संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑनलाइन की मजबूरी ने अनायास जुटा दिया मौका इस तरह गंवाना नहीं चाहिए
23-Aug-2021 3:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  ऑनलाइन की मजबूरी ने अनायास जुटा दिया मौका इस तरह गंवाना नहीं चाहिए

अगले कुछ महीनों में हिंदुस्तान में घर से काम करने, ऑनलाइन क्लास लेने, और इंटरनेट के रास्ते सेमिनार में हिस्सा लेने के 2 बरस पूरे हो जाएंगे। इस डेढ़ बरस में बहुत से इम्तिहान नहीं लिए गए, और बच्चों को अगली क्लास में भेज दिया गया। जो स्कूल ऑनलाइन पढ़ा सकती थीं, वे इस कोशिश में लगी हुई हैं कि पढ़ाने वाले लोगों को दी जा रही पूरी या आधी तनख्वाह, कुछ हद तक बच्चों की फीस की शक्ल में वसूल हो सके। लेकिन यह मामला भी देशभर में बड़ा कमजोर सा चल रहा है और निजी स्कूलों को यह समझ नहीं आ रहा है कि वे कब तक इस तरह काम कर सकेंगी और अगर कोरोना महामारी की तीसरी लहर आएगी तो उसके बाद निजी स्कूलों और कॉलेजों का क्या होगा? सरकारों ने कोरोना से जूझने के तरीके तो कुछ या अधिक हद तक ढूंढ लिए हैं, लेकिन खुद सरकार का अपना काम जिस तरह वीडियो कांफे्रंस पर चल रहा है, और पढ़ाई-लिखाई जिस तरह कंप्यूटर या मोबाइल फोन पर चल रही है, उस बारे में काफी कुछ करने की जरूरत है। अब कोरोना का तीसरा दौर आता है या नहीं यह तो किसी के हाथ में नहीं है, लेकिन हो सकता है कि आने वाले वर्षों में कोई और महामारी आए या किसी और वजह से स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई को ऑनलाइन करना पड़े, सेमिनार और कान्फ्रेंस ऑनलाइन होने लगें, तो उस दिन के लिए राज्य सरकारों ने कोई बेहतर तैयारी की हो, ऐसी मिसालें भी सामने नहीं आ रही हैं।

हम अपने आसपास के जितने राज्यों के बारे में खबरें पढ़ते हैं, किसी राज्य से ऐसी खबर अभी तक नहीं आई है कि सरकार ने अपने प्रदेश के स्कूल-कॉलेज के ढांचे को डिजिटल कामकाज के लिए बेहतर तैयार करने पर मेहनत की हो। स्कूल-कॉलेज में काम करने वाले शिक्षक या प्राध्यापक कंप्यूटर और इंटरनेट पर अधिक का काम करने के आदी नहीं रहे हैं। पढ़ाने, इम्तिहान लेने का काम तो ऑनलाइन करने की किसी की आदत नहीं रही है, कोई तजुर्बा नहीं रहा है। ऐसे में सरकारों को चाहिए तो यह था कि वे मामूली तकनीकों के जानकार लोगों को लेकर प्रदेश के स्कूल-कॉलेज के शिक्षकों और छात्र-छात्राओं, सभी को एक डिजिटल तैयारी करवाते। आज मामूली निजी जानकारी से लोग किसी तरह काम चला रहे हैं, लेकिन एक तरफ तो पढ़ाई के ढांचे पर खर्च लगभग उतना ही हो रहा है, दूसरी तरफ छात्र-छात्राओं के एक के बाद एक बरस निकले चले जा रहे हैं। ऐसे में अगर काम को बेहतर बनाने पर मेहनत नहीं हो रही है, तो जाहिर है कि उत्पादकता और उत्कृष्टता दोनों ही कम और कमजोर रहेंगे। वही आज हो रहा है।

यह एक ऐसा मौका भारत जैसे देश के लिए सामने आया था, और आज भी खड़ा हुआ है कि अपने पढ़ाई के ढांचे का डिजिटलीकरण बेहतर तरीके से किया जाए, और कामचलाऊ अंदाज में औपचारिकता पूरी करने के बजाए अच्छी क्वालिटी का काम किया जाए। सरकार के स्कूल-कॉलेज के अधिकतर शिक्षक-शिक्षिकाओं की उम्र आसानी से सीखने की निकल चुकी है, अब अगर उनसे यह उम्मीद की जाए कि वे अपने घर-परिवार के बच्चों को पकडक़र उनसे कुछ सीख लें, तो इस उम्मीद से अधिक उम्मीद नहीं करनी चाहिए। सरकारों को अपने इतने संगठित ढांचे में योजनाबद्ध तरीके से अपने शिक्षक-शिक्षिकाओं को तकनीक के इस्तेमाल का प्रशिक्षण देना चाहिए था। इसके साथ ही स्कूल-कॉलेज के बच्चों को भी ऑनलाइन तकनीक का इस्तेमाल सिखाने पर मेहनत करनी थी।

यह तो सरकारों के हाथ में है कि वे एक और साल बिना इम्तिहान लिए बच्चों को अगली क्लास में भेज सकती हैं, लेकिन क्या इतना गुजरता जा रहा वक्त कभी लौटकर आएगा? क्योंकि सरकारों ने ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखने का फैसला लिया है और स्कूल-कॉलेज में इसे लेकर खासा संघर्ष भी जारी है यह एक ऐसा मौका है जब राज्यों को अपनी कंप्यूटर से जुड़ी किसी एजेंसी को तुरंत ही ऐसे प्रशिक्षण की तैयारी करने कहना था और आज देश में जितनी बेरोजगारी है उसमें मामूली तकनीक सिखाने के लिए हुनरमंद लोग भी तुरंत मिल सकते थे। यह एक ऐसा मौका भी है जब स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालयों को तरह-तरह के लेक्चर तैयार करने के लिए कम से कम शहर के स्तर पर अच्छे स्टूडियो मुहैया कराए जा सकते थे जिनसे पढ़ाने की बेहतर सामग्री तैयार हो सकती थी। यह भी हो सकता था कि इस मौके के सही इस्तेमाल से कोरोना की दिक्कतें खत्म होने के बाद भी पढ़ाई को बेहतर करने की तैयारी हो चुकी रहती, लेकिन ऐसा कहीं होते दिख नहीं रहा है। इस महामारी ने लॉकडाउन और ऑनलाइन पढ़ाई ने यह मौका दिया है कि पढ़ाई का तेजी से कंप्यूटरीकरण हो सकता था, और दूर-दूर बसे हुए स्कूल-कॉलेज में पढ़ाने वालों की कमी भी ऐसी ऑनलाइन पढ़ाई से दूर हो सकती थी। लेकिन बजाए बेहतर तैयारी के, बजाए एक अच्छी योजना बनाने के, सरकार ने मोटे तौर पर अपने ढांचे को किसी तरह से इस नौबत से जूझने में लगा दिया।

सरकार का अपने पढ़ाई के ढांचे पर खासा खर्च होता है और उसका इस्तेमाल एक औपचारिकता निभाने के लिए, साल काटने के लिए नहीं करना चाहिए बल्कि उसकी उत्पादकता और उत्कृष्टता दोनों को लगातार बढ़ाते चलने की कोशिश करनी चाहिए। अभी भी वक्त है समझदार राज्य अपने स्तर पर एक अच्छी योजना बनाकर पढ़ाई के पूरे ढांचे के ऐसे प्रशिक्षण का काम कर सकते हैं जिससे सबका भला हो। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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