संपादकीय
भारत की मोदी सरकार द्वारा पेगासस खुफिया हैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल देश के कुछ प्रमुख और प्रतिष्ठित नागरिकों, पत्रकारों, और नेताओं के खिलाफ किया गया है या नहीं, इसकी जांच अब शुरू होते दिख रही है। राहुल गांधी से लेकर कुछ दूसरे नेताओं तक, चुनाव आयोग के भूतपूर्व सदस्य अशोक लवासा, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के अलावा केंद्र सरकार की बहुत सी नीतियों से असहमत प्रमुख पत्रकारों के फोन पर पेगासस की घुसपैठ की खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया की एक जांच में सामने आई हैं। इस बारे में संसद के पिछले सत्र में भी दिल्ली में लगातार विपक्ष ने मांग की थी कि सरकार इस बात पर जवाब दें कि उसने पेगासस का इस्तेमाल किया है या नहीं, लेकिन सरकार ने इस बारे में कोई साफ जवाब नहीं दिया, और वह सीधे शब्दों में जवाब देने से कतराती रही। इसके बाद बहुत से प्रमुख पत्रकार और पत्रकारों के संगठन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जहां उन्होंने अदालत से यह मांग की कि ऐसी घुसपैठ भारत के कानून के भी खिलाफ है, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है, इसलिए इसकी जांच करवाई जाए। इस पर सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी साफ-साफ कुछ कहने से बचती रही, और कई बार टालने के बाद आखिर में जाकर उसने कहा कि क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला है इसलिए वह इस बारे में कोई हलफनामा भी दायर करना नहीं चाहती। हलफनामा अदालत में एक किस्म से पुख्ता बयान देने जैसा हो जाता और उससे बचकर केंद्र सरकार ने बिना कहे हुए ऐसा माहौल बना दिया है कि उसने यह इजराइली घुसपैठिया सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया है।
भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख वकील पी चिदंबरम ने सरकार के अदालत में दिए गए कुछ बयानों को लेकर उनका एक मतलब निकालकर सामने रखा है कि सरकार यह मान चुकी है कि उसने पेगासस का इस्तेमाल किया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले में पिटीशन दायर करने वाले वकीलों में से एक ने कहा है कि अदालत अगले हफ्ते इस मामले की जांच के लिए एक विशेषज्ञ तकनीकी कमेटी बना देगी। इस बारे में सरकार के खिलाफ वकील कहते आये थे कि केंद्र सरकार यह कह जरूर रही है कि वह इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाएगी लेकिन केंद्र सरकार की बनाई कमेटी पर किसी का भरोसा नहीं रहेगा। शायद इसलिए अदालत अब खुद यह कमेटी बनाने जा रही है।
दुनिया भर के प्रमुख प्रकाशनों और उनके पत्रकारों की एक मिली-जुली टीम ने पेगासस की घुसपैठ की जांच की, और उनकी जांच रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुस्तान में 300 से अधिक लोगों के नाम एक ऐसी संदिग्ध लिस्ट में मिले थे जिनके बारे में ऐसा अंदाज है कि उन्हें जांच के निशाने पर रखा गया, घुसपैठ के निशाने पर रखा गया था। इस बात का जिक्र जरूरी है कि एक फौजी हथियार माने जा रहे इस घुसपैठिया सॉफ्टवेयर को बनाने वाली इजराइली कंपनी ने बार-बार यह साफ कहा है कि वह इसे सिर्फ देशों की सरकारों और उनकी जांच एजेंसियों को बेचती है, वह भी इजराइल की सरकार से इजाजत मिलने के बाद। इस कंपनी ने बार-बार यह कहा है कि वह सरकारी एजेंसियों के अलावा किसी को यह सॉफ्टवेयर नहीं बेचती है और इसे बेचते हुए इन शर्तों पर दस्तखत करवाए जाते हैं कि इनका इस्तेमाल केवल आतंकवाद और गंभीर अपराधों की रोकथाम के लिए ही किया जाएगा। इस कंपनी के दावे चाहे जो भी हो, दुनिया भर में जगह-जगह जांच के नतीजे यह बताते हैं कि इस हैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों के खिलाफ, वकीलों के खिलाफ, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ, कहीं-कहीं किसी देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के खिलाफ भी किया गया है। खरीददार देशों की लिस्ट में भारत का नाम भी बताया जा रहा है, लेकिन न कंपनी ने इसकी पुष्टि की है, और न भारत सरकार।
