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गांधी ऑपरेशन थिएटर में !
15-Sep-2021 1:44 PM
गांधी ऑपरेशन थिएटर में !

तस्वीर- बिहार स्टेट आर्काइव से साभार

-पुष्य मित्र

यह बड़ा दुर्लभ चित्र है। इस चित्र में बाईं तरफ कोने में बापू बैठे हैं। मुंह पर मास्क लगाये। सामने कई डॉक्टर नजर आ रहे हैं। यह पटना के पीएमसीएच के ऑपरेशन थियेटर का दृश्य है। तारीख 15 मई 1947, रात के 8 से 9 बजे के बीच। गांधी की पोती मनु का अपेंडिक्स का ऑपरेशन चल रहा है।

 

यह चित्र इसलिये भी दुर्लभ है क्योंकि गांधी इलाज के लिये एलोपैथी पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते थे। वे अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से ही करते थे और दूसरों को भी इस बारे में सलाह देते थे। मगर जब मनु गांधी का दर्द बर्दास्त से बाहर हो गया तो उन्होंने एलोपैथी की सर्जरी के आगे आत्मसमर्पण कर दिया।

यह उस दौर की बात है जब बिहार के साम्प्रदायिक दंगों के बाद शांति मिशन के सिलसिले में गांधी पटना आये थे। वे लगभग दो महीने मार्च से मई तक यहां रहे। मनु गांधी नोआखली से ही उनकी सेवा के लिए उनके साथ रहती थी। आखिर तक रही। पटना में गांधी मैदान के पास डॉ सैयद महमूद के घर में उनका ठिकाना था। गांधी इस लम्बी अवधि के दौरान जहां ठहरे थे वह छोटा सा मकान आज भी एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के परिसर में है। मगर अब वहां लगभग कोई नहीं जाता। कोई आयोजन नहीं होता। एकाध बार इसकी मरम्मत जरूर हुई मगर अब भी उपेक्षित पड़ा है।

उसी मकान में रहते हुए मनु गांधी के एपेंडिक्स का दर्द शुरू हुआ था। पहले तो गांधी ने उनका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा के जानकारों से करवाया। उन लोगों ने साफ कह दिया कि यह अपेंडिक्स का दर्द नहीं है। मगर जब एलोपैथी चिकित्सकों ने एपेंडिसाइटिस की पुष्टि की तो वे मजबूरन तैयार हो गये। ऑपरेशन थियेटर में भी वे सिर्फ इसी वजह से थे, क्योंकि वे देखना चाहते थे कि कौन सही है।

ऑपरेशन पटना के डॉ. भार्गव ने किया। उनकी भतीजी भी पीएमसीएच में डॉक्टर थीं वे मनु गांधी का खास ख्याल रखती थीं। ऑपरेशन के बाद जब मनु को प्राइवेट रूम में ले जाया जाने लगा तो गांधीजी ने साफ मना कर दिया यह कहते हुए कि यह तो गरीब की बेटी है। मगर डॉक्टरों ने कहा कि इनकी जनरल वार्ड में रहने से काफी भीड़ होने लगेगी। तब बापू माने।

मनु अस्पताल में 5 से 6 दिन रहीं। गांधी लगभग रोज उन्हें देखने आते। उनके आने पर मरीज भी अपने बिस्तर से उठकर मनु के कमरे के पास पहुँच जाते। तब डॉक्टरों के कहने पर गांधी रोज खुद ही अस्पताल के वार्डों का चक्कर लगाने लगे। इसके बाद मरीजों की भीड़ कम हुई।
 

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