संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हर्षवर्धन हैं ही ऐसे या फिर मसखरी की कोई लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं?
11-May-2021 5:28 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हर्षवर्धन हैं ही ऐसे या फिर मसखरी की कोई लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं?

इन दिनों हिंदुस्तान में पार्टियों को चुनाव लडऩे के लिए दूसरे देशों में जाकर प्रचार करना भी समझ आने लगा है। कर्नाटक के चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल के मंदिरों का दिनभर दौरा करके भारत के चुनाव आयोग के शिकंजे से बाहर भी थे, और हिंदुस्तान के हर टीवी चैनल पर भी दिनभर छाए हुए थे। अभी जब बंगाल में चुनाव चल रहा था तो मतदान के वक्त नरेंद्र मोदी बांग्लादेश के मंदिरों में घूम रहे थे और चुनाव आयोग का कोई शिकंजा उन पर नहीं था। नरेंद्र मोदी ने ही यह सिलसिला शुरू किया कि देश के बाहर बसे हुए प्रवासी भारतीयों के बीच चुनाव प्रचार या चंदा अभियान के लिए अमेरिका तक जाकर विशाल कार्यक्रम करना। जब देश में प्रशांत किशोर जैसे पेशेवर चुनावी रणनीतिकार लोकतांत्रिक चुनाव मैनेज करते हैं, और ममता बनर्जी को इतनी बड़ी जीत दिलाने में मददगार रहते हैं, पता नहीं चुनाव में क्या-क्या तरीके आजमाए जाने लगे हैं । ऐसे में चुनावों के बीच में भी कई किस्म के तरीकों का इस्तेमाल दिखता है, जो दिखता तो है लेकिन समझ में आसानी से नहीं आता है।

अब जब कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आलोचनाओं से कुछ अधिक घिरते दिखते हैं तो अचानक केंद्र सरकार के कोई मंत्री कोई ऐसा बयान जारी करते हैं कि हल्के-फुल्के मीडिया का खासा वक्त उसी की आलोचना में निकल जाए या उसकी चर्चा में निकल जाए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन जो कि आज हिंदुस्तान पर छाए हुए सबसे बड़े खतरे और हिंदुस्तान को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा रहे कोरोना से जूझने के लिए अकेले जिम्मेदार मंत्री रहने चाहिए, आए दिन मसखरी की बातें करके खबरों को अपनी तरफ खींचते हैं, और कोरोना के असली खतरे की तरफ से, सरकार की असली नाकामयाबी की तरफ से ध्यान बंटवा लेते हैं। पिछली बार उन्होंने लॉकडाउन और कोरोना के बीच मटर छीलते हुए अपनी तस्वीर पोस्ट की थी, और तबसे लेकर अब तक बीमारी और बचाव को लेकर बहुत ऐसे गैरगंभीर बयान दिए हैं जिससे वह तो खबरों में बने रहे और लोगों का गुस्सा भी ऐसे स्वास्थ्य मंत्री पर निकलते रहा। कुछ ही हफ्ते हुए हैं कि उन्होंने देश के सबसे घाघ कारोबारी रामदेव के फज़ऱ्ी मेडिकल दावों के साथ लांच की गई फज़ऱ्ी दवाओं को सर्टिफिकेट देते हुए मंच से उनका प्रचार किया था। लेकिन क्या वह अनायास ऐसा करते हैं या यह किसी प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार की सोची हुई हरकत रहती है कि प्रधानमंत्री को आलोचना से बचाने के लिए दूसरे लोगों को आलोचना के घेरे में लाया जाए और खबरों को उस तरफ मोड़ा जाए?

