विचार / लेख

भारत तमाशबीन क्यों बना हुआ है?
16-Oct-2021 11:06 AM
भारत तमाशबीन क्यों बना हुआ है?

 बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर ने अलग-अलग मौकों पर अफगानिस्तान के बारे में जो भी कहा है, वह शतप्रतिशत सही है लेकिन आश्चर्य है कि भारत की तरफ से कोई ठोस पहले क्यों नहीं है? 20 प्रमुख देशों के जी-20 सम्मेलन में दिया गया मोदी का भाषण अफगानिस्तान की वर्तमान समस्याओं या संकट का जीवंत वर्णन करता है और उसके समाधान भी सुझाता है। जैसे सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का संदर्भ देते हुए मोदी ने मांग की कि काबुल में एक सर्वसमावेशी सरकार बने, वह नागरिकों के मानव अधिकारों की रक्षा करे, वह स्त्रियों का सम्मान करे और अफगान अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाकर अफगान जनता को अकाल से बचाए। उनका सबसे ज्यादा जोर इस बात पर था कि तालिबान सरकार आतंकवाद को बिल्कुल भी प्रश्रय न दे। वह किसी भी देश का मोहरा न बने और पड़ौसी देशों में आतंकवाद को फैलने से रोके। लगभग यही बात विदेश मंत्री जिस देश में भी जाते हैं, बार-बार दोहराते रहते हैं।

ये दोनों सज्जन सिर्फ इसी बात से संतुष्ट दिखाई पड़ रहे हैं कि अफगानिस्तान के बहाने वे हर जगह पाकिस्तान को आड़े हाथों ले रहे हैं। यहां मुख्य सवाल यह है कि हमें अफगान-संकट को हल करना है या पाकिस्तान को कूटनीतिक पटकनी मारनी है? हम खुश हैं कि इस वक्त हमने पाकिस्तान को घसीटकर हाशिए में डलवा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने अभी तक इमरान खान से हाय-हलो तक नहीं की है। हमारी यह समझ गलत है कि यह हमारी वजह से हो रहा है। यह इसलिए हो रहा है कि पाकिस्तान इस वक्त चीन की गोद में बैठा है और चीन व अमेरिका के बीच शीत-युद्ध चल रहा है। ज्यों ही चीन से अमेरिकी संबंध सहज हुए नहीं कि पाकिस्तान दुबारा अमेरिका का प्रेम-भाजन बन जाएगा।

पाकिस्तान की किस्मत में लिखा है कि वह सदैव किसी न किसी महाशक्ति का दुमछल्ला बनकर रहेगा। भारत न तो कभी किसी महाशक्ति का दुमछल्ला बना है और न ही उसे कभी बनना चाहिए लेकिन इधर उल्टा ही हो रहा है। अफगानिस्तान के मामले में ही नहीं, चौगुटे (क्वाड) के चंगुल में भी वह इस तरह फंसा हुआ है कि उसकी स्वतंत्र विदेश नीति कहीं छिपी-छिपी— सी नजऱ आने लगी है। बजाय इसके कि वह तालिबान से सीधी बात करता, जैसे कि अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय समुदाय कर रहे हैं, हमारे विदेश मंत्री अन्य छोटे-मोटे देशों के चक्कर लगा रहे हैं। जो महाशक्तियां तालिबान से सीधे बात कर रही हैं, उनके मुकाबले भारत अफगानिस्तान का सबसे निकट पड़ौसी है और उसने वहां 500 से भी ज्यादा निर्माण कार्य किए हैं। क्या यह कम शर्म की बात नहीं है कि अमेरिका के निमंत्रण पर हम पहले क़तर गए और रूस के निमंत्रण पर अब हम मास्को जाकर तालिबान से चलनेवाली बात में शामिल होंगे? ये अंतरराष्ट्रीय बैठकें नई दिल्ली में क्यों नहीं होतीं? क्या भारत फुटपाथ पर खड़ा-खड़ा तमाशबीन ही बना रहेगा?
(नया इंडिया की अनुमति से)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news