विचार / लेख

परीक्षा के विकल्पों पर विचार जरूरी था
07-Jun-2021 5:40 PM
परीक्षा के विकल्पों पर विचार जरूरी था

-डॉ. संजय शुक्ला

 देश में कोरोना के असर के मद्देनजर भारी ऊहापोह के बाद आखिरकार केन्द्र सरकार के फैसले के बाद सीबीएसई और आईसीएसई की बारहवीं बोर्ड परीक्षा रद्द हो गई है। नि:संदेह महामारी के इस दौर में परीक्षा के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सरकार, अभिभावकों और शिक्षकों के लिए बड़ी चिंता थी लेकिन इस फैसले के दूसरे पहलुओं और विकल्पों पर सरकार को विचार करना था।

गौरतलब है कि बारहवीं बोर्ड परीक्षा के मद्देनजर मंत्री समूह की बैठक के बाद दिल्ली, महाराष्ट्र और गोवा राज्य के सरकारों ने प्रस्तावित नए परीक्षा पैटर्न पर इम्तिहान के लिए हामी भरी थी। इस बीच बारहवीं बोर्ड परीक्षा को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया था वहीं सियासत भी तेज हो गई थी।

फिलहाल बारहवीं के बच्चों के मूल्यांकन कैसे किया जाएगा? यह तय नहीं हुआ है लेकिन यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि 12 वीं कक्षा के प्री-बोर्ड और आंतरिक परीक्षा के मूल्यांकन के आधार पर रिजल्ट घोषित किए जा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि दसवीं बोर्ड के परीक्षार्थियों को भी उनके आंतरिक मूल्यांकन और असाइनमेंट के आधार पर नंबर देकर उत्तीर्ण करने का निर्णय केंद्रीय और राज्य बोर्डों ने लिया था।

हालांकि इस व्यवस्था को पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि आंतरिक मूल्यांकन में दिए जाने वाले अंक हमेशा सवालों के घेरे में रहते हैं। यह मसला इस लिहाज से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बारहवीं के अंकों के आधार पर देश के अनेक शीर्षस्थ नामी  यूनिवर्सिटी और कालेजों में दाखिला मिलता है जहाँ छात्रों के बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा रहता है। ऐसी परिस्थिति में यदि कोई छात्र पारिवारिक या स्वास्थ्यगत कारणों से प्री-बोर्ड या आंतरिक परीक्षा देने में असमर्थ रहता है , उसके पेपर बिगड़ जाते हैं या शिक्षक इन परीक्षाओं में पक्षपाती रवैया रखे तो योग्य छात्र को उसकी रूचि अनुसार उच्च शिक्षा संस्थान में दाखिले में दिक्कत आ सकती है। परीक्षा रद्द करने का फैसला उन छात्रों के मेहनत पर भी पानी फेर गया जो अपने कठिन मेहनत से इस बोर्ड परीक्षा में बहुत अच्छे अंक हासिल कर अपने परिवार के आकांक्षाओं को पूरा करना चाहते थे। चूंकि बारहवीं की परीक्षा के अंंक छात्रों  के कैरियर और उच्च शिक्षा, प्रोफेशनल कोर्स के दाखिले से लेकर नौकरियों में काफी अहमियत रखते हैं। हालांकि सीबीएसई दसवीं बोर्ड की ही तरह बारहवीं के छात्रों को भी यह व्यवस्था दे रही है कि यदि कोई छात्र अपने रिजल्ट से संतुष्ट नहीं है तो वह स्थिति सामान्य होने पर फिर से परीक्षा दे सकता है। यह फैसला छात्रों को कितना राहत पहुंचाएगा? यह काल के गाल में है।

गौरतलब है कि देश में कोरोना संक्रमण के मामलों मे लगातार गिरावट आ रही है और अधिकांश राज्य अनलॉक के दौर में है लिहाजा कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए आवश्यक सभी सावधानियों का पालन सुनिश्चित करते हुए मुख्य विषयों के एक बहुविकल्पीय प्रश्नपत्र के आधार पर ओएमआर शीट के माध्यम से परीक्षा लेने जैसे विकल्प पर सरकार को विचार करना था। इस परीक्षा के लिए परीक्षा केंद्र उन्हीं स्कूलों को बनाया जा सकता था जहाँ छात्र पढ़ते थे या परीक्षार्थियों की संख्या को सीमित रखने और सोशल डिस्टेंसिंग के लिहाज से स्कूलों के साथ-साथ कालेजों को भी परीक्षा केंद्र बनाया जा सकता था। यह परीक्षा केवल एक दिन दो या तीन पालियों में डेढ़ से दो घंटों के ऑब्जेक्टिव प्रश्नपत्र में संभव हो सकता था।

गौरतलब है कि प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर के सभी कक्षाओं में बिना परीक्षा के अगली कक्षा में जनरल प्रमोशन जैसे फैसले शिक्षा की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहे हैं। गौरतलब है कि स्कूली शिक्षा ही उच्च शिक्षा की नींव होती है लेकिन कोरोना महामारी ने सबसे प्रतिकूल प्रभाव शालेय शिक्षा पर ही डाला है। शिक्षा प्रणाली में शिक्षण के साथ परीक्षा और मूल्यांकन इस व्यवस्था का अहम हिस्सा है जो किसी छात्र के लिए शिक्षा की बुनियाद और योग्यता का मापदंड होता है।

