संपादकीय
हिंदुस्तान में लोगों की सोच धर्म और जाति के दायरे में कैद रहती है। अधिकतर लोगों से बात करें तो धर्म और जाति के उनके पूर्वाग्रह, उनकी सोच और उनकी बातचीत पर, उनके फैसलों पर हावी रहते हैं। कहीं भी बैठकर लोग बातें करते रहते हैं तो अगर उस भीड़ में मौजूद किसी के हुलिए और उसके नाम से उसके धर्म, या खासकर उसकी जाति, का अंदाज ना लगे तो बहुत से लोग बड़ी असुविधा महसूस करते हैं कि उसे किस जाति का मान कर बात की जाए। और बातचीत इससे भी तय होती है कि वहां मौजूद लोगों में किन जातियों के लोग हैं और किन जातियों के लोग नहीं हैं। इसके अलावा धर्म तो है ही, कि अगर किसी धर्म के लोग मौजूद हैं, तो ही उसके खिलाफ ना बोला जाए और अगर किसी धर्म के लोग नहीं हैं तो उस धर्म की बुराइयां याद करके या गढक़र चर्चा में लाई जाए। ऐसे में अभी एक बड़ा दिलचस्प मामला सामने आया है। पहली पहली नजर में तो ऐसा लगा कि मानो किसी ने कुछ गलत जानकारियां जोड़-घटा कर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की एक पोस्ट तैयार की है, लेकिन फिर एक-एक नाम को परखा गया तो यह समझ आया कि यह तो बहुत ही दुर्लभ केस मामला है।
हिंदुस्तान में आज जिस वैक्सीन की सबसे अधिक मांग है, और जो सबसे अधिक चर्चा है, उस वैक्सीन को बनाने वाले के नाम की चर्चा तो कुछ अधिक ही हो चुकी है और लोगों को यह मालूम है कि कोवीशील्ड नाम की वैक्सीन बनाने वाली सिरम इंस्टीट्यूट नाम की कंपनी का मालिक एक पारसी नौजवान अदर पूनावाला है। अब इस वैक्सीन के लिए एक खास किस्म के कांच की शीशी भी लगती है और इस शीशी को बनाने वाली कंपनी का मालिक एक और पारसी है, ऋषभ दादाचानजी। पूनावाला भी पारसी और दादाचानजी भी पारसी। अब इसके बाद इन वैक्सीन का ट्रांसपोर्ट करने के लिए जो खास ट्रकें बनाई गई जो कि एक फ्रिज की तरह वैक्सीन को बहुत ही कम टेंपरेचर पर लेकर एक शहर से दूसरे शहर जा सकें वे ट्रकें देश और दुनिया के सबसे मशहूर पारसी, टाटा की बनाई हुई हैं। इन्हें कोल्ड स्टोरेज की तरह का बना कर टाटा ने आनन-फानन देश में उतार दिया। अब यह देखें कि वैक्सीन एक बार पहुंच गईं तो उन्हें कैसे और कहां रखा जाए, तो इसकी तैयारी इस देश में एक और मशहूर पारसी परिवार, गोदरेज की कंपनी गोदरेज अप्लायंसेज के बनाए हुए मेडिकल फ्रीजर वैक्सीन रखने के काम आ रहे हैं। अब बात यहीं पर खत्म नहीं होती है, इन वैक्सीन को सूखी बर्फ के जिन बक्सों में रखा जाता है वे बक्से किसने बनाएं? ये बक्से एक और पारसी फारुख दादाभाई की कंपनी के बनाए हुए हैं। और फिर इन वैक्सीन को कारखाने से लेकर अलग-अलग शहरों तक कौन सी कंपनी मुफ्त में लेकर जा रही है, यह अगर देखें तो गो एयर नाम की कंपनी एक और पारसी की कंपनी है, इसके मालिक वाडिया ने वैक्सीन के मुफ्त ट्रांसपोर्टेशन का काम शुरू किया और जारी रखा है। अब पारसियों में बहुत से लोग अपना नाम मराठी लोगों की तरह शहर के नाम पर रख लेते हैं जैसे अदर पूनावाला। इसी तरह पारसियों में बहुत से लोग अपना नाम अपने पेशे के साथ जोड़ लेते हैं जैसे जरीवाला, बैटरीवाला, बॉटलीवाला, दारूवाला या कोई और काम वाला। पारसियों के सरनेम का मजाक करने वाले, एक सरनेम अपनी कल्पना से बनाकर बीच-बीच में लिखते थे सोडावाटरबॉटलओपनरवाला। लेकिन अगर देखें कि पेशे के हिसाब से सरनेम बनाना है तो अभी जितने सरनेम हमने गिनाए हैं जो कि वैक्सीन बनाने से लेकर पहुंचाने और रखने तक का काम कर रहे हैं, उनकी आने वाली पीढिय़ां अपना सरनेम वैक्सीनवाला भी रख सकती हैं।
