संपादकीय
हरियाणा के एक विख्यात तीर्थ स्थान माता मनसा देवी मंदिर में ट्रस्ट की सचिव ने एक जुबानी आदेश निकालकर सुरक्षाकर्मियों को कहा है कि छोटे कपड़े और जींस पहनकर आने वाले लोगों को मंदिर में इजाजत ना दी जाए। सचिव के पद पर काम कर रही इस महिला का तर्क यह है कि दूसरे श्रद्धालु और दर्शनार्थी कुछ लोगों को छोटे कपड़ों में देखकर आपत्ति करते थे और उनका कहना था कि मंदिर में मर्यादा का पालन होना चाहिए। दूसरी तरफ इस मंदिर ट्रस्ट के प्रशासक और पंचकूला जिले के कलेक्टर का कहना है कि उन्होंने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है और यह बोर्ड सचिव की निजी राय हो सकती है, ट्रस्ट ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है। कुछ लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है, कुछ लोगों ने इसका विरोध किया है, कुछ लोगों ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन, और तुगलकी फैसला बताया है, लेकिन कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि हर धार्मिक स्थल की मर्यादा रहती है, इसलिए श्रद्धालुओं को यहां भी ध्यान रखना चाहिए। मनसा देवी के मंदिर में देशभर से लोग पहुंचते हैं और यह करीब पौने 200 साल पुराना मंदिर है।
हरियाणा का यह कैसा दिलचस्प मामला है जिसमें महिलाओं के कपड़ों को लेकर या जींस को लेकर लगाई गई रोक पर मिलीजुली प्रतिक्रिया रही है। इस राज्य में लड़कियों पर कई तरह की रोक खाप पंचायतों से लेकर मौजूदा भाजपा सरकार के मंत्रियों, मुख्यमंत्री तक की तरफ से लगती रही है, ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि इस राज्य में कई लोग खुलकर कपड़ों पर ऐसी रोक का विरोध भी कर रहे हैं। इस बारे में सोचने की जरूरत है कि क्या मंदिर में ऐसे किसी ड्रेस कोड को लागू करना चाहिए या नहीं? हम बहुत खुले ख्याल से इस जगह पर अपनी बात लिखते हैं लेकिन इस मुद्दे पर ऐसा लगता है कि मंदिर ट्रस्ट की सचिव ने जो जुबानी प्रतिबंध लगाया है, वह प्रतिबंध एक हिसाब से ठीक है। मंदिर में अगर लड़कियां और महिलाएं छोटे कपड़ों में पहुंचेंगे तो हो सकता है कि दूसरे श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों का ध्यान देवी की तरफ से हटकर इनकी तरफ चले जाए। मंदिर में जाने वाले लोग तपस्वी और सन्यासी तो होते नहीं कि छोटे कपड़ों में महिलाओं को देखकर भी उनकी नजरें उधर न जाएँ। फिर यह भी है कि एक मंदिर में जाने वाले लोग किसी मजबूरी में वहां नहीं जाते, अपनी मर्जी से जाते हैं और अपनी तैयारी से जाते हैं। ऐसे में अगर वहां जाते हुए लोग साधारण कपड़ों में वहां जाते हैं और छोटे कपड़े नहीं पहनते हैं, या जींस नहीं पहनते हैं, तो यह उनके लिए बहुत असुविधा की बात नहीं है। एक धर्मस्थल में लोगों का ध्यान धर्म और उपासना की तरफ ही केंद्रित रह सके, इसमें उससे मदद मिल सकती है। अब दूसरे धर्म स्थलों के बारे में बात करें तो देश में जहां कहीं भी गुरुद्वारे हैं या मस्जिदें हैं उन सबमें भीतर जाते हुए लोग पगड़ी-टोपी पहनते हैं या सर पर रुमाल बांधते हैं, उसके बिना वहां कोई दाखिला नहीं होता। आज तक किसी गुरुद्वारे जाने वाले ने ऐसी शिकायत नहीं की कि उन्हें सिर पर कुछ रखे बिना, सर ढंके बिना वहां जाने नहीं मिलता है। मस्जिदों में जितनी नमाज होती हैं उनमें भी लोग सिर पर रूमाल बांधे होते हैं, या टोपी लगाए होते हैं। जो दुनिया के सबसे उदार देश हैं उनमें भी बहुत सी जगहों पर चर्च पर यह नोटिस लगे होते हैं कि भीतर आने वाले लोगों के घुटने ढंके रहें। और ये चर्च किसी गांव या कस्बे के चर्च नहीं है, ये दुनिया के मशहूर पर्यटन केंद्रों के चर्च हैं, जहां पर दुनिया भर के सैलानी घूमने-फिरने के अंदाज में बिना किसी आस्था के भी इमारत को देखने के लिए पहुंच जाते हैं, और भीतर भी देखने जाते हैं। ऐसे देशों में चर्च पर भी ऐसे नोटिस लगे होते हैं और उन पर अमल भी करवाया जाता है।
हर धर्म के अपने रीति रिवाज रहते हैं और किसी भी धार्मिक स्थान पर वहां के लोग ऐसे साधारण नियम लागू भी कर सकते हैं जिन पर अमल करना बहुत बड़ी दिक्कत की बात ना हो। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर से लेकर हिंदुस्तान में बहुत सारे ऐसे मंदिर हैं जहां पर जाने वाले पुरुषों को धोती लपेट कर ही भीतर जाना होता है। केरल का एक प्रमुख तीर्थ स्थान ऐसा है जहां सारे पुरुष काले कपड़ों में जाते हैं। अलग-अलग तरह के धार्मिक अनुशासन रहते हैं और इन्हें लोगों की आजादी में खलल मानना ठीक नहीं है। हिंदुस्तान में किसी धार्मिक स्थल पर जाति के आधार पर दाखिला ना हो या महिलाओं के दाखिले पर रोक हो तो उसके खिलाफ तो संघर्ष करना ठीक बात है। लेकिन किसी मंदिर में छोटे कपड़े पहन कर ही जाने की जिद जायज नहीं लगती है क्योंकि छोटे कपड़ों में लड़कियों या महिलाओं को देखकर उस धर्म स्थल का माहौल गड़बड़ा सकता है। इसलिए पंचकूला के कलेक्टर ने चाहे मंदिर सचिव के इस जुबानी आदेश को अनधिकृत बतलाया हो, हमारे हिसाब से यह आदेश ठीक है और जिन लोगों को ऐसे कपड़ों में वहां पहुंचने की बात नाजायज लगती है, वे लोग वहां न जाएं। हर उपासना स्थल को अपने ड्रेस कोड तय करने का अधिकार रहता ही है, और उसके खिलाफ किसी को जिद करना नहीं चाहिए। निजी स्वतंत्रता जैसे बड़े-बड़े शब्दों को ऐसे मामले में बीच में लाना पूरी तरह से फिजूल की बात है, और जिनको किसी धर्म स्थल पर वहां के नियम नहीं मानने हैं वे वहां न जाएं। हम जाति के आधार पर या धर्म के आधार पर या औरत मर्द होने के आधार पर किसी के दाखिले पर रोक टोक के खिलाफ हैं। देश के धर्म स्थलों पर ऐसी रोक हो तो लोगों को वहां संघर्ष करना चाहिए और निजी स्वतंत्रता का दर्जा इतना गिरा भी नहीं देना चाहिए कि उसका इस्तेमाल मंदिर में छोटे कपड़े पहनने की जिद के लिए किया जाए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)