संपादकीय
हिंदुस्तान में विज्ञान के साथ एक दूसरी दिक्कत आ खड़ी हुई है, एक तरफ तो उसे कोरोना जैसे जानलेवा संक्रमण की महामारी से जूझना पड़ रहा है, और दूसरी तरफ धर्म और राजनीति के एक जानलेवा घालमेल से भी। कई दिनों से लगातार खबरें आ रही हैं कि किस तरह पहले तो उत्तराखंड में इस बरस की कांवर यात्रा को इजाजत न देना तय हुआ था, और सरकार की घोषणा हो जाने के बाद जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और भाजपा के इन दो राज्यों के बीच सरहदी टकराव की नौबत का खतरा दिखा, तो पहले समझदारी का फैसला लेने वाला उत्तराखंड पीछे हट गया, और कांवड़ यात्रा के बारे में दोबारा सोच-विचार करने लगा। गुजरात की कुछ डरावनी तस्वीरें आज आई हैं कि किस तरह वहां पावागढ़ के मंदिर में एक दिन में 1 लाख लोग जुटे। हो सकता है कि देश में दूसरी जगहों पर दूसरे धर्म स्थलों पर भी ऐसी भीड़ जुटी होगी, और जाहिल फैसले और अवैज्ञानिक मनमानी पर हिंदू धर्म का एकाधिकार तो है नहीं, इसलिए हो सकता है कि दूसरे धर्मों के भी ऐसे जमघट लगे हों। हम फिलहाल किसी एक धर्म के मामले गिनाने के बजाय विज्ञान के साथ धर्म के टकराव की बात कर रहे हैं जिसे कि राजनीति बढ़ावा दे रही है।
पिछले डेढ़ बरस के लॉकडाउन के दौरान लोगों ने यह देखा था कि जब चुनावों से परे सिर्फ सरकारी समझदारी को फैसले लेने थे, तो उसने देश भर में धर्मस्थलों को बंद करवाया था। लेकिन जब चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को फैसले लेने थे तो उन्होंने इस महामारी के खतरे को पूरी तरह अनदेखा करके परले दर्जे की एक लापरवाही दिखाई थी। लाखों लोगों की भीड़ वाली चुनावी सभाओं पर भी रोक नहीं लगाई थी। अब ऐसी ही लापरवाही चुनाव के मुहाने पर खड़े हुए उत्तर प्रदेश में दिख रही है, जहां पर कांवड़ यात्रा को राज्य सरकार बढ़ावा दे रही है। लोगों को याद होगा कि उत्तराखंड में जब कुंभ मेला भीड़ जुटा रहा था, कुंभ मेले में पहुंचे हुए भाजपा के एक विधायक ने कैमरों के सामने दावे के साथ ही यह कहा था कि वह कोरोना पॉजिटिव हैं और उसके बाद भी वे वहां आए हैं। कायदे की बात तो यह होती कि ऐसे व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार किया जाता जिसने कोरोना संक्रमित होने के बाद भी ऐसी भीड़ की जगह पर पहुंचकर लोगों के लिए खतरा खड़ा किया, लेकिन यह पूरे हिंदुस्तान में आम हाल है कि देश-प्रदेश का कानून वहां की सरकार की मर्जी के मुताबिक चलता है। पुराने जमाने में एक कहावत कही जाती थी कि जिसकी लाठी उसकी भैंस, तो हिंदुस्तान का संविधान आज भी एक भैंस से अधिक मायने नहीं रखता है और सत्ता उसे अपने हिसाब से लागू करती है, और अपने हिसाब से उसकी अनदेखी करती है। इसलिए दूसरी लहर खत्म होने के पहले और तीसरी लहर आने की आशंका के बीच आज जब हिंदुस्तान में प्रधानमंत्री टीवी पर जब यह नसीहत बांटते हैं कि लोगों को तीसरी लहर रोकनी है, इसकी जिम्मेदारी लोगों पर है, तो उस वक्त लोगों को गैरजिम्मेदार बनाते हुए कुछ सरकारें ऐसे फैसले ले रही हैं।
लोगों को अभी कुछ ही दिन पहले का वह वीडियो भी याद होगा जिसमें लगातार हिमाचल के पर्यटन केंद्रों में पर्यटकों की भीड़ अंधाधुंध इकट्ठा है, और रेले की तरह घूम रही है, बिना मास्क के घूम रही है. एक छोटा सा दिलचस्प वीडियो भी सामने आया था जिसमें एक छोटा सा बच्चा प्लास्टिक का एक डंडा लिए हुए चलती हुई भीड़ के बीच बिना मास्क वाले लोगों को अकेले ही रोक रहा है कि उनका मास्क कहां है? इस देश में विज्ञान के सामने कोरोना की दिक्कत छोटी है उसके सामने बड़ी दिक्कत और बड़ी चुनौती धर्म पर सवार राजनीति, और राजनीति पर सवार धर्म है। इन दोनों से मुकाबला करने के बाद अगर विज्ञान की कोई ताकत बचेगी तो हो सकता है कि वह कोरोना से भी लड़ ले। फिलहाल इस देश का संविधान बिना वेंटिलेटर के छटपटा रहा है, और उसे जिंदा रखने में किसी की अधिक दिलचस्पी भी नहीं दिख रही है क्योंकि वह लोगों को मनमानी करने से रोकता है। पिछले कई दिनों में देखें तो हिंदुस्तान के एक पर्यटन केंद्र में प्लास्टिक के छोटे से डंडे को लेकर लोगों को जिम्मेदारी सिखाता हुआ यह बच्चा ही अकेला देख रहा है जिसे संविधान की कोई फिक्र है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)