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आर्कटिक सागरों की अम्लता बढ़ रही है
10-Jun-2021 12:31 PM
आर्कटिक सागरों की अम्लता बढ़ रही है

नार्वे स्थित आर्कटिक मॉनीटरिंग एण्ड एसेसमेंट प्रोग्राम (एएमएपी) की एक रिपोर्ट  के अनुसार विश्व भर में कार्बन डाईआक्साइड के तेजी हो रहे उत्सर्जन के परिणामस्वरूप आर्कटिक सागरों में अम्लता की मात्रा बढ़ रही है। इससे समूची महासागरीय जैव-श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि हम कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को तुरंत रोक देते हैं तब भी आर्कटिक सागरों को अपने मूल स्वरूप में आने में लाखों वर्षों का समय लगेगा।
 कार्बन डाईऑक्साइड हमारे ग्रह पृथ्वी को गर्म बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। ठंडा जल कार्बन डाईऑक्साइड को सामान्य जल की अपेक्षा अधिक तीव्रता से अवशोषित करता है इसलिए आर्कटिक सागरों में  कार्बन डाईऑक्साइड के कारण अम्लता बढ़ रही है।
 आर्कटिक मॉनीटरिंग एण्ड एसेसमेंट प्रोग्राम (एएमएपी) आर्कटिक काऊंसिल की पांच कार्य समूहों में से एक है जिसका कार्यालय नार्वे की राजधारी ओसलो में स्थित है.। एमएपी की स्थापना वर्ष 1991 में की गई थी।  

अतीश
अतीश जिसे दीपंकर भी कहा जाता है, भारतीय बौद्ध सुधारवादी हुए हैं जिनकी शिक्षाएं तिब्बत के बौद्ध धर्म के एक मत काग्युद्पा  का आधार बनी। जिसकी स्थापना उनके शिष्य ब्रॅम- स्टॅन ने की थी। 
भारत में बौद्ध अध्यययन के केंद्र नालंदा से 1038 या 1042 में तिब्बत की यात्रा करने वाले अतीश ने वहां मठ  स्थापित किए और बौद्ध धर्म की तीन शाखाओं पर बल देने वाले  प्रबंध लिखे।  ये तीन शाखाएं हैं- थेरवाद (गौतम बुद्ध में पूर्ण आस्था),  महायान (कई बुद्धों में से गौतम बुद्ध को एक मानना और  वज्रयान (योग पर बल)। 
उन्होंने शिक्षा दी कि तीन अवस्थाएं एक के बाद एक आती हैं और उनकी इसी क्रम में पालन करना चाहिए। उनकी मृत्यु न्येथांग मठ में हुई। जहां उनकी समाधि आज भी मौजूद है। 
 

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