सामान्य ज्ञान
चेचक की महामारी बहुत पुरानी है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। मिश्र में 1200 वर्ष ईसा पूर्व की एक ममी पाई गई थी, जिसकी त्वचा पर चेचक के समान दाग उपस्थित थे। विद्वानों ने उसका चेचक माना। चीन में भी ईसा के कई शताब्दी पूर्व इस रोग का वर्णन पाया जाता है। छठी शताब्दी में यह रोग यूरोप में पहुंचा और 16वीं शताब्दी में स्पेन निवासियों द्वारा अमरीका में पहुंचाया गया। कहा जाता है कि महामारी के रूप में इसका आरंभ सन 544 से हुआ। 569 ईसवी में यह महामारी क़ुस्तुनतुनिया पहुंची और दसवीं शताब्दी ईसवी तक एशिया के समस्त देशों में फैल गयी और चिकित्सक इसका उपचार नहीं कर पा रहे थे। अ_ारहवीं शताब्दी में यूरोप में यह महामारी बड़ी तेज़ी से फैली और एक साधारण अनुमान के अनुसार सौ वर्ष में लगभग छह करोड़ लोग इसकी भेंट चढ़ गए। चेचक विषाणु जनित रोग है ,इसका प्रसार केवल मनुष्यों में होता है ,इसके लिए दो विषाणु उत्तरदायी माने जाते है वायरोला मेजर और वायरोला माइनर।
इसी दौरान साक्ष्यों से यह पता चला कि यदि किसी व्यक्ति के एक बार चेचक निकल आए तो फिर वह इस महामारी से सदैव के लिए सुरक्षित हो जाता है। सन 1718 में यूरोप में लेडी मेरी वोर्टले मौंटाग्यू ने पहली बार इसकी सुई प्रचलित की और सन 1796 में एडवर्ड जेनर ने इसके टीके का आविष्कार किया। ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर को आरंभ से ही चेचक की रोकथाम में रुचि थी। इस ब्रिटिश चिकित्सक ने गाय की चेचक के द्रव लेकर एक वर्ष के स्वस्थ बच्चे जेम्स फि़प्स के शरीर में दाखिल कर दिए। यह ऐतिहासिक परिक्षण उन्होंनेे 14 मई वर्ष 1796 को किया। दो महीने बाद उन्होंने उस बच्चे को पुन: चेचक का टीका लगाया किन्तु इस पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जेम्स ने अपने परिक्षण को प्रकाशित किया तो कुछ लोगों ने उनका विरोध किया किन्तु अधिकतर लोगों ने उन्हें सराहा और अंतत: ब्रिटिश संसर ने उन्हें नाईट की उपाधि दी और कई देशों ने उन्हें विभिन्न सम्मान दिए।