संपादकीय
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय में वहीं की एक महिला शिक्षिका ने छात्राओं के नहाते और कपड़े बदलते हुए वीडियो बना लिए और अब उन लड़कियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है क्योंकि वे इस बात से डरी-सहमी हैं कि कहीं वह टीचर यह वीडियो और फोटो वायरल ना कर दे। पुलिस उस महिला शिक्षिका को तलाश रही है जो कि फरार हो गई है। यह मामला छत्तीसगढ़ के जशपुर में विकलांग बच्चों के एक प्रशिक्षण केंद्र और छात्रावास में अभी कुछ दिन पहले हुए बलात्कार और सामूहिक सेक्स शोषण जितना गंभीर नहीं है, लेकिन अपने आप में गंभीर तो है ही। हिंदुस्तान में एक तो लोग लड़कियों को बाहर पढऩे भेजना नहीं चाहते, ऐसे में जब किसी हॉस्टल में लड़कियों को रखकर गरीब मां-बाप उनके बेहतर भविष्य की कोशिश करते हैं, तो जशपुर के प्रशिक्षण केंद्र में वही के केयरटेकर कर्मचारियों ने बलात्कार किया, और देशभर में जगह-जगह ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।
इस मामले से जुड़े हुए दो अलग-अलग पहलू हैं. एक तो यह कि बच्चों से जुड़ी हुई शिक्षण या प्रशिक्षण संस्थान या फिर उनके खेलकूद के संस्थान ऐसे रहते हैं जहां पर बच्चों से सेक्स की हसरत रखने वाले लोग नजर रखते हैं, और मौका मिलते ही वहां यह जुर्म करने में लग जाते हैं। फिर हिंदुस्तान में तो कानून भी लचर है और सरकारी इंतजाम उससे भी अधिक लचर है, लेकिन जिस अमेरिका में कानून मजबूत है, और सरकारी इंतजाम भी खासे मजबूत हैं, वहां भी अभी ओलंपिक में पहुंची हुई बहुत सी जिमनास्ट की शिकायतें जांच में सही पाई गईं कि उनके एक प्रशिक्षक ने अनगिनत लड़कियों का सेक्स शोषण किया। टोक्यो ओलंपिक में अमेरिकी जिमनास्ट टीम की जो सबसे होनहार खिलाड़ी थी उसने आखिरी वक्त में अपना नाम वापस ले लिया और कहा कि वह मानसिक रूप से इतनी फिट नहीं है कि वह मुकाबले में हिस्सा ले सके। बाद में यह जाहिर हुआ कि वह भी ऐसे शोषण की शिकार लड़कियों में से एक थी, और अमेरिका में ओलंपिक में पहुंचने वाली बच्चियां तक का शोषण करने वाला यह प्रशिक्षक लंबे समय तक किसी कार्रवाई से बचे रहा, शिकायतें अनसुनी होती रही, और जाने कितने दर्जन लड़कियों को इस यातना से गुजरना पड़ा जो कि जिंदगी भर उनका पीछा नहीं छोड़ेगी। हिंदुस्तान में पढ़ाई, खेलकूद, और सभी किस्म की दूसरी जगहों पर लड़कियों और महिलाओं के देह शोषण की कोशिश चलती ही रहती है, और इस देश का इंतजाम इतना घटिया है कि वह मुजरिम की शिनाख्त तो हो जाने पर भी उसे 10-20 बरस तक तो कानूनी लुकाछिपी का मौका देते रहता है। छत्तीसगढ़ में ही ऐसे बहुत से मामले हैं जिनमें सारे सबूतों के बावजूद 5 से 10 बरस तक ना तो पिछली रमन सरकार ने अपने अफसरों पर कार्यवाही की, और ना ही पिछले ढाई साल की भूपेश सरकार ने ऐसे मामलों को एक इंच भी आगे बढ़ाया। ऐसे में किसकी हिम्मत हो सकती है कि वे शिकायत लेकर जाएं और सारी कार्रवाई के बावजूद, सारे सबूतों के बावजूद, केवल अदालतों में वकील खड़े करते रहें, लड़ते रहें, और कोई इंसाफ ना पाएं।
दूसरी तरफ हिंदुस्तानी समाज के बारे में भी यह सोचने की जरूरत है कि संस्थागत शोषण से परे जब परिवारों के भीतर बच्चों का देह शोषण होता है तो ऐसे अधिकतर मामलों के पीछे परिवार के लोग, रिश्तेदार, या घर में आने-जाने वाले लोग, घरेलू कामगार ही रहते हैं। लेकिन जब बच्चे शिकायत करते हैं तो आमतौर पर मां-बाप ही अपने बच्चों की शिकायतों को अनसुना कर देते हैं, उस पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उससे परिवार या सामाजिक संबंधों का बना-बनाया ढांचा चौपट हो जाने का खतरा उन्हें अधिक गंभीर लगता है। जो अपने बच्चों की हिफाजत से अधिक महत्वपूर्ण अपने पारिवारिक और सामाजिक ढांचे को मानते हैं, ऐसे मां-बाप को क्या कहा जाए। लेकिन हिंदुस्तान में बच्चों के यौन शोषण में अधिकतर मामले इसी किस्म के हैं। बच्चे और बच्चियां न तो घर-परिवार में सुरक्षित हैं, और न ही किसी संस्थान में। ऐसी ही वजह रहती हैं जिनके चलते हुए गरीब मजदूरों के परिवार अपनी बच्चियों का बाल विवाह कर देते हैं कि किसी हादसे के पहले अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली जाए, और बच्ची के हाथ पीले कर दिए जाएं। उसके बाद उसकी हिफाजत उसके ससुराल की जिम्मेदारी रहेगी। जिन गरीब घरों में मां-बाप दोनों काम करने बाहर जाते हैं, वहां पर अक्सर ही बच्ची की शादी जल्दी कर दी जाती है। यह पूरे का पूरा सिलसिला हिंदुस्तान में लड़कियों पर जुल्म का है, और क्योंकि इस देश का कानून इस कदर कमजोर है कि वह कागज पर तो अपना बाहुबल दिखाता है लेकिन जब उसके इस्तेमाल की बात आती है तो अदालतों का पूरा ढांचा आखिरी दम तक मुजरिम का साथ देता है और शिकायत करने वाले लोग वहां अपराधी की तरह देखे जाते हैं। अभी जशपुर में जो हुआ है उसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के बाकी सभी छात्रावासों और रिहायशी संस्थानों में बच्चे-बच्चियों की हिफाजत की जांच करने के लिए कहा है, देखते हैं कि जिलों के बड़े-बड़े अफसर कितनी गंभीरता से ऐसी जांच करते हैं।
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