संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सबसे कड़े कानून कई मौकों पर सबसे बुरा बेइंसाफ भी हो जाते हैं
05-Jul-2021 5:51 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सबसे कड़े कानून कई मौकों पर सबसे बुरा बेइंसाफ भी हो जाते हैं

देश में आतंक विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार सबसे बुजुर्ग व्यक्ति स्टेन स्वामी का आज अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें पुणे के बहुचर्चित भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में हिंसा भडक़ाने और माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में झारखंड से गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में छत्तीसगढ़ की सुधा भारद्वाज सहित कई और सामाजिक कार्यकर्ता भी गिरफ्तार किए गए थे जो कि जेल में बिना जमानत अब तक बरसों से बंद हैं। इनके खिलाफ एनआईए की जांच चल रही है और जब स्टेन स्वामी की तबीयत लगातार बहुत खराब चल रही थी तो कोरोना का खतरा बताते हुए उनके वकीलों ने अदालत के सामने बार-बार कहा कि उन्हें जमानत दी जाए, लेकिन 84 बरस के सामाजिक कार्यकर्ता को जमानत देने का एनआईए ने अदालत में जमकर विरोध किया था, और कहा था कि उनकी बीमारी के कोई ठोस सुबूत नहीं हैं। आज जब बॉम्बे हाई कोर्ट में स्टेन स्वामी की जमानत अर्जी पर सुनवाई चल रही थी, उसी वक्त वहां डॉक्टर ने खड़े होकर जजों को बताया कि स्टेन स्वामी को नहीं बचाया जा सका। इस तरह देश के एक  सबसे सख्त कानून के तहत गिरफ्तार, देश के सबसे अधिक उम्र के सामाजिक कार्यकर्ता की मौत हुई जिन्हें जेल से अस्पताल तक जाने देने का विरोध एनआईए ने जमकर किया था, और बाद में अदालती आदेश से उन्हें अस्पताल में दाखिल किया गया था। 

यह मामला 2017 में पुणे में हुई एक हिंसा का था जिसे लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया और उन पर नक्सलियों से संबंध रखने की, हिंसा भडक़ाने की तोहमत लगाई गई। यह एक अलग बात है कि अमेरिका की एक साइबर लैब ने जांच करके यह स्थापित किया था कि इस मामले में गिरफ्तार कुछ लोगों के कंप्यूटर पर बाहर से घुसपैठ करके उसमें कुछ दस्तावेज डाले गए थे। उल्लेखनीय है कि कंप्यूटर पर मिले कुछ दस्तावेजों को लेकर ही एनआईए ने इन सब लोगों की गिरफ्तारी की थी जो आज भी जमानत पर बरी होने के लिए बरसों बाद भी तरस रहे हैं।

हिंदुस्तान में कानून इतने कड़े बनाए जा रहे हैं कि बेकसूर लोग भी जमानत के बिना जेल में ही दम तोड़ दें। कल ही एक दूसरी रिपोर्ट दिख रही थी कि किस तरह 11 बरस जेल में बंद रहने के बाद एक मुस्लिम की बेकसूर करार देकर रिहाई हुई और बाहर निकलकर अब वह समझना चाह रहा है कि जिंदगी के इन 11 वर्षों का नुकसान वह कैसे पूरा कर सकता है। इससे भी अधिक 20-25 बरस तक जेल में बंद रहने वाले कुछ और मुस्लिम लोगों के मामले हैं जिन्हें आतंक के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनके खिलाफ कुछ भी साबित नहीं हो सका और वे बरी होने के बाद अब बाहर की दुनिया में बहुत अटपटे से होकर रह गए हैं कि वे कैसे जिंदा रहे क्या काम करें।

