संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : डबरे के कीचड़ जितना पारदर्शी रखा है केंद्र ने वैक्सीन का मुद्दा, राज्य सरकारें करें तो क्या करें?
14-May-2021 5:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : डबरे के कीचड़ जितना पारदर्शी रखा है केंद्र ने वैक्सीन का मुद्दा, राज्य सरकारें करें तो क्या करें?

कीर्तिश भट्ट का कार्टून बीबीसी पर

देश के बहुत से प्रदेशों में वैक्सीन को लेकर हंगामा चल रहा है कि टीकाकरण केंद्रों पर टीके बचे नहीं हैं और लोग नाराजगी जाहिर करके वापिस जा रहे हैं। अब यह जाहिर है कि उनकी नजरों के सामने केंद्र सरकार तो सीधे-सीधे है नहीं, इसलिए वे राज्य सरकारों को कोस रहे हैं, जो कि खुद पैसे लेकर बाजार में खड़ी हैं लेकिन जिन्हें टीके देने के लिए किसी कंपनी की ताकत, या नीयत नहीं बची है। दूसरी तरफ आज की एक अलग खबर है कि 13 राज्यों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन खरीदी के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किए हैं. एक अलग खबर यह भी है कि केंद्र सरकार ने यह भरोसा दिलाया है कि इस वर्ष दिसंबर तक हिंदुस्तान की 18 बरस से अधिक की तमाम आबादी को टीके लग चुके होंगे, और केंद्र सरकार ने आंकड़े जारी किए हैं कि अगस्त के महीने तक 50 करोड़ वैक्सीन भारत आ जाएंगी। अब इनसे परे वैक्सीन के मोर्चे पर कुछ और खबरें भी आ रही हैं कि रूसी वैक्सीन जिसे कि भारत में इजाजत मिली है, वह कितने की मिलने वाली है, और दूसरी कौन-कौन सी और वैक्सीन हिंदुस्तान आ सकती हैं, कब तक आ सकती हैं। कल ही राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह बयान सामने आया था कि वैक्सीन की अंतरराष्ट्रीय स्तर की खरीदी का काम केंद्र सरकार को करना चाहिए था। अब जब मोदी सरकार ने यह तय कर ही लिया है कि 18 से 44 वर्ष उम्र के लोगों को टीके लगाने का खर्च राज्य सरकारों को करना है, तो राज्यों ने टीके खरीद कर लगाने भी शुरू कर दिए हैं, तो यह बात साफ है कि राज्य सरकारें अपनी जनता का खर्च खुद उठाने के लिए, चाहे कितनी ही मजबूरी में क्यों ना हो, तैयार हो चुकी हैं क्योंकि केंद्र सरकार ने ना सिर्फ राज्य सरकारों को बल्कि देश की जनता को भी एक ऐसी मँझधार में ले जाकर बिना चप्पू की नाँव में छोड़ दिया है, जहां कि धार में कोरोना का भँवर भी खतरनाक अंदाज में दिख रहा है।

 तालाब जब गर्मियों में सूख जाते हैं तो उनके बीच में बच गई थोड़ी सी कीचड़ में बहुत से लोग उतरते हैं और हाथों से कीचड़ को टटोल-टटोलकर वे मछलियां पकडऩे की कोशिश करते हैं। उतने कीचड़ में मछलियां तैर कर भाग भी नहीं पाती हैं और पकडऩे वालों के हाथ आ जाती हैं। लेकिन इस कीचड़ में दिखता कुछ नहीं है, हाथ को हाथ नहीं सूझता, आंखों से तो कुछ भी नहीं दिखता, और जो होता है वह हाथों से टटोलकर होता है। हिंदुस्तान में आज वैक्सीन के मोर्चे पर हालत कुछ ऐसी ही है। केंद्र सरकार ने पूरे देश को रौंदे हुए कीचड़ में हाथों से मिला दिए गए मिट्टी-पानी की तरह का हाल बना दिया है जिसमें किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है. राज्य सरकारें बिना कुछ दिखते हुए कीचड़ में हाथ धंसाए हुए वैक्सीन ढूंढ रही हैं कि कुछ मिल जाए तो अपने प्रदेश की जनता को लगा दिया जाए।

