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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पीएम, सीएम, और डीएम की ताकत की बात शुरू की होगी किसी बददिमाग डीएम ने ही
23-May-2021 2:08 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पीएम, सीएम, और डीएम की ताकत की बात शुरू की होगी किसी बददिमाग डीएम ने ही

छत्तीसगढ़ के एक सरहदी जिले सूरजपुर में कल जब कलेक्टर ने सड़क पर दवा लेने जाते हुए पर्ची सहित मास्क लगाए एक नौजवान को खुद पीटा, उसका फोन उठाकर तोड़ दिया, और अपने पुलिस सिपाहियों से उसे पिटवाया, उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा, तो यह एक कलेक्टर की एक बहुत ही स्वाभाविक हरकत थी। हिंदुस्तान में आईएएस अफसर अधिकतर इसी ख़ुशफ़हमी में जीते हैं कि देश में ताकत तीन ही हाथों में होती है, पीएम, सीएम, और डीएम। डीएम यानी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट। अंग्रेजों के वक्त के ढाले गए इस ओहदे के हाथ में दो अधिकार होते हैं, एक तो मामूली सरकारी अफसर के अघोषित गैरमामूली अधिकार और दूसरे मजिस्ट्रेट के अधिकार। इन दोनों को जब मिलाकर देखा जाए तो अधिकतर अफसर इन जगहों पर रहते हुए नीम पर चढ़े हुए करेले की तरह बर्ताव करते हैं. हालांकि यह बात नीम और करेले दोनों के लिए अपमानजनक है और हम इसे महज एक कहावत या मुहावरे की तरह बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। 

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यह तो किसी के मोबाइल फोन के वीडियो कैमरे की मेहरबानी थी कि कई अलग-अलग एंगल से ना सिर्फ इस कलेक्टर को इस बेकसूर नौजवान को पीटते हुए रिकॉर्ड कर लिया गया बल्कि पिटवाते हुए भी रिकॉर्ड किया और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहते हुए भी रिकॉर्ड कर लिया। अगर इतने सुबूत नहीं होते तो इस कलेक्टर के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकती थी। और यह कार्रवाई भी कल से सोशल मीडिया पर इस वीडियो के साथ लगातार चल रही लोगों की प्रतिक्रिया के बाद आज सुबह हुई है, जब यह मामला ठंडा ही होते नहीं दिखा। इस पर देश की आईएएस एसोसिएशन ने कलेक्टर के बर्ताव की भर्त्सना कड़ी भर्त्सना की है, और अफसोस जाहिर किया है। छत्तीसगढ़ के आईएएस एसोसिएशन ने भी इसे गलत बर्ताव बताया है और कलेक्टर से कहा है कि वह अपने निजी खर्चे से इस मोबाइल को सुधरवाए और उस बेकसूर नौजवान के मां-बाप से बात भी करे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुबह-सुबह ही इस घटना पर कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए परिवार से अफ़सोस जाहिर किया, सोशल मीडिया पर ही इस अफसर को हटाने की घोषणा की और मिनटों में ही एक नए अफसर को कलेक्टर बना दिया गया। लेकिन जो नहीं हुआ वह यह कि इस हिंसक कलेक्टर के खिलाफ जुर्म कायम करने, उसे गिरफ्तार करने का हुक्म नहीं हुआ। क्या इस मुल्क का कानून आईएएस पर लागू नहीं होता? इससे कम में कोई इन्साफ नहीं सकता। 

अब सवाल यह उठता है कि अफसरों की यह बददिमागी लोकतंत्र में निर्वाचित नेता क्यों और किस हद तक जारी रखते हैं? हम मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों, और बाकी तकरीबन पूरे देश में भी, लंबे समय से देखते आए हैं कि चाहे किसी पार्टी के कोई मुख्यमंत्री रहें, वे राज्य का प्रशासन सीधे कलेक्टरों पर नियंत्रण करके उनके मार्फत चलाते हैं और कलेक्टरी का यह ओहदा मानो नियम-कायदे से पर एक असंवैधानिक सत्ताकेंद्र रहता है. जो लोग कानूनी भाषा समझते हैं वे इस बात को समझेंगे कि इस ओहदे के साथ बहुत से और अलिखित असंवैधानिक अधिकार परंपरागत रूप से जुड़े चले आ रहे हैं जो कि कलेक्टरों को बहुत ही अधिक बददिमाग बना कर रख देते हैं। हमारे पाठकों को याद होगा कि हमने हर कुछ वर्षों में इस मुद्दे पर लिखा है कि इस ओहदे के नाम को बदलने की जरूरत है। कलेक्टर का ओहदा आमतौर पर हिंदी में जिलाधीश या जिलाधिकारी लिखा जाता है और अलग-अलग राज्यों में इसमें थोड़ा बहुत फेरबदल भी होता है। फिर भी अफसरों के बीच इस ओहदे को सबसे महत्वपूर्ण भी माना जाता है और यह माना जाता है कि यह मुख्यमंत्री के एकदम विश्वस्त लोगों को ही हासिल होता है। जब ऐसी नौबत है तो ऐसे लोगों के बर्ताव के लिए मुख्यमंत्री खुद ही सीधे जवाबदेह रहते हैं, जैसा कि आज सुबह भूपेश बघेल ने साबित किया है। लेकिन ऐसे वीडियो बनने के बाद अगर ऐसी कार्रवाई हो सकती है तो ऐसे वीडियो के बिना भला ऐसी कोई कार्यवाही कैसे हो सकती थी और आज जब सोशल मीडिया का एक दबाव सरकार पर बना हुआ है, और मुख्यधारा के मीडिया पर भी बना हुआ है, उस वक्त ही ऐसी कार्रवाई हो पाई है, वरना इसकी गुंजाइश नहीं रहती कि किसी कलेक्टर पर किसी राह चलते की शिकायत पर कोई कार्यवाही हो सके। छत्तीसगढ़ के जिन अखबारनवीसों ने इस हिंसक कलेक्टर से बीती शाम बात की और इसके बारे में जानना चाहा, उन सबसे इस कलेक्टर ने कहा कि वीडियो में वे नहीं हैं, उनका तहसीलदार पीट रहा है, किसी से कुछ कहा, किसी से कुछ। यह तो एक टेक्नोलॉजी है जो लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुछ हद तक जिंदा रहने में मदद कर रही है।

हम फिर अपनी पुरानी सलाह को दुहराना चाहेंगे कि जिलाधीश, कलेक्टर, या जिलाधिकारी पदनाम को बदलकर जिला जनसेवक करना चाहिए, ताकि  इस पर बैठे लोगों को रात-दिन उनका असली काम याद रहे, अपनी औक़ात याद रहे। लोकतंत्र में तंत्र को इतना तानाशाह नहीं होने देना चाहिए कि वह जन को कुचलकर रख दे। किसी डीएम ने ही यह बददिमाग बात शुरू की होगी की देश में ताकत तीन ही हाथों में रहती है, पीएम, सीएम, और डीएम !

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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