विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
दिल्ली विधानसभा अधिनियम बदलकर केन्द्र सरकार ने नियुक्ति अधिकार उपराज्यपाल को सौंपे। उपराज्यपाल ने संतोष वैद्य को मुख्यमंत्री का सचिव नियुक्त करने का आदेश जारी किया।
केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों के सलाहकार, सचिव, निजी सचिव, सहायक आदि के नियुक्ति आदेश यूं ही जारी नहीं होते। राष्ट्रीय स्वयं संघ की कसौटी पर खरा उतरने वालों के नाम पर मुहर लगती है। यह धारण सच है या नहीं, इसका पुष्टि के लिए नामों की सूची की पड़ताल करें या नागपुर मुख्यालय से संपर्क करें। दैनिक भास्कर के नहीं। इस धारणा पर शक करने की पूरी पूरी गुंजाईश है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सचिव राजिन्दर कुमार घोटाले के लपेटे में छापे की ज़द में आए। मुख्यमंत्री को कुमार की बेगुनाही पर पक्का भरोसा है। इसलिए किसी अधिकारी को नियुक्त ही नहीं किया। केजरीवाल कहते रहे-कसकर जांच करा लो। उनकी जगह खाली रखेंगे।
दिल्ली विधानसभा अधिनियम बदलकर केन्द्र सरकार ने नियुक्ति अधिकार उपराज्यपाल को सौंपे। उपराज्यपाल ने संतोष वैद्य को मुख्यमंत्री का सचिव नियुक्त करने का आदेश जारी किया। अटकलबाज प्रधानमंत्री कार्यालय से फरमान आने का कयास लगाते रहे। केजरीवाल ठनठन गोपाल। दिल्ली के दिल में कोई बसे, नकेल केन्द्र सरकार के हाथ है।
लाकर की कुंजी
जबलपुर के दामाद जगत प्रकाश ने एटाला राजेन्दर को दिल्ली आने का न्योता दिया। चाय पर चर्चा में भाजपा अध्यक्ष ने राजेन्दर को ऐसा लपेटा कि उन्होंने पार्टी में शामिल होने पर हामी भर दी। बताते हैं। बताते हैं, नड्डा ने कौन सी चिडिय़ा फांसी। तेलंगाना की चंद्रशेखर राव सरकार में राजेन्दर मंत्री थे। जमीन घोटाले के कारण कुर्सी छिनी। यह पूछना कतई जरूरी नहीं कि भाजपा ने पश्चिम बंगाल से कोई सबक नहीं लिया। दलबदलू लाकर की कुंजी की तरह हैं। माहौल बनाने से तिजोरी के पास पहुंचना आसान है। ताला खुल भी सकता है। तेलंगाना राष्ट्र समिति में भी पुराने कांग्रेसियों, तेलुगु देसम पार्टी वालों की भरमार है। मुख्यमंत्री राव नंदमूरि तारक रामाराव के परम भक्त थे। बेटे का नाम रामाराव रखा। पुत्र पिता की सरकार में मंत्री है।
ताला खोल
बिहार में शिक्षकों के कितने पद बरसों से रिक्त पड़े हैं? बेरोजगार स्नातकों के अनुसार तीन लाख से अधिक। 94 हजार शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया अदालत में लडख़ड़ा रही थी। भर्ती में विलम्ब के विरोध में पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, केन्द्रीय सूचना आयुक्त रहे यशोवर्धन आजाद आदि ने सरकार की आलोचना की।
बेरोजगार युवकों के संगठन हल्ला बोल और बिहार नीड्स टीचर्स मुख्यमंत्री की नाक में दम किए हुए हैं। अब तक अदालत की आड़ थी। बाजीगर की तरह बहानों की गेंद उछालते शिक्षा मंत्री कहा करते-अदालत से मामला सुलटने के अगले दिन भर्ती कर देंगे। पटना उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से बहाली प्रक्रिया जल्दी पूरी करने कहा। शिक्षा विभाग से मुख्यमंत्री स्वयं परेशान हैं। मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद उन्होंने सुपात्र शिक्षामंत्री चुना। लोगों ने हल्ला मचाया-इसे तो भर्ती घोटाले का अनुभव है। नीतीश कुमार नालंदा के रहने वाले हैं। नालंदा किस बात के लिए प्रसिद्ध है? पूछने पर मुख्यमंत्री झेंप जाएंगे।
टीके की दूसरी खुराक
सिद्धांत या नैतिकता की खातिर कुर्बानियों का पुराना इतिहास है। लाल बहादुर शास्त्री से बात करना कई कारणों से उचित होगा। रेल दुर्घटना के बाद मंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले शास्त्री जी बाद में प्रधानमंत्री बने। कुछ साल पहले सुरेश प्रभू ने अनुकरण करते हुए रेलभवन से विदा ली। प्रधानमंत्री न सही, उनके शेरपा बने। पत्रकार स्वपन दासगुप्त ने वस्तुनिष्ठता की कुर्बानी दी। राजनीतिक पार्टी ने राज्यसभा की सदस्यता प्रदान की। विधानसभा की उम्मीदवारी मिलने पर राज्यसभा सदस्यता की कुर्बानी दी। पश्चिम बंगाल के मतदाता त्याग का महत्व नहीं समझे। बुरी तरह परास्त हुए।
राष्ट्रपति ने कुर्बानी का महत्व समझकर उनकी ही खाली कुर्सी पर फटाफट फिर नामजद किया। संसद की पुरानी इमारत में नई प्रथा बनी। पत्रकार कोटे से किसी राजनीतिक कार्यकर्ता को नामजद करने का संभवत: पहला अवसर है। वह भी अधबीच में। नामजद व्यक्तियों के पद रिक्त होने पर किसी उपचुनाव की तरह नहीं भरे जाते। राज्य (सभा) और राष्ट्र (पति) के मधुर संबंधों की सचमुख यह दिलचस्प मिसाल है।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)