संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : निजता पर मंडराते खतरे की अनदेखी बहुत खतरनाक
09-Sep-2021 4:48 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : निजता पर मंडराते खतरे की अनदेखी बहुत खतरनाक

सुप्रीम कोर्ट की कुछ किस्म की रोक के बावजूद हिंदुस्तान में केंद्र सरकार जिस अंदाज में आधार कार्ड से हर चीज को जोड़ती चल रही है, उसे लेकर लोगों में एक बेचैनी है। अब आधार कार्ड से जमीन की खरीदी-बिक्री को भी जोड़ा जा रहा है, उससे पैन कार्ड को भी जोड़ा जा रहा है, और कोरोना वैक्सीन तो उससे जुड़ा हुआ है ही। धीरे-धीरे करके सरकार के पास इतनी डिजिटल जानकारी आ गई है कि उससे पेगासस जैसे मंहगे खुफिया घुसपैठिया हथियार का इस्तेमाल आम लोगों पर करने की जरूरत नहीं है, और आम लोगों पर निगरानी के लिए तो उनका आधार कार्ड अकेला ही उनके खिलाफ सबसे बड़ा मुखबिर बन ही चुका है। आज बैंक, क्रेडिट कार्ड, रेल और प्लेन के रिजर्वेशन, कोरोना  टीकाकरण और कई किस्म की खरीदी बिक्री, इन सबको जिस तरह से आधार कार्ड से जोड़ दिया गया है, तो उससे सरकारी कंप्यूटरों पर बैठे हुए लोग, लोगों के बारे में इतनी जानकारियां निकाल सकते हैं, जितनी कल्पना भी लोग नहीं कर सकते। यह सवाल बहुत से लोगों के जेहन में पहले से तैर रहा है। और लोगों को यह भी याद होगा कि आधार कार्ड को जिस तरह से हर चीज में अनिवार्य किया जा रहा है, उससे भी यह नौबत आ रही है कि लोगों की निजी जिंदगी की हर बात सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होती जाएगी, और यह तो जाहिर है ही कि सरकारें, न सिर्फ हिन्दुस्तान की, बल्कि सभी जगहों की, अपने हाथ आई जानकारी का बेजा इस्तेमाल करती ही हैं। जब दूसरों की जिंदगी, कारोबार, खरीददारी, इन सबमें ताकझांक करने का मौका सरकारों को मिलता है, तो वह अपने लालच पर काबू नहीं पा सकतीं।

दस-पन्द्रह बरस पहले अमरीका की एक फिल्म आई थी, एनेमी ऑफ द स्टेट। इस फिल्म में सरकार एक नौजवान वकील के पीछे पड़ जाती है, क्योंकि उसके हाथ सरकार के एक बड़े ताकतवर नेता के कुछ सुबूत लग जाते हैं। अब इन सुबूतों को उससे छीनने के लिए सरकार जिस तरह से टेलीफोन, इंटरनेट, खरीदी के रिकॉर्ड, रिश्तेदारियों के रिकॉर्ड, और उपग्रह से निगरानी रखने की ताकत, जासूस और अफसर, टेलीफोन पर बातचीत और घर के भीतर खुफिया कैमरों से निगरानी रखकर जिस तरह इस नौजवान को चूहेदानी में बंद चूहे की तरह घेरने की कोशिश करती है, वह अपने आपमें दिल दहला देने वाली घुटन पैदा करती है। भारत में जो लोग आधार कार्ड को हर जगह जरूरी करने के कानून के खिलाफ हैं, उनका भी मानना है कि इससे निजता खत्म होगी। भारत में आज जिस तरह आधार कार्ड को जरूरी कर दिया गया है, उससे सरकार हर नागरिक की आवाजाही, सरकारी कामकाज, भुगतान और बैंक खाते, खरीददारी, सभी तरह की बातों पर पल भर में नजर रख सकती है।

और फिर जो बातें बैंकों और निजी कंपनियों के रिकॉर्ड में आती जाती हैं, उनका इस्तेमाल तो बाजार की ताकतें भी करती ही हैं। यह एक भयानक तस्वीर बनने जा रही है जिसमें भारत की सरकार लोगों से यह उम्मीद करती है कि वे अपनी हर खरीद-बिक्री, हर टिकट, हर रिजर्वेशन को कम्प्यूटरों पर दर्ज होने दें। आने वाले दिनों में किसी एक राजनीतिक कार्यक्रम के लिए किसी शहर में पहुंचने वाले लोगों की लिस्ट रेलवे से पल भर में निकल आएगी, और सत्तारूढ़ पार्टी के कम्प्यूटर यह निकाल लेंगे कि ऐसे राजनीतिक कार्यक्रमों में पहुंचने वाले लोग पहले भी क्या ऐसे ही कार्यक्रमों में जाते रहे हैं, और फिर उनकी निगरानी, उनकी परेशानी एक बड़ी आसान बात होगी।

आज जो दुनिया के सबसे विकसित और संपन्न देश हैं, वहां भी नगद भुगतान उतना ही प्रचलन में है जितना कि क्रेडिट या डेबिट कार्ड से भुगतान करना। भुगतान के तरीके की आजादी एक बुनियादी अधिकार है, और भारत सरकार आज कैशलेस और डिजिटल के नारों के साथ जिस तरह इस अधिकार को खत्म करने पर आमादा है, उसके खतरों को समझना जरूरी है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी यह याद रखना चाहिए कि उनकी पार्टी के लोग भी आपातकाल में बड़ी संख्या में जेल भेजे गए थे। उस वक्त अगर संजय गांधी के हाथ यह जानकारी होती कि किन-किन लोगों ने क्या-क्या सामान खरीदे हैं, तो उस जानकारी का भी बेजा इस्तेमाल हुआ होता। ठीक उसी तरह जिस तरह जगजीवन राम के अधेड़ बेटे सुरेश राम की अपनी महिला मित्र के साथ अंतरंग तस्वीरों का उस वक़्त मेनका गाँधी ने किया था. आज भारत में निजी जिंदगी की प्राइवेसी या निजता पर चर्चा अधिक नहीं हो रही है, और यह अनदेखी अपने आपमें बहुत खतरनाक है। हिंदुस्तान के लोगों को अभी तक निजता के खत्म होने के खतरों का ठीक से एहसास नहीं है, लोग इसे गंभीरता से ले नहीं रहे हैं। जिस दिन कारोबार के मुकाबले में लोग कारोबारी राज खोने लगेंगे, जिस दिन चुराई गई जानकारी के आधार पर लोगों के परिवार खत्म करवा दिए जाएंगे, रिश्ते टूटने लगेंगे,, लोगों का एक दूसरे से अविश्वास होने लगेगा, उस दिन लोगों को समझ में आएगा कि निजता खत्म होने के खतरे क्या रहते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी रहेगी।
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