 अभी इसी स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन का ताजा बयान है कि कोरोना संबंधित तनाव दूर करने के लिए लोगों को 70 फ़ीसदी कोको कंटेंट वाली डार्क चॉकलेट खाना चाहिए। आज जहां इस देश में लोगों के रोजगार छिन गए हैं, लोग बिना तनख्वाह, बिना मजदूरी घर पर बैठने को मजबूर हैं, जहां केंद्र और राज्य सरकार के दिए हुए बहुत सस्ते या मुफ्त अनाज की वजह से लोग भूखे मरने से बच रहे हैं, वैसे में इस देश का स्वास्थ्य मंत्री लोगों को डार्क चॉकलेट खाने के लिए कह रहा है, ताकि वे कोरोना के तनाव से बच जाएँ! इस देश की 90 फ़ीसदी आबादी ऐसी महंगी चीज खरीदने की ताकत से परे है, और इस देश की 99 फ़ीसदी आबादी ने कभी डार्क चॉकलेट का नाम भी नहीं सुना होगा। यह कुछ उसी किस्म की बात है कि लोगों को प्रदूषण से बचने के लिए घरों को एसी करवा लेने और महंगे एयर क्लीनर लगवा लेने, और एयरकंडीशंड कार में चलने की नसीहत दे दी जाए। कई बार यह भी लगता है कि क्या कोई केंद्रीय मंत्री सचमुच इतना बेवकूफ हो सकता है कि वह ऐसी संवेदनाशून्य बातें करे? या फिर उसे बेवकूफी की ऐसी स्क्रिप्ट तैयार करके दी जाती है कि लोगों का ध्यान उसी की तरफ चले जाए? यह समझ पाना हमारे लिए नामुमकिन है क्योंकि इन दिनों जिस तरह से कोई राजनीतिक दल लाखों लोगों को सोशल मीडिया पर अपने भाड़े के मजदूरों की तरह इस्तेमाल कर सकता है, कर रहा है, वैसी बातें 10 बरस पहले तक किसने सोची थीं ? इसलिए आज जब देश के मीडिया का अधिकतर हिस्सा सत्ता का गोदी मीडिया होने का सार्वजनिक का तमगा पाकर भी उस कामयाबी पर खुश है, गौरवान्वित है, तब फिर ऐसे मीडिया की मदद से किसी गढे हुए बयान को इस्तेमाल करके आलोचनाओं को दूसरी तरफ मोडऩा एक सोचा-समझा काम भी हो सकता है? 

आज हम महज इसी एक मुद्दे पर शायद नहीं लिखते, लेकिन बिहार से एक दूसरा मामला सामने आया है जिसमें वहां के भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी खबरों के घेरे में हैं कि किस तरह उन्होंने अपनी सांसद निधि से खरीदी हुई दर्जनों एंबुलेंस बिना ड्राइवरों के खड़ी रखी हैं। बिहार के ही एक दूसरे बाहुबली यादव नेता पप्पू यादव ने इस मुद्दे को जोरों से उठाया, और आज बिहार सरकार ने कोरोना मरीजों के लिए दौड़-दौडक़र घूम-घूमकर काम करते हुए पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया कि वे लॉकडाउन के नियम तोड़ रहे हैं। अब बिहार के कुछ लोगों का यह मानना है कि नीतीश कुमार ने ऐसा करके एक तरफ तो राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए के एक भाजपाई नेता राजीव प्रताप रूडी को परेशानी में डाल दिया है क्योंकि पप्पू यादव का मामला जितना उठेगा उतना ही रूडी का निकम्मापन दिखेगा। दूसरी तरफ लालू यादव के जेल से बाहर आते ही उन्हें हीरो की तरह खड़े होने का मौका न देकर एक दूसरे यादव को गिरफ्तार करके उसे हीरो बनाया जा रहा है तो क्या यह भी नीतीश कुमार की एक और चाल है ? और क्या वे एक तीर से दो निशाने साध रहे हैं? बिहार के कुछ पत्रकारों ने इस किस्म की अटकल लिखी है जिसका कोई सुबूत तो हो नहीं सकता है लेकिन राजनीतिक अटकलें तो ऐसी ही लगती हैं। अब अगर नीतीश के इस काम को देखें जो कि जाहिर तौर पर अटपटा लग रहा है कि लॉकडाउन में रात-दिन लोगों की मदद करते पप्पू यादव को गिरफ्तार किया गया है, और दूसरी तरफ हर्षवर्धन इस बीमार देश की बेरोजगार और गरीब जनता को देश की सबसे महंगी आयातित डार्क चॉकलेट खाने का सुझाव देने की मसखरी कर रहे हैं । अब इसे क्या कहा जाए क्या नेता सचमुच इतने बेवकूफ हो सकते हैं कि घर में चावल ना हो तो बादाम खाकर पेट भरने की सलाह दे दे? यह देश की जनता पर भी है कि वह सोचे कि आज के हालात के जिम्मेदार कौन लोग हैं, कटघरे में किसे होना चाहिए, और उनकी तरफ नजरें ना जाएं इसलिए कुछ दूसरे लोग फुटपाथ पर खड़े होकर मदारी की तरह हरकतें कर रहे हैं, तिलिस्मी ताबीज बेचने जैसी हरकतें कर रहे हैं। यह सिलसिला मासूम लगता तो नहीं है, आगे प्रशांत किशोर जैसे किसी पेशेवर को हकीकत मालूम होगी।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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