संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बैटरी गाडिय़ों की संभावनाओं पर तुरंत काम की जरूरत
31-Aug-2021 5:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  बैटरी गाडिय़ों की संभावनाओं पर तुरंत काम की जरूरत

मीडिया में कुछ अलग-अलग खबरें हैं, और कुछ अपने आसपास सडक़ों पर बदलती हुई तस्वीर दिख रही है, इन दोनों को मिलाकर देखें तो लगता है कि आने वाला वक्त बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों का होने वाला है। और हो सकता है कि जिस शहरी प्रदूषण को लोग कभी कम ना होने वाला मानकर चल रहे थे, वह कम होने लगे और धीरे-धीरे हवा साफ होने लगे। आज की एक खबर यह है कि हिंदुस्तान की ही एक ऑटोमोबाइल कंपनी ने अभी अपनी एक दमदार इलेक्ट्रिक कार बाजार में उतारी है जो सिंगल चार्ज में 300 किलोमीटर से अधिक चलेगी। दूसरी खबर देश की राजधानी के पास के एक औद्योगिक क्षेत्र की है कि वहां किस तरह बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों को बनाने के बहुत सारे उद्योग लग रहे हैं और वह एक इलेक्ट्रिक सिटी कहला रही है। फिर हम अपने आसपास देख रहे हैं तो पिछले दो-तीन वर्षों में लगातार शहरों में बैटरी से चलने वाले ऑटो रिक्शा बढ़ते दिख रहे हैं और अभी डीजल से चलने वाले ऑटो रिक्शा जितना प्रदूषण फैलाते हुए चलते थे धुएं के साथ-साथ जितना शोर करते हुए चलते थे, वह पूरे का पूरा सिलसिला बैटरी वाले ऑटो रिक्शा में खत्म हो गया है, और बगल से गाड़ी निकलने पर आवाज तक नहीं आती है। दिल्ली की एक खबर यह है कि वहां की सरकार ने बैटरी से चलने वाली सैकड़ों बसें खरीदी हैं।

कुल मिलाकर मतलब यह है कि मौजूदा गाडिय़ां धीरे-धीरे कम होने वाली हैं क्योंकि 15 बरस के बाद किसी गाड़ी का दोबारा रजिस्ट्रेशन कराना बहुत महंगा पडऩे वाला है, और उसे बेचना सस्ता पडऩे वाला है। दूसरी तरफ ऐसे शहर बढ़ते चल रहे हैं जहां पर डीजल ऑटो रिक्शा के बजाय बैटरी ऑटो रिक्शा को केंद्र और राज्य सरकार बढ़ावा दे रही हैं उन पर सब्सिडी दे रही हैं। यह नई गाडिय़ां इतनी सहूलियत की हैं कि इन्हें बड़ी संख्या में महिलाएं भी चला रही हैं। परंपरागत मुसाफिर और सामान ढोने के अलावा बैटरी वाले ऑटो रिक्शा में फल और सब्जियां बेचने के लिए सैकड़ों लोग एक-एक शहर में रिहायशी इलाकों में घूम रहे हैं और वहां बिना शोर किए बिना धुआं फैलाए कारोबार कर रहे हैं।

