संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय एप्पल ने आई-फोन में झांककर चाइल्ड पोर्नोग्राफी पकडऩे की घोषणा की है, एक खतरा और..
01-Sep-2021 5:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय एप्पल ने आई-फोन में झांककर चाइल्ड पोर्नोग्राफी पकडऩे की घोषणा की है, एक खतरा और..

photo courtesy PC Magazine

हिंदुस्तान के जिन लोगों के सिर से अब पेगासस की दहशत हट चुकी है और लोग मान चुके हैं कि अब उन्हें सरकार या किसी गैर सरकारी एजेंसी की जासूसी का खतरा नहीं है, उनके लिए एक खबर है जिससे उनकी सारी तसल्ली धरी रह जाएगी। एप्पल कंपनी ने अभी एक ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित करने की घोषणा की है जिससे वह अमेरिका के अपने तमाम आईफोन में तस्वीरों, वीडियो, और टाइप किए हुए संदेशों में झांक सकती है। उसने यह काम बच्चों की पॉर्नोग्राफी को रोकने की अमेरिकी सरकार की मुहिम के तहत अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए किया है. इस टेक्नोलॉजी से एप्पल अमेरिका के अपने हर आईफोन, और आईफोन से जुड़े हुए आईक्लाउड अकाउंट में अपने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले कंप्यूटरों से झांक सकेगी, झांकेगी, और देख सकेगी कि वहां चाइल्ड पॉर्नोग्राफी का कुछ सामान तो नहीं है। अगर उसे किसी एक फोन पर ऐसे 30 से अधिक फोटो या वीडियो मिलेंगे तो एप्पल का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उसके कर्मचारियों को सतर्क करेगा। उसके बाद वे कर्मचारी खुद इन तस्वीरों को देखेंगे, और अगर उन्हें चाइल्ड पॉर्नोग्राफी देखेगी तो वे ऐसा फोन इस्तेमाल करने वाले की जानकारी सबूत सहित अमरीकी जांच अधिकारियों को दे देंगे। इसमें कंपनी द्वारा की गई घोषणा में ही बतलाया गया है कि 13 साल से कम उम्र के जो बच्चे एप्पल आईफोन इस्तेमाल करते हैं, उनके फोन की अलग से जांच होगी, और उनमें से कोई बच्चे अगर अपनी खुद की या किसी और बच्चे की नंगी तस्वीर किसी को भेज रहे हैं, या किसी से पा रहे हैं, तो इसकी जानकारी एप्पल के कंप्यूटर तुरंत ही कंपनी के कर्मचारियों को देंगे, और नाबालिग बच्चों के मां-बाप को इसकी खबर की जाएगी। अगर कोई व्यक्ति बच्चों से ऐसी फोटो मांगने के संदेश भी भेजेंगे तो वैसे संदेश भी यह कंपनी पढ़ सकेगी। एप्पल के पहले फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों ने यह तकनीक विकसित की है, जिससे फेसबुक पर आने जाने वाली तस्वीरों में बच्चों की नंगी तस्वीरें को रोकने का इंतजाम है, और गूगल ने अपने यूट्यूब जैसे चैनल पर चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को रोकने के कई इंतजाम किए हुए हैं। एप्पल इस मुहिम में पीछे था, लेकिन अभी उसने जो घोषणा की है, उसमें वह खासी बड़ी कार्यवाही करने जा रहा है।

