विचार / लेख

जब यशपाल बाबा सावरकर से मिले
15-Oct-2021 8:40 AM
जब  यशपाल  बाबा सावरकर से मिले

-अपूर्व गर्ग

'फ्रंट लाइन' पत्रिका  में ['The Tale of Veer Savarkar', Frontline, April 7, 1995.'] सावरकर का माफ़ीनामा प्रकाशित हुआ और इसके बाद सावरकर पर बहस मुबाहिसे में कई तथ्य एक के बाद एक सामने आते गए और सावरकर की सारी वीरता पर पानी फिर गया !

ज़ाहिर है ऐसे फ्रंट लाइन जैसे तथ्य और डिबेट 1970 से पहले सामने होते तो सावरकर पर 28 मई 1970 को बीस पैसे का डाक टिकट कांग्रेस सरकार ने जो जारी किया वो शायद ही करती  !!

     इस दौरान सोशल मीडिया में  सावरकर के एक -एक पहलू पर पक्ष और विपक्ष में लोगों ने ढेर तर्क -कुतर्क सामने रखे . 1995  से पहले अगर किसी को सावरकर के माफीनामे की जानकारी न थी तो अब सबके पास बाक़ायदा उसकी प्रतिलिपि तक है .

 सावरकर को जो हीरो मानते हैं वो सावरकर पार्ट -1 का  तो काफी ज़िक्र करते हैं पर सावरकर पार्ट -2 पर चुप्पी साध लेते हैं .
 बहरहाल सावरकर के दो राष्ट्र सिद्धांत , सावरकर को वीर बनाने की थ्योरी से लेकर सावरकर और उनके चेले गोडसे पर कई नए प्रसंग सामने आये .
सावरकर पर गांधीजी की हत्या का मुकदमा चला बाद में वो बरी हुए ...पर बाद में गठित  कपूर आयोग की रिपोर्ट में उन पर सीधे ऊँगली उठाई गयी थी. 

ये भी तथ्य सामने आया कि सावरकर की जीवनी के लेखक 'चित्रगुप्त' और कोई नहीं, सावरकर स्वयं थे...
सावरकर के हिन्दू राष्ट्र के विचारों के कारण हिंदूवादी संगठन के लिए  सावरकर  नायक हैं ,ये और बात है सावरकर के गाय पर विचार और स्वयं सेवकों पर उनकी टिप्पणी जो दर्ज़ है ,वो ये संगठन कभी हज़म न कर पाएंगे .

हिंदूवादी ब्रिगेड का कहना है सावरकर की सोच हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र की रही इसलिए उन पर हमले होते हैं . 

यहाँ इनसे एक सवाल हैं बहुत से क्रांतिकारियों की सोच धर्म आधारित रही उनकी वीरता पर तो किसी ने ऊँगली न उठाई .

चापेकर बंधुओं की सोच भी हिंदुत्व पर आधारित थी .वे हिन्दू धर्म  और गाय की रक्षा के लिए अंग्रेज़ों से लड़ रहे थे, तीनों भाई शहीद हुए .
चापेकर बधुओं की शहादत पर तो भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी और मार्क्सवादी लेखक शिव वर्मा ने लिखा हैं -"तमाम सीमाओं के बावजूद मुक़दमे के दौरान या बाद में, चापेकर भाइयों ने जिस वीरता, साहस और आत्मबलिदान  की भावना का परिचय दिया उसके महत्त्व को किसी भी तरह काम करके नहीं आँका जा सकता. सर ऊंचा किये हुए तीनों भाइयों ने फाँसी के फंदे को चूमा.''

सावरकर के माफीनामे, अंग्रेज़ों से मिलने वाली पेंशन, हिन्दू राष्ट्र ,गांधीहत्या काण्ड ही नहीं कई और तथ्य हैं जो चौकाते हैं . आने वाले दिनों में और भी तथ्य सामने आ सकते हैं .

भगत सिंह के क्रांतिकारी साथी और प्रसिद्ध लेखक यशपाल ने अपनी पुस्तक में बी. डी. सावरकर के बड़े भाई के बारे में जो लिखा हैं वो बहुत चौकाने वाला हैं .

यशपाल की पुस्तक ' सिंहावलोकन  ' 1952  में तीन खंडों में प्रकाशित हुई थी. इस पुस्तक के खंड -2 
में करीब सात पेज में उन्होंने उनके बड़े भाई बाबा सावरकर से मिलने का पूरा विवरण दिया हैं.
यशपाल बाबा सावरकर से अपने दल 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' [HSRA ]के लिए सहयोग  के उद्देश्य से उनसे अकोला में मिले .
इस मुलाकात में बाबा सावरकर ने यशपाल से अपना दृष्टिकोण सामने रखते हुए यशपाल से कहा --'' इस समय राष्ट्र के लिए सबसे घातक हैं जिन्ना के नेतृत्व में मुसलमानों की भारतीय राष्ट्रीयता का विरोध करना, राष्ट्र में दूसरा राष्ट्र बनाने की नीति. जिन्ना इस नीति के प्रतीक और प्रतिनिधि हैं. यदि आप लोग जिन्ना को समाप्त करने की ज़िम्मेदारी लें तो स्वतंत्रता प्राप्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा दूर करने का प्रयत्न होगा. इसके लिए हम 50000 / रुपये तक का प्रबंध करने की ज़िम्मेदारी ले सकते हैं .''[ सिंहावलोकन भाग -2 ,पृष्ठ -106  ]

यशपाल ने बाबा सावरकर को इंकार कर दिया, जबकि उस दौरान HSRA पैसे और हथियारों के लिए भटक रहा था ..
यशपाल ने इस पर आगे विस्तार से लिखा है. उन्होंने रेखांकित किया कि -'' मिस्टर जिन्ना के सम्बन्ध में बाबा का प्रस्ताव ऐसी मामूली बात नहीं थी ...वह सम्पूर्ण  राष्ट्र की राजनीति पर बहुत गहरा प्रभाव डालने वाली बात थी. उसका मतलब सैकड़ों-हज़ारों हिन्दू -मुसलमानों का पारस्परिक क़त्ल होता .''[सिंहावलोकन भाग -2 ,पृष्ठ -107 ]

आगे यशपाल ने लिखा है '' दिल्ली पहुँच कर मैंने भगवती भाई और आज़ाद को बाबा सावरकर से भेंट के लिए यात्रा का विवरण सुनाया. जिन्ना साहब के सम्बन्ध में बाबा का प्रस्ताव सुनकर आज़ाद झुंझला उठे -यह लोग क्या हमें पेशेवर हत्यारा समझते हैं ?'' [सिंहावलोकन भाग -2 ,पृष्ठ -110 ]

'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' ने अपने ऐसे ही महान क्रांतिकारी विचारों से आतंकवादी के आरोपों को चूर- चूर करते हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया के लोगों के दिलों में ख़ास जगह बनाते चले गए. इसलिए भगतसिंह-आज़ाद के सामने दक्षिणपंथी भी सर झुकाते हैं, भले ही इंकलाब ज़िंदाबाद उच्चारित न कर पाते हों !!

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