लेकिन सडक़ों पर गाडिय़ां कई किस्म की रहती हैं। ऑटो रिक्शा से परे निजी कारें और निजी दुपहिया ऐसे हैं जिनमें खूब पेट्रोल लगता है और जो कि अब सौ रुपये लीटर से अधिक महंगा हो चुका है। ऐसे में हिंदुस्तान में बाजार में उतरने वाला एक नया दुपहिया जब बहुत मामूली बिजली खर्च पर चलने का वादा कर रहा है, और एक-एक करके कई कंपनियां बिजली से चार्ज होने वाली बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां उतारते जा रही हैं, तो आने वाला वक्त एक बदली हुई तस्वीर रहना तय है। लेकिन बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां कुछ किस्म की नई चुनौतियां लेकर आने वाली हैं। एक तो यह कि आज जिस तरह गाडिय़ों के निकले हुए, घिसे हुए टायर पहाड़ की तरह इकट्ठे होते जा रहे हैं, क्या गाडिय़ों की बैटरी उसी किस्म के नए पहाड़ बनेंगीं, या हिंदुस्तान की जुगाड़ तकनीक उन बैटरी के दोबारा इस्तेमाल जैसा कोई रास्ता निकाल सकेगी? बैटरी की जिंदगी बढ़ाना और बैटरी की उत्पादकता बढ़ाना इन दोनों पर पूरी दुनिया में खूब काम चल रहा है, और बैटरियों का बेहतर होना केवल वक्त की बात है इसलिए इनके पहाड़ बनने का खतरा धीरे-धीरे कम भी हो सकता है। अब दूसरी बात यह है कि जब लोगों को अपनी दुपहिया या चौपहिया को घर और दफ्तर से परे चार्ज करने की सहूलियत जब तक नहीं रहेगी, तब तक बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों का आगे बढऩा कुछ धीमा भी हो सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर या अलग-अलग अपने चुनिंदा बड़े शहरों में बैटरी चार्ज करने के सेंटर बनाने चाहिए जो कि पेट्रोल और डीजल के पंपों की तरह जगह-जगह हों और उनके साथ कुछ घंटे लोगों के बैठने खाने-पीने आराम करने या नहाने जैसी सहूलियत भी जोडऩी चाहिए ताकि इस कारोबार के जिंदा रहने की गुंजाइश भी बढ़े और लोगों को एक जगह गाड़ी चार्ज होने तक इंटरनेट या मनोरंजन के साथ-साथ खाने-पीने, लेटने की सुविधा भी मिल सके। दरअसल बैटरी की गाडिय़ां अगर बढ़ जाएंगी और तब तक उनकी चार्जिंग का ढांचा विकसित नहीं होगा, तो इससे लोगों का उत्साह कम भी हो सकता है। इसलिए मौजूदा पेट्रोल पंप उनके ढांचे को भी बैटरी चार्जिंग स्टेशन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि उनके आसपास खाने-पीने की कोई न कोई जगह रहती है। दूसरी तरफ स्थानीय संस्थाएं या राज्य सरकार ऐसे नए कारोबार भी विकसित कर सकती है जिनमें चार्जिंग स्टेशन एक बड़ा आकर्षक कारोबार हो सकता है।

हिंदुस्तान के बाजार और हिंदुस्तान की सरकार इन दोनों को मिलकर इस मौके का कई तरह का इस्तेमाल करना चाहिए। अभी हम बहुत तकनीकी जानकारी में नहीं जा रहे हैं, लेकिन यह संभावना भी देखनी चाहिए कि क्या सोलर पैनलों से भी बैटरी चार्ज हो सकती हैं? क्या चार्जिंग खो चुकी बैटरी की जगह तुरंत ही दूसरी बैटरी दी जा सकती है ताकि लोगों को चार्जिंग की राह देखते हुए अधिक वक्त तक रुकना ना पड़े? दुनिया के कई देशों में बैटरी की अदला-बदली एक बड़ा संगठित कारोबार बन गया है। छोटे से ताईवान में लाखों लोग बैटरी बदलकर चार्ज की हुई बैटरी देने वाली कंपनी के ग्राहक हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के शहरी विकास से जुड़े हुए विभागों को तुरंत ही अगले 10-20 बरस की ऐसी संभावनाओं को देखकर उसके हिसाब से क्षमता विकसित करनी चाहिए ताकि नया कारोबार भी पनपे, और लोगों को बैटरी की गाडिय़ां लेते हुए कोई आशंका भी ना रहे कि वह कहीं भी खड़ी हो जाएगी तो क्या होगा। आज जिस तरह कई कंपनियों की गाडिय़ों को खराब होने पर उठाकर ले जाने की सहूलियत उनकी कंपनियां देती हैं कुछ उसी तरह की बैटरी पहुंचाने की सुविधा भी रहनी चाहिए कि एक टेलीफोन करते ही कोई तकनीशियन आकर बैटरी बदल कर चले जाए। राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी कल्पनाशील होना चाहिए और आने वाले वक्त का अंदाज लगाकर सरकार की नीतियां बनाकर जमीन देनी चाहिए, सहूलियत देनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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