संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : उस बन्दूकप्रेमी अमरीका से लेकर नफरतप्रेमी हिंदुस्तान तक के खतरे
10-Aug-2021 4:25 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : उस बन्दूकप्रेमी अमरीका से लेकर नफरतप्रेमी हिंदुस्तान तक के खतरे

कई बरस पहले अमरीका के एक स्कूल में एक सिरफिरे समझे जा रहे नौजवान ने गोलियों से दर्जनों बच्चों को भून दिया था।  इस हत्यारे से जुड़ी हुई जो खबरें आई थीं उन पर भारत के लोगों के सोचने का भी एक पहलू है। इस अमरीकी नौजवान की मां को बंदूकों से बहुत मोहब्बत थी और वह अपने बेटों को पास की एक शूटिंग-रेंज पर ले जाया करती थी, जहां पर कि बंदूकों के शौकीन बहुत से लोग प्रैक्टिस के लिए आया करते थे। और वह बंदूकों के अपने संग्रह के बारे में भी लोगों से फख्र के साथ बात किया करती थी। दो दिन पहले जब वह अपने बेटों के हाथों मारी गई, तब उसी की बंदूक उसके खिलाफ इस्तेमाल हुई और इसके बाद वह बेटा इसी मां के स्कूल जाकर वहां छब्बीस और लोगों को मार बैठा। हर कुछ महीनों में अमरीका में ऐसी वारदात होती ही रहती हैं।

हिंदुस्तान में बड़े बुजुर्ग हमेशा से यह कहते हैं कि घर का वातावरण अच्छा रखना चाहिए। यहां की कहानियों में यह लिखा हुआ है कि किस तरह मां के पेट में रहते हुए अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोडऩा सीखा। इसी तरह इस देश में यह भी माना जाता है कि जब कोई महिला मां बनने वाली होती है, तो उसे अच्छा सुनना चाहिए, अच्छा देखना चाहिए। कुल मिलाकर बात यह है कि पैदा होने के पहले, या पैदा होने के बाद, लोगों को एक बेहतर माहौल की जरूरत होती है। जो लोग यह मानते हैं कि लोग पैदाइशी अच्छे या बुरे होते हैं, वे विज्ञान के कुछ आधे-अधूरे नतीजों को मान बैठते हैं, या फिर हमेशा से चली आ रही तर्कहीन कहावतों और मुहावरों को। दरअसल होता यह है कि किसी भी बच्चे की सोच बनने में उसके आसपास के माहौल का ही पूरा असर होता है। यह माहौल परिवार का भी हो सकता है, पड़ोस का भी हो सकता है, स्कूल या दोस्तों का भी हो सकता है। और आज के जमाने में इन सबसे परे, टीवी और इंटरनेट का भी हो सकता है। इसलिए जब कोई मां अपने बच्चे के सामने बंदूकों के अपने शौक को गर्व के साथ बखान करती है, और जब कोई बच्चा बचपन से ही इन बंदूकों के बीच सांस लेते बड़ा होता है, तो उसके इन बंदूकों के इस्तेमाल करने का खतरा भी बढ़ जाता है। दुनिया का इतिहास गवाह है कि बंदूकें किन्हीं मुजरिमों के मारने के, बुरे लोगों को मारने के काम नहीं आतीं, वे अधिकतर मामलों में सिर्फ बेकसूरों को मारने के काम आती हैं। कभी अपने को, कभी अपने जीवनसाथी को, और जैसा कि अमरीका के इस मामले में हुआ, अपनी मां को और उस मां की नौकरी वाले स्कूल के दर्जनों लोगों को।

इसलिए लोगों को यह सोचने और समझने की जरूरत है कि उनके, और उनके बनाए हुए माहौल का असर बच्चों पर बहुत दूर तक पड़ता है। जो मां-बाप बीड़ी-सिगरेट पीते हैं, उनके बच्चों के इस लत में पडऩे का खतरा अधिक होता है। ऐसा ही हाल बदजुबानी का है, जो लोग बातचीत में गालियां देते हैं, उनके बच्चे या उनके आसपास के बच्चे इन बातों को तेजी से सीखते हैं। जो बच्चा अपने पिता के हाथों अपनी मां से बदसलूकी देखते बड़ा होता है, वह आगे चलकर पिता से नफरत तो करता ही है, उसके खुद के हिंसक होने के खतरे बढ़ जाते हैं। हिंदुस्तान के आम परिवारों में लोग बच्चों के सामने बात करते हुए सामाजिक न्याय को भूल जाते हैं। कहीं कोई परिवार गरीबी को मूर्खता बताने लगता है, तो कहीं किसी आरक्षित तबके को सरकारी दामाद कहने लगता है। ऐसी सारी भाषा लोगों के मन में बचपन से ही बैठते चलती है और बड़े होने पर ऐसे बच्चों की सोच बदलने की गुंजाइश कम रहती है। आज इस पर लिखने का हमारा मकसद यह है कि भारत के मां-बाप इस पूरे हादसे को लेकर, और उसके पीछे इस हत्यारे नौजवान की मां की शौक और पसंद को देखते हुए, अपने खुद के बारे में सोचें-विचारें। यह देखें कि क्या उनकी कोई बात तो उनके बच्चों को गलत राह पर नहीं धकेल रही। अमरीका के इस हादसे से अगर हिंदुस्तान के मां-बाप, खुद बड़ी ठोकर खाने के पहले अपने को संभाल सकें, तो उसी में समझदारी है।

आज इस पुराने मामले पर लिखी हुई बात को दोहराने की जरूरत इसलिए पड़ रही है कि दो दिन पहले देश की राजधानी में चीख-चीख कर जो भीड़ मुसलमानों को काटने का फतवा जारी कर रही थी और इस बात को लेकर पागलपन के नारे लगा रही थी कि जब इन्हें काटा जाएगा तब वे राम-राम का नारा लगाएंगे। ऐसे लोगों को यह भी समझना चाहिए कि इस देश का नाकारा कानून और इस देश की सांप्रदायिक मुजरिमों से रियायत बरतने वाली सरकार मिलकर उन्हें सजा चाहे ना दिलवा सकें, लेकिन जब उनके परिवार के लोग, उनके आसपास के लोग सांप्रदायिक नफरत के ऐसे नारे लगाते उन्हें देखेंगे, तो वे या तो अपने परिवार के लोगों से नफरत करने लगेंगे, या इनके फतवे के झांसे में आकर खुद भी समाज के एक हिस्से से नफरत करने लगेंगे। कुल मिलाकर यह है कि उनकी जिंदगी नफरत से भरी हुई रहेगी। ये लोग मुसलमानों का कोई नुकसान नहीं कर सकेंगे, ये नुकसान सिर्फ हिंदुओं का करेंगे और अपने करीब के लोगों का सबसे अधिक नुकसान करेंगे, जिनकी जिंदगी में इंसानियत की एक जगह हो सकती थी, लेकिन उस जगह को यह नफरत से भर दे रहे हैं। इन लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि जिस तरह अमेरिका में मां-बाप की जमा की हुई बंदूकों को लेकर छोटे-छोटे बच्चे अपने स्कूल और कॉलेज में अपने बेकसूर साथियों को थोक में मार रहे हैं, उसी तरह की नफरत का शिकार हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी नफरतजीवियों के बच्चे होने जा रहे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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