संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सोशल मीडिया पर झूठ आगे बढ़ाना भी उतना ही बड़ा जुर्म, सम्हलें
07-Jun-2021 6:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सोशल मीडिया पर झूठ आगे बढ़ाना भी उतना ही बड़ा जुर्म, सम्हलें

मशहूर फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार अस्पताल में भर्ती हैं और पिछले बरसों में भी हर कुछ महीनों में अस्पताल जाते हैं, और ठीक होकर घर लौटते हैं। उम्र भी इतनी हो गई है कि बीमारी पीछा ही नहीं छोड़ती है। और उन्हें चाहने वाले इतने हैं कि वे भी पीछा नहीं छोड़ते हैं। एक से अधिक बार उनके गुजर जाने की अफवाहें फैलीं। लोगों ने सोशल मीडिया की मेहरबानी से एक की पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए दिलीप कुमार के गुजरने के पोस्टर तक बना लिए, और उन्हें लोगों ने सोशल मीडिया और व्हाट्सएप जैसे मैसेंजर की मेहरबानी से खूब आगे बढ़ा दिया। अब उनके परिवार की तरफ से लोगों से अपील की गई है कि उनकी तबीयत के बारे में ट्विटर पर पोस्ट किया जाएगा, और लोग अपने मन से गलत जानकारी आगे न बढ़ाएं।

यह बात महज़ दिलीप कुमार के साथ हो रही हो ऐसा नहीं है, सोशल मीडिया ने लोगों को यह ताकत दे दी है कि वे पल भर में ही किसी का पोस्ट किया हुआ सच या झूठ अपने एक भी शब्द को जोडऩे की जहमत उठाए बिना आगे बढ़ा सकते हैं, और फिर मजे से बैठकर यह देख सकते हैं कि कितने लोग उन्हें रीपोस्ट कर रहे हैं, कितने लोग उनके पोस्ट पर कुछ लिख रहे हैं। लोग आज वैसे भी कारोबार और काम के बिना पिछले एक बरस से थके हुए से घर बैठे हैं, या बहुत कम काम कर रहे हैं, और ऐसे में सोशल मीडिया उनके लिए बड़ा सहारा है। फिर बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि कुछ मौलिक नहीं लिख पाते, 2 वाक्य भी सही नहीं लिख पाते, ऐसे में उन्हें दूसरों के पोस्ट किए हुए को आगे बढ़ाकर अपने सोशल मीडिया पेज पर कुछ न कुछ पेश करना एक अलग किस्म की उपलब्धि लगती है। ऐसे लोग बड़ी तेजी से झूठी खबर, सनसनीखेज बातें, गढ़ी गई तस्वीर या गढ़े गए वीडियो आगे बढ़ाते हैं। मनोविज्ञान की मामूली समझ कहती है कि घर में जिनकी कोई नहीं सुनते होंगे, वे सोशल मीडिया पर अधिक सुनाते होंगे। 

सोशल मीडिया ने हर किसी को ऐसा लोकतांत्रिक अधिकार दिया है कि वे मनचाही बातों को तब तक पोस्ट कर सकते हैं जब तक कि देश का कानून उन्हें  जुर्म के लेबल के साथ ब्लॉक करवाने की कार्यवाही शुरु ना करें, इसके पहले आमतौर पर उन्हें कोई ब्लॉक नहीं करते। हाल के महीनों में फेसबुक ने जरूर कुछ किस्म की बातों को ब्लॉक करना शुरू किया है, लेकिन शायद उसकी हिंदी भाषा की समझ कम है, या उसका कंप्यूटर हिंदी के शब्दों के गलत मतलब समझता है, और बहुत सी मासूम बातें भी ब्लॉक कर दी जा रही हैं। लेकिन इनके मुकाबले गलत और झूठ को आगे बढ़ाने वाले लोग लाख गुना हैं। बहुत से जानकार लोग बतलाते हैं कि कुछ राजनीतिक दल अपने भाड़े पर रखे गए साइबर सैनिकों से रात-दिन मनचाही पोस्ट करवाते हैं, किसी को धमकियों से कुचलवा देते हैं, तो किसी को भगवान बना देते हैं। अब किसी को भगवान बनाने पर न तो कानूनी रोक है, और न ही सोशल मीडिया के कंप्यूटरों को उससे कोई दिक्कत होती है। लेकिन जिम्मेदार लोगों को सोशल मीडिया पर न सिर्फ अपने स्तर पर सावधानी बरतनी चाहिए बल्कि जहां कहीं किसी झूठी बात को, गलत जानकारी को देखें, उसका सार्वजनिक रूप से विरोध भी करना चाहिए। 

हो सकता है कि कुछ लोग बिना सही जानकारी के और बिना किसी बदनीयत के भी गलत बातें पोस्ट करते हों, लेकिन उनको भी चौकन्ना करना इसलिए जरूरी है कि किस दिन वे ऐसी बेवकूफी या मासूमियत के साथ भी जेल चले जाएं, इसका कोई ठिकाना नहीं है। अखबारों में छपने का जमाना लद गया, मानहानि के कानून बहुत धीमी रफ्तार से चलने वाली अदालतों में बरसों चलते थे, और सजा के ठीक पहले आमतौर पर समझौता भी हो जाता था, लेकिन सूचना तकनीक जितनी तेज रफ्तार है, उसके लिए कानून भी उतना ही कड़ा बना है। बात की बात में किसी के खिलाफ जुर्म दर्ज हो जाता है, और इन दिनों तो लोगों की धार्मिक भावनाएं, राजनीतिक भावनाएं, सामाजिक भावनाएं, सब बहुत तेजी से भडक़ रही हैं। ये सब भावनाएं पेट्रोल बन चुकी हैं और उनमें तेजी से आग लग जाती है। इसलिए आज लोगों को न केवल खुद सावधान रहना चाहिए बल्कि अपने शुभचिंतकों को सावधान करना भी चाहिए कि वे लापरवाही से कुछ भी पोस्ट न करें क्योंकि अदालत ऐसी किसी मासूमियत पर कोई भरोसा नहीं करती, अदालत में तो लोग अपने लिखे और पोस्ट किए हुए के लिए पूरी तरह से जवाबदेह रहते हैं। 

लोगों को सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ पोस्ट करने की हड़बड़ी से बचना चाहिए। ऐसी कोई बंदिश किसी पर नहीं रहती कि अगर वे हर दिन दो-चार चीजें पोस्ट नहीं करेंगे तो उनका अकाउंट बंद हो जाएगा। इसलिए लोगों को बहुत सावधानी से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए, वहां वे ना सिर्फ जुर्म के शिकार हो सकते हैं बल्कि अपनी बेवकूफी में किसी जुर्म के भागीदार भी हो सकते हैं। किसी और ने कोई गलत बात पोस्ट की है, इसलिए आप भी उसे आगे बढ़ा सकते हैं, कानून ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसलिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल जितना ही यह भी सीख लेना चाहिए कि किसी बात को इंटरनेट पर ही कैसे ढूंढ लिया जाए कि वह सच है या नहीं। हम हर दिन ऐसे दर्जनों बड़े जानकार और समझदार लोगों को देखते हैं जो किसी झूठ को सच समझकर उसे आगे बढ़ाते रहते हैं। लोग कुछ वक्त लगाकर सीखें कि कैसे हर बात को परखा जा सकता है कि वह सच है या झूठ।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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