संपादकीय
आज देश के बहुत से प्रदेशों में 18 वर्ष से ऊपर वालों को लग रहे टीकों का नजारा सामने आया है जिसे देखकर दिल दहल रहा है। यह समझ नहीं पड़ रहा है कि ये टीके कोरोना से बचाव के लिए लग रहे हैं, या इन टीकों को लगाने के नाम पर लोगों के बीच कोरोना और फैलाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लेकर उत्तरप्रदेश और बिहार के बहुत से केंद्रों तक के वीडियो और फोटो सामने आ रहे हैं कि कैसे उनमें लोगों की कतारों में जमकर धक्का-मुक्की हो रही है। छत्तीसगढ़ में तो फिर भी आय वर्ग के हिसाब से तीन-चार अलग-अलग काउंटर बना दिए हैं, इसलिए यहां भीड़ थोड़ी सी बँटी है लेकिन उत्तरप्रदेश और बिहार में तो हाल भयानक है, और वहां मौजूद लोगों में मारपीट चल रही है, उसके वीडियो पोस्ट किए जा रहे हैं। लोग सोशल मीडिया पर लगातार लिख रहे हैं और मौके पर पहुंचे हुए समाचार एजेंसियों के लोगों को बता भी रहे हैं कि किसी तरह का कोई इंतजाम नहीं है, और पूरी की पूरी भीड़ एक दूसरे से धक्का-मुक्की में लगी हुई है।
लोगों को याद होगा कि 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बैठक की और उसके तुरंत बाद यह घोषणा कर दी गई कि 1 मई से पूरे देश में 18 से 44 वर्ष उम्र के लोगों को टीके लगाए जाएंगे, और इसका इंतजाम राज्य सरकार खुद करेंगी, वही इसकी खरीदी करेंगी, वही इसका भुगतान करेंगी, वही इसको लगाएंगी। केंद्र सरकार ने केवल इस आयु वर्ग की घोषणा कर दी और तारीख की घोषणा कर दी। आज नतीजा यह है कि देश की करीब आधी आबादी 18 से 44 बरस उम्र की है और वह टीके लगवाने के लिए एक साथ पहुंचने की हकदार हो गई हैं। कहने के लिए तो केंद्र सरकार ने एक मोबाइल एप्लीकेशन बना दिया है जिससे कि लोग अपना रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं, लेकिन आबादी का एक बड़ा तबका ऐसा है जो न स्मार्टफोन रखता और ना रजिस्ट्रेशन करा सकता, इसलिए वह तबका तो मौके पर ही पहुंच रहा है। टीकाकरण केंद्रों पर जो अंधाधुंध भीड़ दिख रही है और जितनी धक्का-मुक्की चल रही उससे एक बात तो है कि कोरोना टीकों से थमे या नहीं, कोरोना का फैलना तो आज ही तय हो गया है। लोगों को याद होगा कि 20 अप्रैल को हमने इस मुद्दे पर इसी जगह सम्पादकीय लिखा था कि जब तमाम काम राज्यों को ही करने हैं तो केंद्र सरकार कौन होती है जो यह तय करे कि 18 से 44 बरस के लोगों को टीके लगना 1 मई से शुरू होगा? आज न बाजार में टीके हैं, और न ही कंपनियां राज्यों को देने की हालत में हैं। जब मोदी सरकार को खुद को टीके देने थे तो कई किस्म के दर्जे बना दिए गए थे, पहले 60 बरस के ऊपर के लोग, फिर दूसरा दर्जा बना स्वास्थ्य कर्मचारी और फ्रंटलाइन वर्कर, फिर तीसरा दर्जा बना 45 वर्ष से ऊपर के दूसरी बीमारियों के शिकार लोग, और यह दर्जे अभी चल ही रहे हैं। जनवरी से अब तक केंद्र सरकार इन्हीं के लिए राज्यों को पूरी तरह से टीके नहीं दे पाई है। ऐसे में देश की आधी आबादी को 1 मई की तारीख बताकर टीकाकरण के लिए झोंक देना एक बहुत बड़ी गैरजिम्मेदारी का काम था जो कि मोदी सरकार ने अपने पहले के कुछ दूसरे कामों की तरह ही किया। जिस तरह बिना तैयारी के नोटबंदी की गई, बिना तैयारी के जीएसटी लागू किया गया, बिना तैयारी के लॉकडाउन किया गया, उसी तरह बिना किसी तैयारी के 1 मई से इतनी बड़ी आबादी के टीकाकरण की घोषणा कर दी गई। जब राज्यों को सब कुछ अपने ही दम पर करना था तो इस बात को भी राज्यों पर छोडऩा था और राज्य अपने हिसाब से तय करते कि वे पांच-पांच बरस आयु वर्ग के अलग-अलग समूह बनाकर उन्हें अलग-अलग तारीखों पर बुलाते और इस तरह का मजमा लगने की नौबत नहीं आने देते।
इस काम के लिए तो केंद्र सरकार के बड़े-बड़े जानकारों की जरूरत ही नहीं थी यह तो गूगल करके पता लगाया जा सकता था कि इस आयु वर्ग में कितनी आबादी आएगी और क्या उतनी आबादी को एक किसी तारीख को एक साथ टीकाकरण शुरू करना मुमकिन काम है? केंद्र सरकार ने राज्यों को एक बहुत मुसीबत में और देश की आबादी को एक बहुत बड़े खतरे में धकेल दिया है। आज देश में टीका सप्लाई की जो हालत है उसके चलते हो सकता है कि एक-दो बरस तक भी तमाम आबादी को टीके ना लग सके और यह भी हो सकता है कि एक बरस में जितने लोगों को टीके लगें उनको एक बरस के बाद फिर से इसका डोज देने की नौबत आने लगे। ऐसी हालत में लोगों को धक्का-मुक्की के लिए टीकाकरण केंद्रों पर इस तरह छोड़ दिया गया है। इसके तमाम खतरे हमने 20 अप्रैल के संपादकीय में ही गिनाये थे। और आज जगह-जगह से वैसा नजारा देखने मिल रहा है। पता नहीं इससे कोरोना थमेगा अधिक या फैलेगा अधिक। कोई हैरानी नहीं कि सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि देश भर में भंडारा खोलने की मुनादी के पहले प्रधानमंत्री को यह तो देखना था कि आटा-तेल बाजार में है या नहीं, और हलवाई है या नहीं? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)