यह तो हो गई एक अच्छी बात लेकिन धर्म और जाति को लेकर चर्चा करें तो जरूरी नहीं है कि तमाम चर्चाएं अच्छी बातों के इर्द-गिर्द ही रहें। पिछले दिनों लगातार इस देश में जीवनरक्षक इंजेक्शनों की कालाबाजारी करते हुए लोग गिरफ्तार हुए। दिलचस्प बात यह है कि इस देश में तमाम किस्म के जुर्म करने के लिए जिस जाति को सबसे बदनाम करार देने की कोशिश होती है, उस धर्म या जाति के शायद कोई भी व्यक्ति जिंदगी की इस कालाबाजारी में शामिल नहीं थे, क्योंकि गिरफ्तार होने वाले तमाम लोगों के नाम भी सामने आ रहे थे इसलिए यह बात भी हक्का-बक्का करने वाली थी कि एक सवर्ण कारोबारी जाति के इतने लोग इंजेक्शनों की कालाबाजारी में लगे हुए थे! लेकिन बात यहीं पर नहीं टिकती, जब यह बात निकली कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने एक ऐसे गिरोह को गिरफ्तार किया है जो कि कोरोना मृतकों के शव पर से कपड़े और कफन चोरी करके उनको बाजार में बेचता था, तो उसमें भी ऐसी ही सवर्ण उच्च समझी जाने वाली जातियों के लोगों की भीड़ थी और शायद नमूने के लिए उसमें एक अल्पसंख्यक धर्म का व्यक्ति भी था। इसके बाद देखें तो दिल्ली के जिस खान चाचा नाम के रेस्तरां में सैकड़ों ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पकड़ाए, और जिसे खबर में देखते ही देश का एक बड़ा हमलावर तबका खान चाचा की गिरफ्तारी के लिए टूट पड़ा, उसको मुंह की खानी पड़ी, जब पता लगा कि यह नाम केवल रेस्तरां का है, इसका मालिक तो एक पंजाबी है, और पंजाबियों में भी उच्च जाति का माना जाने वाला है, तो फिर खान चाचा नाम को छोड़ देना ही लोगों को ठीक लगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि देश भर में जगह-जगह न सिर्फ इंजेक्शनों की कालाबाजारी बल्कि जीवन रक्षक इंजेक्शन नकली तैयार करके उनको बेचने का धंधा जिन लोगों ने किया था उनमें से कोई भी किसी नीची कही जाने वाली जाति के नहीं थे, वे सब के सब ऊंची कही जाने वाली कारोबारी जाति के लोग थे, और गुजरात से लेकर मध्यप्रदेश के इंदौर तक और दिल्ली से लेकर जाने कहां-कहां तक इस कालाबाजारी में लगे हुए थे। नकली इंजेक्शन बनाकर बेचना तो जिंदगी बेचने से कम कुछ नहीं है। अब हैरानी यह है कि जो जातियां अपने आप में बहुत संगठित हैं, जो जातियां अपने आपमें बहुत धर्मालु हैं उन जातियों के लोग जब ऐसे तमाम धंधों में शामिल दिखते हैं, तो फिर वैक्सीन के कारोबार में कदम-कदम पर जुड़े हुए पारसी लोग भी दिखते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हिंदुस्तान में पारसियों की कुल आबादी 70 हजार से भी कम है, जिन पर आज 133 करोड़ हिन्दुस्तानियों के टीके टिके हुए हैं!(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)