मीडिया के बहुत से लोग वैक्सीन के मोर्चे पर अंतहीन कतारों में लगे हुए लोगों की नाराजगी दिखा रहे हैं। यह नाराजगी जायज इसलिए है कि हर किसी के सिर पर कोरोना से मौत  का खतरा मंडरा रहा है और लोगों को बेचैनी है कि उन्हें वैक्सीन कब लगेगी। लेकिन सवाल यह है कि हिंदुस्तान की राज्य सरकारें किसी सुपर बाजार में जाकर यह वैक्सीन नहीं खरीद सकतीं और न ही अमेजॉन जैसे किसी ऑनलाइन स्टोर पर इसे आर्डर कर सकती हैं। कुछ राज्यों ने और दर्जन भर से अधिक राज्यों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैक्सीन की खरीदी के लिए प्रक्रिया शुरू की है लेकिन वह कब कहां से कितने में मिलकर लोगों को लगना शुरू हो पाएगी यह अंदाज लगाना भी बड़ा मुश्किल है। दूसरी तरफ जब बाकी के राज्य इस तरह से विदेशों से वैक्सीन खरीदी की दौड़ में लगते, उसके पहले आज केंद्र सरकार के आज कहे गए आंकड़े यह बता रहे हैं कि अगस्त तक उसकी आर्डर की हुई 50 करोड़ वैक्सीन आ जाएंगी और दिसंबर तक पूरे देश की वयस्क आबादी को वैक्सीन लग जाएगी। उसने 95 करोड़ आबादी के लिए 216 करोड़ टीके खरीदने की अपनी तैयारी  आज बताई है।  केंद्र सरकार की पेश की गयी इस नई जानकारी के बाद राज्य सरकारें क्या करें? अगर वे महंगे दामों पर कहीं से वैक्सीन खरीद लें तो उन्हें इस तोहमत के लिए तैयार रहना होगा कि केंद्र सरकार की इस घोषणा के बाद भी उन्होंने इतनी वैक्सीन क्यों खरीदी? और भारत के दो वैक्सीन निर्माता कंपनियों में से एक ने आज यहां कहा है कि वह दूसरी दवा कंपनियों के साथ इस वैक्सीन का फार्मूला बांटने के लिए तैयार है ताकि वे भी इसे बना सकें। तो ऐसे में राज्य सरकारें क्या समझें ? जिस कंपनी ने यह घोषणा की है उसने यह वैक्सीन भारत सरकार के संगठन आईसीएमआर की मदद से विकसित की थी और जाहिर है कि सरकार की खर्च में भागीदारी थी और सरकार का इस पर कोई हक भी है। लेकिन यह सब केंद्र सरकार के रहस्य की बातें हैं जिस पर केंद्र सरकार आसमान से बिजली की तरह कडक़ कर अपनी बात कहती है लेकिन जिससे किसी राज्य को कुछ पूछने का हक हासिल नहीं है। 

कुल मिलाकर पिछले 1 महीने में वैक्सीन को लेकर इस देश में जो धुंध छाई है वैसे तो सर्दियों में भी प्रदूषित दिल्ली में नहीं छाती। अब अपने-अपने प्रदेशों में जनता की नाराजगी झेलती हुई राज्य सरकारें क्या करें? केंद्र सरकार से वैक्सीन मांगने का कोई असर नहीं है, केंद्र सरकार को इंपोर्ट करने के लिए कहने का कोई हक नहीं है, और देश के भीतर कब और कंपनियां बनाने लगेंगी, किस रफ्तार से वैक्सीन मिलेगी, इसका कोई ठिकाना नहीं है. ऐसे में हजारों करोड़ खर्च के इस काम को राज्य सरकारें  किस तरह आगे बढ़ाएं यह एक बहुत दुविधा का फैसला है। आज देश की जनता अपने को टीका लगने को लेकर जिस तरह अंधेरे में हैं, उसी तरह राज्य सरकारें भी अंधेरे में हैं कि केंद्र से क्या मिलेगा, बाजार से क्या मिलेगा. केंद्र जो घरेलू खरीद या इंपोर्ट करने की बात कह रहा है, क्या वह उसे राज्यों को बेचेगा या मुफ्त में मिलेगा? बारिश आने के पहले सूखते हुए तालाब, या डबरे में बच गए कीचड़ में मछली पकड़ते हुए लोगों की भीड़ जिस तरह मिट्टी और पानी को मता देती है, कुछ वैसा ही हाल आज देश में टीकाकरण को लेकर केंद्र सरकार ने कर रखा है। कीचड़ जितनी पारदर्शिता !(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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