इस मामले ने खासा वक्त ले लिया। एक तो संसद में सरकार जवाब देने से साफ-साफ कतराते रही, जबकि जब देश के लोगों के मौलिक अधिकारों को कुचलने का आरोप लग रहा था, जब विपक्ष के एक सबसे बड़े नेता राहुल गांधी के फोन में घुसपैठ करने का आरोप लग रहा था, और यह घुसपैठ सरकार के पास पहले से मौजूद टेलीफोन टैप और निगरानी करने के मौजूदा कानूनों से परे, गैरकानूनी तरीकों से करने का आरोप लग रहा था, तब तो सरकार को साफ होकर सामने आने की कोशिश करनी थी, अगर वह सचमुच साफ है तो। ऐसे में चिदंबरम का यह निष्कर्ष सही लगता है कि बार-बार सरकार इस बात का खंडन करने से बचती रही कि उसने इस हैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं, जिससे यही साबित होता है कि उसने इसका इस्तेमाल किया है। और जहां तक टेलीफोन को हैक करने की बात है तो देश का संचार निगरानी वाला कानून इसकी इजाजत नहीं देता है, और इसे एक जुर्म करार देता है। ऐसे में यह बात केंद्र सरकार के लिए एक परेशानी की हो सकती है, अगर यह साबित होता है कि उसने कानून के खिलाफ जाकर देश के गैरमुजरिम लोगों के खिलाफ ऐसी घुसपैठ की है, जो कि उनकी निजी जिंदगी में सबसे बड़ी घुसपैठ थी। इस पूरे सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के भी मुख्य न्यायाधीश रहे एक व्यक्ति का नाम आया था कि उसके फोन भी हैक किए गए थे, और उस पर जिस मातहत कर्मचारी ने सेक्स शोषण का आरोप लगाया था, उसके परिवार के कई फोन हैक किए गए थे। यह सारे आरोप बताते हैं कि सांसदों से लेकर जजों तक, और पत्रकारों से लेकर दूसरे संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों तक के फोन हैक करने का एक शक है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी हो सकता है कि इस मामले में किसी किनारे तक पहुंच सके।
आज सुप्रीम कोर्ट से जो खबर आई है, और यह मुख्य न्यायाधीश की जुबानी टिप्पणी से बनी हुई खबर है कि अदालत इस मामले में एक तकनीकी विशेषज्ञ कमेटी बना रही है। लेकिन यह कमेटी किस हद तक जांच करेगी, जांच करेगी या नहीं करेगी, और सरकार कहां पर राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर इस कमेटी से बचने की कोशिश कर सकेगी, ऐसी कई चीजें अभी साफ नहीं हैं। फिर भी सुप्रीम कोर्ट का रुख आज सकारात्मक है, और वह सरकार लुकाछिपी को और अधिक जारी नहीं रहने दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट से जनता के बुनियादी हक के लिए जैसी उम्मीद की जानी चाहिए थी, वह उसे पूरी कर रहा है। अगला हफ्ता बहुत दूर नहीं है, और इस कमेटी के बनने के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि कुछ महीनों के भीतर यह साफ हो जाएगा कि केंद्र सरकार ने अपने नागरिकों के खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल किया था या नहीं। वैसे अभी केंद्र सरकार के पास इस मामले को अदालत में और लंबा खींचने के कुछ तरीके शायद ढूंढे जा रहे होंगे और अदालत की बनाई हुई कमेटी को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा साबित करने की कोशिश भी हो सकता है कि की जाए। लेकिन जब संसद में सरकार किसी जवाबदेही से बचती है, जब सुप्रीम कोर्ट को भी जवाब देना नहीं चाहती है, तो फिर सुप्रीम कोर्ट की बनाई जांच कमेटी ही अकेला जरिया हो सकता था। यह कमेटी केंद्र सरकार की बनाई जा रही किसी जांच कमेटी के मुकाबले तो अधिक विश्वसनीय रहेगी ही।
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