संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हाथों के काम के लिए दौड़ते पैरों की बात
22-Sep-2021 6:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  हाथों के काम के लिए दौड़ते पैरों की बात

इस मुद्दे पर लिखने को इसलिए सूझता है कि जब-जब सेना की भर्ती की तस्वीरें सामने आती हैं, खुले बदन दौड़ते हुए नौजवान, सीना नपवाते हुए नौजवान दिखते हैं और लगता है कि इनमें से पता नहीं कितने सेना तक पहुंच पाएंगे। उनका अपना भला तो इस नौकरी के मिलने से जितना भी हो, इस प्रदेश या इलाके का भला भी होता है क्योंकि ऐसे एक-एक सैनिक अपने आसपास के लोगों के लिए एक मिसाल भी बनते हैं और सेना को लेकर इलाके में जागरूकता भी आती है। हमारा मोटे तौर पर यह भी मानना रहता है कि सैनिक, बाकी लोगों के मुकाबले नियम-कायदों को कुछ अधिक मानने वाले भी रहते हैं और इनसे उनके आसपास की दुनिया में थोड़ा सा अनुशासन भी आता है। इस बात को गलत करार देने के लिए कुछ लोग सेना के भ्रष्टाचार को गिना सकते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार सभी जगह है और सेना में बाकी जगहों से अधिक है ऐसा हम नहीं मानते।

लेकिन आगे की बात सेना तक सीमित रखने का हमारा कोई इरादा नहीं है, हम छत्तीसगढ़ के बेरोजगार नौजवानों की बात करना चाहते हैं जो कि हर कुछ महीनों में सेना की भर्ती में दौड़ते दिखते हैं और दौड़ से परे भी उनके कई किस्म के इम्तिहान होते होंगे। यह हमारा एक पसंदीदा मुद्दा है कि किसी भी प्रदेश को अपनी युवा पीढ़ी को किस तरह नौकरी के लिए, आगे की पढ़ाई के मुकाबले के लिए, रोजगार की संभावनाओं के लिए और पेट की जरूरतों से परे भी समाज के बाकी मुकाबलों के लिए कैसे तैयार करना चाहिए। सेना भर्ती की तस्वीरें हमें इस मुद्दे पर कुछ हफ्तों के भीतर एक बार फिर लिखने की बात सुझा रही है। ऐसी दौड़ की तैयारी कितने नौजवान कर पाते होंगे? कितने नौजवान सामान्य ज्ञान, या अंग्रेजी, या कम्प्यूटर, इंटरनेट, व्यक्तित्व जैसी बातों को लेकर मुकाबले के लिए तैयार रहते होंगे? और फिर मुकाबलों से परे भी अपनी-अपनी जिंदगी में पिछले दिन के खुद के मुकाबले आज कितने लोग बेहतर होते होंगे? यह बात बार-बार कचोटती है। हमें लगता है कि जिस तरह छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कुदरत की दी हुई खदानों, जमीनों और यहां के जल-जंगल से कमाई करने की एक दौड़ लगी हुई है, उसी तरह की दौड़ इस प्रदेश के नौजवान इंसानों की ताकत और उनकी संभावनाओं को लेकर क्यों नहीं लगती? इस प्रदेश को प्रकृति ने जितना कुछ दिया है वह तो है ही, लेकिन धरती की संतानें अगर अपनी पूरी क्षमता से धरती की दी गई दौलत में कुछ जोड़ न सकें तो इसे कामयाबी कैसे कहेंगे?

छत्तीसगढ़ बहुत से मोर्चों पर तरक्की कर-करके देश भर में चर्चा में आया हुआ है। लेकिन हमें इस राज्य में ऐसी कोई बात भी सुनाई नहीं देती कि देश और दुनिया के अलग-अलग मुकाबलों के लिए यहां के लोगों को कैसे तैयार किया जाए और उसके लिए मुकाबले की नौबत आने के पहले, किसी मुकाबले को ध्यान में रखे बिना, लोगों में उत्कृष्टता को कैसे बढ़ाया जाए? हम पहले कई बार यहां पर सलाह दे चुके हैं कि राज्य में सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की इमारतों में सुबह-शाम या रात के खाली वक्त में उस इलाके के स्कूल-कॉलेज के बच्चों और बेरोजगार नौजवानों के लिए तरह-तरह का शिक्षण-प्रशिक्षण चलाना चाहिए और इसके लिए सरकार पहल करके, कुछ मदद करके बाकी का काम उस इलाके के लोगों के जनसहयोग से भी कर सकती है। छत्तीसगढ़ की मौजूदा संपन्नता से संतुष्ट होकर सरकार या जनता अगर मोटे तौर पर चुप बैठे रहेंगे, तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संभावनाओं के लिए निरंतर चलने वाले मुकाबलों में छत्तिसगढिय़ा सबसे बढिय़ा साबित नहीं हो पाएंगे। एक पहल बिना देर किए शुरू करने की जरूरत है और अंग्रेजी भाषा से लेकर बोलचाल के सलीके तक, सामान्य ज्ञान से लेकर कम्प्यूटर-इंटरनेट तक, इंटरव्यू का सामना करने से लेकर आवेदन लिखने तक, अनगिनत ऐसी बातें हैं जो छत्तीसगढ़ के दसियों लाख लोगों को सिखाने की जरूरत है। जब ज्ञान फैलता है तो वह इसे पाने वाले लोगों तक सीमित नहीं रहता, वह उनसे उनके इर्द-गिर्द के दूसरे लोगों तक भी पहुंचता है और पूरा का पूरा समाज धीरे-धीरे बेहतर होने लगता है, अधिक काबिल और अधिक कामयाब होने लगता है।

आज छत्तीसगढ़ में बहुत छोटी-छोटी सी, बहुत छोटी तनख्वाह वाली नौकरियों के लिए गलाकाट मुकाबला होता है। लेकिन राज्य के बाहर या देश के बाहर जाकर काम करने वाले लोगों को देखें तो इस राज्य से गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं। देश के केरल या पंजाब जैसे राज्यों को देखें तो वहां से बाहर जाकर काम करने वाले और अपने घर-शहर कमाई लाने वाले लोगों के मुकाबले छत्तीसगढ़ कहीं भी नहीं टिकता और जो लोग यहां से बाहर जाकर कमाते हैं वे लगभग सारे के सारे मजदूर दर्जे के लोग हैं। इसलिए सरकार और समाज दोनों को हमारी सलाह है कि इस तस्वीर को बदलने के लिए कोशिश करनी चाहिए, इसके बिना यह राज्य सिर्फ धरती के दिए हुए को ही खाते रह जाएगा।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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