लेकिन अमेरिका में निजता के हिमायती लोग इस बात को लेकर बड़े फिक्रमंद हैं कि कंपनी ने एक ऐसी तकनीक विकसित कर ली है जिससे वह लोगों के फोन में घुसपैठ कर सकती है, वहां पर फोटो, वीडियो और संदेश, सबको अपने कंप्यूटरों के मार्फत पढ़ सकती हैं, और शक होने पर उसके कर्मचारी भी इन तस्वीरों और वीडियो को देख सकते हैं। आजादी के हिमायती संगठनों का यह कहना है कि कुछ बरस पहले जब अमेरिका में एक आतंकी के आईफोन का लॉक खोलना अमेरिकी खुफिया एजेंसियों से भी नहीं हुआ तो अमेरिकी सरकार ने एप्पल से अनुरोध किया था कि वह इसका लॉक खोल दे ताकि आतंक के खतरे की जानकारी मिल सके। इसके बाद अमेरिका की बड़ी अदालत ने भी एप्पल को इसका हुक्म दिया था और कंपनी ने अदालत में यह कहा था कि उसके पास ऐसी तकनीक ही नहीं है कि वह बिना पासवर्ड के अपने फोन को खोल सके। उसने कहा था कि ऐसी तकनीक विकसित करना कैंसर विकसित करने जैसा खतरनाक काम होगा और कंपनी ऐसा नहीं करने वाली है। अदालत के आदेश के बाद भी एप्पल ने ऐसा नहीं किया था।

अब चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को रोकने के लिए इस कंपनी ने काफी दूर तक घुसपैठ करने वाली ऐसी तकनीक के इस्तेमाल की घोषणा कर दी है तो लोग चौकन्ने हो गए हैं। मानवाधिकार संगठनों और निजता के समर्थकों का यह मानना है कि अब एप्पल के पास अमेरिकी सरकार या अमेरिकी अदालत में यह तर्क देने की गुंजाइश खत्म हो चुकी है कि उसके पास ऐसी तकनीक ही नहीं है. अब जब वह तकनीक बना चुकी है, तो यह महज वक्त की बात है कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी के बाद सरकार और किस अपराध को रोकने के लिए इस कंपनी पर घुसपैठ का दबाव डालेगी, और धीरे-धीरे सरकार निजता को पूरी तरह से खत्म कर सकेगी क्योंकि कंपनी ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है। अमेरिकी निजता संगठनों का यह भी कहना है कि दुनिया के बहुत से दूसरे देश भी कंप्यूटर और टेलीफोन कंपनियों पर लगातार दबाव डाल रहे हैं कि वे सरकार को घुसपैठ का रास्ता बनाकर दे। एप्पल के मामले में ही अमेरिका में जो बहस चल रही है उसमें यह गिनाया जा रहा है कि चीन में वहां की सरकार ने इस कंपनी पर दबाव डालकर यह इंतजाम कर लिया है कि इसके ग्राहकों की सारी जानकारी चीन में ही इसके सरवर पर रहेगी। लोगों का मानना है कि इससे चीन में आईफोन इस्तेमाल करने वाले लोगों पर सरकार की एक पकड़ बन गई है। अमेरिका में इस पर चल रही बहस के दौरान हिंदुस्तान की सरकार का जिक्र भी किया जा रहा है कि किस तरह वह व्हाट्सएप के पीछे लगी हुई है कि उसे घुसपैठ की इजाजत दी जाए, किस तरह व ट्विटर या फेसबुक पर अपने को नापसंद सामग्री को मिटाने का इंतजाम कर रही है. डिजिटल घुसपैठ के लिए पेगासस जैसे खुफिया हैकिंग सॉफ्टवेयर का भारत में भी इस्तेमाल किए जाने की खबरें तो पिछले कुछ महीनों से चल ही रही हैं, जो कि सुप्रीम कोर्ट में एक गंभीर कगार तक आ पहुंची हैं।

लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि मोबाइल फोन जैसा निजी सामान अगर किसी कंपनी की बिल्कुल ही आम इस्तेमाल की तकनीक से घुसपैठ के लायक रह जाएगा तो लोगों की व्यक्तिगत जिंदगी कुछ भी नहीं बचेगी, उसमें व्यक्तिगत कुछ भी नहीं रह पाएगा। आज बात एप्पल के कंप्यूटरों की है, और कल हो सकता है कि एप्पल के कोई कर्मचारी कंपनी की नीतियों से बगावत करके इसमें घुसपैठ करें, और वहां की जानकारी को लेकर बाहर निकल जाएं। एप्पल को खुद भी अंदाज है कि उसकी इस मुहिम से उसके ग्राहक बिदक सकते हैं, तो उसने अपने बिक्री करने वाले कर्मचारियों की एक अलग से ट्रेनिंग शुरू की है कि ग्राहकों की तमाम फिक्र को किस तरह सुलझाया जाए और उनका भरोसा किस तरह कायम रखा जाए। लेकिन कुल मिलाकर हकीकत यह है कि एप्पल ने ऐसी तकनीक ना केवल विकसित कर ली है बल्कि उसका इस्तेमाल शुरू करने की घोषणा की है और किसी भी सरकार की इस ताकत पर लार टपक सकती है कि वह लोगों के मोबाइल पर कुछ किस्म की फोटो कुछ किस्मों के वीडियो या कोई भी संदेश ढूंढ सकती हैं। इसके लिए कंपनी पर कब से कितना दबाव पड़ेगा या कंपनी के कंप्यूटरों में घुसपैठ करके सरकार या दूसरी हैकिंग एजेंसियां ऐसा कर पाएंगे, यह खतरा सामने खड़ा ही रहेगा। एप्पल तो दुनिया की एक सबसे बड़ी कंपनी है और इसने अभी कुछ वर्ष पहले तक अमेरिकी सरकार और अमेरिकी अदालत की, आतंक के एक मामले में भी कोई मदद करने से साफ मना कर दिया था। दूसरी तरफ मोबाइल फोन और कंप्यूटर बनाने वाली बहुत सी ऐसी चीनी कंपनियां हैं जिनके बारे में दुनिया भर में यह शक है कि वे चीन की सरकार या खुफिया एजेंसियों को तमाम जानकारियां पहुंचाती हैं। पश्चिम के कई देशों में चीन की ऐसी बदनाम कंपनियों के टेलीफोन एक्सचेंज से लेकर उनके मोबाइल फोन तक इस्तेमाल नहीं किए जा रहे हैं। भारत में भी शायद सरकार, फौज, और खुफिया एजेंसियां ऐसी कंपनियों के सामान इस्तेमाल करने से बचती हैं। अब सवाल यह है कि अगर चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को रोकने के नाम पर भी, या शक का फायदा दिया जाए तो यह कह सकते हैं कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को रोकने के लिए, अगर ऐसी तकनीक विकसित की जा रही है तो वह बेजा इस्तेमाल के लिए भी मौजूद रहेगी। सरकारी खुफिया एजेंसियां और हैकिंग कंपनियां ये सब इस नए रास्ते के कानूनी या गैर कानूनी इस्तेमाल की संभावनाएं ढूंढने में लग चुके होंगे। आज एक कंपनी ने ऐसा किया है, आगे चलकर दूसरी कंपनियां ऐसा करेंगी, और बात मोबाइल से कंप्यूटरों तक चली जाएगी और दुनिया में कुछ भी गोपनीय या निजी नहीं रह जाएगा।

हम शायद ऐसी नौबत को ध्यान में रखते हुए हमेशा से इस बात को लिखते हैं कि लोगों का अपना चाल-चलन ठीक रखना, गैर कानूनी काम से बचना ही अकेला रास्ता है। धीरे-धीरे ऐसी तकनीक भी बन सकती है कि लोगों के मन में कोई बात आए और कंप्यूटर या फोन उसको रिकॉर्ड कर ले, इसलिए लोगों को अपना मन भी साफ-सुथरा रखना सीख लेना चाहिए। आज लोगों के मन में कोई बात आए और कल वह पोस्टर की तरह छपकर सरकारों के पास पहुंच जाए, यह बहुत खतरनाक नौबत होगी। फिलहाल मुजरिमों को पकडऩे और निजी जिंदगी की निजता को खतरे में डालने के बीच एप्पल की यह नई तकनीक आई है, और देखना है कि इसके बेजा इस्तेमाल कबसे सामने आते हैं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)
 

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