संपादकीय
छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिले जशपुर में एक दिव्यांग छात्रावास और प्रशिक्षण केंद्र में तीन दिन पहले वहीं के दो कर्मचारियों ने शराब के नशे में एक मूक-बधिर बच्ची से बलात्कार किया और आधा दर्जन दूसरी लड़कियों के कपड़े फाड़े, उनका सेक्स शोषण किया, और बहुत से दूसरे बच्चों से मारपीट की। यह पूरा सिलसिला भयानक है। वहां की महिला सफाई कर्मचारी को कमरे में बंद करने के बाद इन दो पुरुष कर्मचारियों ने जिस तरह बच्चियों के कपड़े फाड़े, उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर मारा, उनका देह शोषण किया, और एक बच्ची से बलात्कार किया, उनकी आवाजें सुनते हुए यह सफाई कर्मचारी दरवाजा तोडऩे की कोशिश कर रही थी लेकिन उसे नहीं तोड़ पाई। मूक बधिर बच्चों की बिना शब्दों की चीख पुकार उस रात वहां गूंजती रही, और जब सफाई कर्मचारी ने इस प्रशिक्षण केंद्र के प्रभारी अफसर को फोन पर बताया तो उन्होंने वहां पहुंचकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। बाद में मीडिया के रास्ते यह मामला खुला और अब नाबालिग बच्ची से बलात्कार के अलावा, बाकी लड़कियों का सेक्स शोषण करने का मामला दर्ज हुआ है, और ये दोनों कर्मचारी गिरफ्तार हुए हैं, जिनमें से एक को इस प्रशिक्षण केंद्र, छात्रावास का केयरटेकर बनाया गया था। सरकार के नियम यह कहते हैं कि जहां लड़कियों को रखा जाता है वहां पर किसी पुरुष को केयरटेकर न रखा जाए, लेकिन नियमों से परे साधारण समझबूझ की भी इस बात को भी अनदेखा करते हुए ऐसी बेबस बच्चियों और उन्हीं के जैसे मूकबधिर लडक़ों के इस छात्रावास को चलाया जा रहा था। जानकार लोगों का कहना है कि यह बात भी नियमों के खिलाफ है कि लडक़े और लड़कियों को एक ही साथ रखा जाए।
जिन्हें ईश्वर या कुदरत ने बोलने और सुनने की ताकत नहीं दी है ऐसी बच्चियों के साथ सरकार भी क्यों मेहरबान रहे? इसलिए सरकार ने इन लडक़े-लड़कियों के लिए ऐसा भयानक इंतजाम करके रखा है। दिक्कत यह है कि इस प्रदेश में एक मानवाधिकार आयोग और एक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बैठे हुए हैं, और इस घटना के बाद इनमें से किसी ने कोई नोटिस जारी किया हो ऐसा सुनाई नहीं पड़ता है। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष पद पर राज्य सरकार ने एक ऐसी महिला को मनोनीत किया है जिसकी शैक्षणिक योग्यता, उम्र, और उसका तजुर्बा उस उस पद के लायक नहीं बताया जा रहा है, और इस नियुक्ति के खिलाफ हाईकोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई चल रही है, सरकार को नोटिस जारी हो चुका है। जब राजनीतिक संतुष्टि के लिए या मेहरबानी करने के लिए अपात्र लोगों को ऐसे नाजुक पदों पर बिठा दिया जाता है तो उसका यही नतीजा होता है। छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के लिए सरकार की वेबसाइट पर जो शर्ते रखी गई है, उनमें ग्रेजुएट होना जरूरी है, और यह शर्त रखी गई है कि आवेदक को बाल कल्याण, बाल सुरक्षा, किशोर न्याय, निशक्त बच्चों, बाल मनोविज्ञान, या समाजशास्त्र में कम से कम 5 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। यह भी शर्त रखी गई है कि आवेदक की आयु 65 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा भी कई शर्ते हैं। इस पद पर राज्य सरकार ने कुछ महीने पहले भूतपूर्व विधायक तेजकुंवर नेताम को नियुक्त किया है जिसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए वहां कहा गया है कि वह केवल आठवीं पास हैं और उनकी उम्र 65 वर्ष हो चुकी है। यह सरकार की तय की गई शर्तों के पूरी तरह खिलाफ है।
सरकार की राजनीतिक पसंद से होने वाली नियुक्तियों से लेकर सरकारी विभागों के आम कामकाज तक एक ही किस्म का संवेदनाशून्य माहौल रहता है। जिस छात्रावास में बच्चियों से बलात्कार और सेक्स शोषण कि यह भयानक हरकत हुई है, उसमें काम करने वाले कर्मचारियों को हाथ के इशारों से बात करने की भाषा का भी कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। खबर की जानकारी यह भी है एक पुरुष को वहां का अधीक्षक बना दिया गया था, जो खुद वहां कभी रहता नहीं है। जांच में और बातें भी सामने आएंगी लेकिन नीचे से ऊपर तक सरकार का जो हाल दिख रहा है वह सबसे कमजोर तबके की सबसे अधिक उपेक्षा का है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चाहिए कि आज ही वे अपने अफसरों को आदेश दें कि प्रदेश भर में जहां-जहां बच्चों के ऐसे छात्रावास हैं या दूसरे किस्म के आश्रम या प्रशिक्षण केंद्र हैं उन सबमें उनकी सुरक्षा के इंतजाम को तुरंत परखा जाए, और जहां कहीं नियमों के तहत काम नहीं हो रहा है वहां कड़ी कार्यवाही की जाए।
मूक-बधिर बच्चियों से सरकारी संस्थान में इस किस्म का सामूहिक बलात्कार को, और उस पर भी प्रदेश विचलित न हो, तो ऐसे प्रदेश को भी धिक्कार है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)