परीक्षा ही छात्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना और संघर्ष का जज्बा पैदा करता है जो उसके भावी जीवन का अहम हिस्सा है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में स्कूलों की महत्वपूर्ण भूमिका है, बच्चे स्कूल में ही अनुशासन, सामूहिकता, सहयोग की भावना, संस्कृति और स्वावलंबन सीखते हैं। कोरोना लॉकडाउन ने बच्चों के बालमन पर काफी गहरा असर डाला है और यह दुष्प्रभाव स्कूल में ही खत्म हो सकता है लेकिन बच्चे फिलहाल स्कूल से दूर हैं। 

बहरहाल भारत में जहाँ सरकारी शिक्षा पहले से ही बदहाल थी वहां इस महामारी के कारण बीते साल से ही स्कूल और कॉलेज बंद हैं तथा ऑनलाइन कक्षा और परीक्षा के नाम पर महज औपचारिकता निभाई जा रही हैं जिससे शिक्षा और परीक्षा दोनों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। स्कूलों में महामारी के नाम पर जारी ऑनलाइन कक्षाएं समाज में शिक्षा में असमानता की खाई को चौड़ी कर रही है।  देश की सरकारें बीते एक साल से ऑनलाइन शिक्षा और परीक्षा की ढिंढोरा पीटते रही हंै लेकिन ये दावे की हकीकत कोसों दूर है। देश में 46 फीसदी छात्रों के पास वर्चुअल पढ़ाई और परीक्षा के लिए स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप आदि नहीं हैं तो 32 फीसदी छात्रों के पास इंटरनेट सुविधा नहीं है।

फलस्वरूप  महज 30 से 40 फीसदी छात्र ही ऑनलाइन शिक्षा हासिल कर पा रहे हैं इन परिस्थितियों में शिक्षा और परीक्षा की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धा के समान अवसर का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। कोरोना त्रासदी ने लाखों लोगों के हाथ से रोजगार छीन लिया है बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी जैसे कठिन हालतों  के कारण वे अपने बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दिलाने में असमर्थ हो रहे हैं। यह महामारी  बालिका शिक्षा के राह में भी रोड़ा बन रही है, हालात यही रहे तो भविष्य में स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हो सकता है। इन परिस्थितियों में सोचनीय  यह कि एक न एक दिन तो कोरोना महामारी खत्म हो जाएगा और देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां वापस पटरी पर लौट जाएंगी लेकिन शिक्षा का क्या होगा? क्योंकि वक्त का पहिया तो उल्टा नहीं घुमाया जा सकता और शिक्षा वक्त के पहिए पर ही घूमती है।

इस बीच अहम सवाल यह कि जब दुनिया भर के महामारी विशेषज्ञ और विश्व स्वास्थ्य संगठन पिछले साल से ही चेतावनी देते रहे कि यह महामारी अगले दो-तीन वर्षों तक नहीं जाएगी तब देश के शिक्षा बोर्ड और सरकारों ने क्या कदम उठाया? दरअसल इन संस्थानों के नीति नियंताओं ने महामारी की समस्या का हल तत्कालिक तौर पर ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल पाठ्यसामग्री को ही मानते हुए सिलेबस में तीस फीसदी कटौती कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ली। जिम्मेदारों ने इन फैसलों के क्रियान्वयन में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता , दिक्कतों तथा इसके दूरगामी परिणामों पर विचार ही नहीं किया। हालिया परिदृश्य में जब महामारी की मियाद तय नहीं है तब शिक्षण और परीक्षा की परंपरागत प्रणाली में बदलाव करने की जरुरत थी ताकि छात्र घर में ही ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी कर सके। कोविड संक्रमण के मद्देनजर दसवीं और बारहवीं के मुख्य विषयों को शामिल करते हुए बहुविकल्पीय प्रश्नपत्र यानि एमसीक्यू  (ऑब्जेक्टिव टाइप क्वेश्चन्स )आधारित ओएमआर शीट पर लिया जाना संक्रमण से बचाव के लिये जरूरी सावधानी और मूल्यांकन के लिहाज से उचित होता। हालांकि अभी केंद्रीय बोर्डों ने इसी पैटर्न पर परीक्षा लेने का प्रस्ताव दिया था लेकिन ऐसे फैसले सत्र के शुरुआत में ही ले लेना था ताकि अभिभावक, शिक्षक और छात्र नये पैटर्न पर परीक्षा के लिए तैयार रहते।

गौरतलब है कि देश के तमाम प्रोफेशनल कोर्सेस में दाखिला और नौकरियों के लिए इसी पैटर्न पर परीक्षाएं ली जाती है लिहाजा यह व्यवस्था छात्रों के लिए उपयोगी और मददगार हो सकता था। बहरहाल शिक्षा से ही किसी राष्ट्र का समग्र विकास संभव है और प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा की पूरी व्यवस्था आयु के अनुसार समयबद्ध ढांचे पर निर्भर है इसलिए यह आवश्यक है कि छात्र पढ़ाई और परीक्षा से वंचित न रहें। हालिया परिवेश में जब महामारी की मियाद और इसका सामाजिक व आर्थिक दुष्प्रभाव तय नहीं है तब सरकारों को आज के जरूरत के मुताबिक क्लास रुम, सिलेबस और परीक्षा प्रणाली सुनिश्चित करते हुए स्कूल-कालेजों को संचालित करने की दरकार है।

( लेखक, शासकीय आयुर्वेद कॉलेज रायपुर में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news