देश में आतंकी हिंसा को रोकने के नाम पर बहुत से लोगों को आज अर्बन नक्सल करार दिया जा रहा है, यह शब्दावली ताजा-ताजा पैदा हुई है और जिन लोगों को मानवाधिकार की हिमायत करने वाले लोग नापसंद रहते हैं, वे लोग अक्सर ही मानवाधिकार वादियों को लेकर अर्बन नक्सल जैसे शब्द इस्तेमाल करते हैं। एक तरफ तो सरकार के पास नक्सलियों को कुचलने के लिए अनगिनत सुरक्षा बल जवान मौजूद हैं, और केंद्र और राज्य सरकारों के सुरक्षा बल मिलकर नक्सल मोर्चे पर बड़ी तैनाती के साथ हमलावर कार्रवाई करते रहते हैं। दूसरी तरफ नक्सलियों को मदद पहुंचाने के नाम पर बहुत से शहरी लोगों को एजेंसियां पकड़ती हैं, जिनमें ऐसे बहुत से लोग हैं जिनका पूरा जीवन हिंसा से दूर रहा है और जिन्होंने आदिवासियों के हक की महज बात की है जो आदिवासी नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच पिस रहे हैं। आज स्टेन स्वामी की मौत से यह बात बड़ी तल्खी के साथ उभरकर सामने आती है कि इस देश का इतना कड़ा बनाया गया कानून क्या बेकसूर लोगों को इसी तरह मारते रहेगा, और क्या जमानत पर रिहा होने का भी कोई हक ऐसे लोगों को नहीं मिलेगा? 

अभी कल की ही बात है हमने सोशल मीडिया पर एक लाइन पोस्ट की थी जो कि विश्व विख्यात राजनेता बेंजामिन फ्रैंकलिन की कही हुई थी उन्होंने कहा था कि सबसे कड़े कानून कई मौकों पर सबसे बुरा बेइंसाफ भी हो जाते हैं। उनकी कही हुई यह बात कल ही हमारे सामने आई थी, और आज हिंदुस्तान के इस सबसे बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता की बिना जमानत इस तरह मौत के मौके पर बहुत बुरी तरह खटक भी रही है। हिंदुस्तान आज बिल्कुल ऐसे ही दौर से गुजर रहा है। आज हिंदुस्तान में आईटी एक्ट इतना कड़ा बनाया गया है कि जगह-जगह कहीं केंद्र सरकार की एजेंसियां, तो कहीं राज्य सरकार, इस एक्ट के तहत किसी कार्टून पर तो किसी एक तस्वीर पर कार्रवाई करते हुए लोगों को गिरफ्तार कर रहे हैं। हम अभी कार्रवाई के बीच में किसी की बेगुनाही या किसी के कसूरवार होने के बारे में कुछ कहना नहीं चाहते लेकिन यह जरूर कहना चाहते हैं कि जिनको जमानत मिलने से कोई खतरा नहीं है, ऐसे लोगों को जमानत ना देना अपने आप में बिना सुनवाई, बिना फैसले के, सजा देने से कम नहीं है। लोग अपने बच्चों को छोडक़र जेल जा रहे हैं और बच्चों के बच्चों को देखने के वक्त पर जेल से बाहर आ रहे हैं, बेकसूर साबित होकर। यह किस किस्म का लोकतंत्र है यह समझना बहुत मुश्किल है। ऐसे कड़े कानून किस काम के जो कि बेकसूरों को कुचलने के काम ही आएँ । हमने पिछले वर्षों में देखा है कि किस तरह जेएनयू के छात्र छात्राओं को कुचलने के लिए फर्जी वीडियो गढक़र उन्हें देश का गद्दार करार दिया गया, किस तरह जामिया मिलिया के छात्र छात्राओं के साथ ऐसा ही सुलूक किया गया, किस तरह शाहीन बाग का आंदोलन कुचला गया, और देश भर में जगह-जगह ऐसा काम हो रहा है। ऐसे कड़े कानूनों के बारे में एक बार फिर सोचने की जरूरत है और हिंदुस्तान की अदालतों को जमानत देने के अपने अधिकार और अपने रुख के बारे में एक बार फिर सोचना चाहिए। स्टेन स्वामी की इस तरह बिना जमानत और बिना सही इलाज के मौत इस देश को हिलाने के लिए काफी होनी चाहिए।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news