संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : 10-12 बरस के बच्चों के गिरोह के सामूहिक रेप से खड़े हुए कई सवाल !
11-Jun-2021 5:41 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : 10-12 बरस के बच्चों के गिरोह के सामूहिक रेप से खड़े हुए कई सवाल !

हरियाणा के रोहतक से एक दिल दहलाने वाली खबर आई है कि 10 बरस की एक बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार करके उसका वीडियो बनाकर फैलाया गया और ऐसा करने वाले लोगों में एक 18 बरस का नौजवान था, और 8 नाबालिग थे। बलात्कारियों में 5 बच्चे तो 10 से 12 वर्ष उम्र के हैं। यह बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी और इस टोली ने उसे स्कूल के पास ले जाकर बलात्कार किया, उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की, बच्ची को धमकी दी, और बाद में यह वीडियो फैलाकर उस बच्ची को ब्लैकमेल करना भी शुरू किया।

इस घटना से बहुत से सवाल उठते हैं, एक तो देश के सबसे चर्चित बलात्कार निर्भया कांड के समय से यह बात सामने आ रही थी कि नाबालिग लोग भी बलात्कार की ताकत और समझ रखते हैं। निर्भया के सामूहिक बलात्कार में एक लडक़ा नाबालिग था इसलिए वह कड़ी सजा से बचा और उसे किसी सुधार गृह में कहीं भेजा गया था। उसके बाद से देश भर में यह चर्चा शुरू हुई कि क्या बलात्कार के ऐसे मामलों के लिए बालिग होने की उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया जाए? जिस तरह घुटनों पर चोट लगने पर पूरा बदन बिलबिला उठता है उसी तरह देश की चेतना पर निर्भया कांड से एक चोट लगी थी और बिलबिलाए हुए देश ने बलात्कारियों के लिए फांसी की बात की थी। बलात्कारियों को 16 बरस से ही बालिग मान लेने की भी मांग की थी। इन दोनों ही बातों का कई तर्कों के आधार पर लोगों ने विरोध भी किया था। फिर भी बलात्कार के लिए मौत की सजा को जोड़ दिया गया है और बालिग होने की उम्र को घटाने के बारे में भी समाज में चर्चा चल रही है।

अब हरियाणा तो देश में बहुत अधिक सामाजिक नियम कायदे लागू करने वाला प्रदेश है जहां महिलाओं और लड़कियों पर बहुत तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं, लेकिन कोई बच्ची अगर अपने घर के सामने ना खेले तो वह जिंदा भी कैसे रहे? और इसलिए अगर ऐसे में गांव के ही लडक़े एकजुट होकर गिरोहबंदी करके उस अकेली बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार करें, तो इसे कौन से सामाजिक प्रतिबंध लगाकर रोका जा सकता है? क्या लडक़ों का घूमना-फिरना बंद किया जा सकता है, या लड़कियों का अपने घर के आंगन में भी खेलना रोका जा सकता है? कल की ही बात है उत्तर प्रदेश की महिला आयोग की अध्यक्ष ने एक अटपटा और बहुत खराब बयान दिया कि लड़कियों को मोबाइल फोन देना बंद करना चाहिए क्योंकि पहले वे लडक़ों से फोन पर लंबी लंबी बातें करती हैं और उसके बाद उनके साथ भाग जाती हैं। अब महिला आयोग की अध्यक्ष की अगर ऐसी सोच है तो उस प्रदेश में महिलाओं के अधिकार और महिलाओं की सुरक्षा मर्दों की मर्जी और रहम पर ही हो सकती है, किसी अधिकार के तहत नहीं हो सकती। एक मोबाइल फोन किसी लडक़ी या महिला को उसके बुनियादी अधिकार पाने का मौका देता है, और अगर ऐसी बुनियादी सहूलियत के लिए भी लडक़ी होने की वजह से उसे इससे दूर रखा जाए, तो फिर ऐसे समाज को लड़कियों को पाने का हक ही नहीं है। 

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जैसा हरियाणा के सामूहिक बलात्कार की घटना को लेकर आज हम यह बात लिख रहे हैं, उस हरियाणा का हाल यह है कि कन्या भ्रूण हत्याओं के चलते हुए वहां पर लड़कियों का अनुपात लडक़ों के मुकाबले देश में सबसे कम है। हरियाणा के बारे में यह कहा जाता है कि वहां बहू लाने के लिए लोग दूसरे कई प्रदेशों में जाकर वहां से लड़कियां लेकर आते हैं क्योंकि उनके अपने प्रदेश में लडक़ों के मुकाबले लड़कियां कम रह गई हैं। ऐसा प्रदेश लड़कियों पर जिस तरह के जुल्म देख रहा है, उसमें किसी मां-बाप की लडक़ी को बड़े करने की हिम्मत भी जवाब दे रही होगी। और उत्तर प्रदेश में एक संवैधानिक पद पर बैठी हुई महिला लड़कियों को फोन से दूर रखने की बात कर रही है। 

दरअसल हिंदुस्तान में लड़कियों को छेडऩा उनसे बलात्कार करना, इसमें कोई बुराई नहीं मानी जा रही है। और ऐसा होने पर भारत की न्याय प्रक्रिया कसूरवार को सजा दिलाने में बहुत बुरी तरह नाकामयाब भी रहती है। बलात्कार के मामलों में बड़ी संख्या में पुलिस, थाने में ही समझौता कराकर लडक़ी को डराकर समाज में बदनामी का खौफ दिखाकर वापस भेजने की पूरी कोशिश करती है, और इसके एवज में जाहिर है कि बलात्कारी से उगाही भी करती ही होगी। अब इसके बाद भी अगर लडक़ी या महिला अपनी शिकायत पर डटी रहें तो अदालत में बरसों तक उनका और अपमान होता है। कोर्ट के बरामदे से लेकर अदालत के कटघरे तक लोग अपनी नजरों से उनके साथ और बलात्कार करते हैं, और बलात्कारी को सजा मिलने के पहले तक और उसके बाद भी उसकी शिकार लगातार सजा पाते ही रहती है। ऐसे देश में अगर 10-12 बरस के बच्चे भी गिरोह बनाकर सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी कर रहे हैं तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह जो हमें सूझती है, वह यह है कि इन लडक़ों को इनके परिवारों में लडक़ी की इज्जत होते कभी दिखी नहीं होगी, मां बाप ने कभी लडक़ी या महिला का सम्मान सिखाया नहीं होगा। यह एक बहुत ही जटिल स्थिति है और समाज इससे कैसे उबरेगा इसका कोई आसान रास्ता हमारे पास नहीं है, लेकिन इस मुद्दे पर सबका सूचना जरूरी है, अपने अपने घर के लडक़ों को संभालना और उन्हें समझाना जरूरी है इस नाते हम इस मुद्दे पर यहां लिख रहे हैं।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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