ़ा कि गुजरात के गांधीधाम के स्श्र्वं में जहा देश के कुल दो तिहाई ऑक्सीजन सिलेंडर बनते हैं वहा पिछले 10 दिनों से स्श्र्वं के सभी प्लांट्स में ताला बंद है। वजह ये है कि सरकार ने औद्योगिक ऑक्सीजन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन, आदेश में इन सिलेंडर निर्माता ईकाइयों को भी शामिल कर लिया गया। अभी हालत ये है कि सरकार विदेशों से भीख मांग रही है या फिर दोगुने-चौगुने दाम पर ऑक्सीजन सिलेंडर खरीद रही है। जो अपने कारखाने हैं, वहां ताला जडक़र बैठी हुई है।

मतलब आप सिर पीट लो कि ऐसे क्राइसिस में भी लालफीताशाही किस तरह से हावी है।

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