संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारत में धर्म की अराजकता का अंतहीन हिंसक मुकाबला जारी
17-Oct-2021 3:00 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारत में धर्म की अराजकता का अंतहीन हिंसक मुकाबला जारी

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की खबर है कि वहां ट्रैफिक जाम की वजह से एक एंबुलेंस उसमें फंसी रही उसमें एक गर्भवती महिला दर्द से छटपटाते रही। अस्पताल जाने का कोई रास्ता नहीं मिला, और एंबुलेंस में ही उस महिला और उसके गर्भस्थ बच्चे की मौत हो गई। यह बताया जा रहा है कि इस इलाके में अक्सर ऐसा ट्रैफिक जाम रहता है। दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के रायपुर का एक वीडियो किसी ने व्हाट्सएप पर भेजा था कि राजधानी में दुर्गा विसर्जन के जुलूस में किस तरह एक एंबुलेंस फंसी हुई थी, और वह अपना सायरन बजाते खड़ी थी किसी को उसे जगह देने की फुर्सत नहीं थी। छत्तीसगढ़ में ही जशपुर जिले में एक जगह दुर्गा विसर्जन के जुलूस पर गांजा तस्करों ने गाड़ी चढ़ा दी और एक मौत हुई, बहुत से जख्मी हुए। इसके बाद मानो यह काफी नहीं था, तो मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दुर्गा विसर्जन के जुलूस में किसी ने कार चढ़ा दी और कई लोग घायल हो गए। हालांकि जिस बात से हमने यह चर्चा शुरू की है सोनभद्र का वह ट्रैफिक जाम किसी धार्मिक वजह से नहीं था, लेकिन हिंदुस्तान में आमतौर पर ट्रैफिक जाम की एक बड़ी वजह धार्मिक आयोजन रहते हैं। तरह-तरह के जुलूस निकलते हैं, और सडक़ों पर बेकाबू धार्मिक कब्जा हो जाता है, जिसे रोकने की ताकत पुलिस में भी नहीं रहती। इसके अलावा भी दूसरे किस्म की दिक्कतें लोगों को होती हैं और लाउडस्पीकरों के शोरगुल से लोगों का जीना हराम होते रहता है, लेकिन हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश थानों में धूल खाते पड़े रहते हैं, जिलों के अफसरों के लिए जब तक कोई निजी अवमानना नोटिस अदालत से ना आ जाए तब तक उनकी सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि धार्मिक गुंडागर्दी कितनी बढ़ रही है। और यह बात महज किसी एक धर्म की नहीं है, तकरीबन सभी धर्मों का यही हाल है, और हिंदुस्तान में तो स्थानीय शासन या राज्य शासन की लापरवाही और ढीलेपन के चलते हुए सरकारी या सार्वजनिक जमीन पर अवैध कब्जे, हर किस्म के अवैध निर्माण, और नियमों के खिलाफ शोरगुल, नियमों के खिलाफ ट्रैफिक जाम, यह इतनी आम बात हो गई है कि एक धर्म की अराजकता को देखकर दूसरे धर्म के लोग हौसला पाते हैं, और जब तक वह भी इससे अधिक ऊंचे दर्जे की अराजकता खड़ी ना कर दें वे मानो हीनभावना के शिकार रहते हैं।

यह सिलसिला बढ़ते ही चल रहा है, या कम होते नहीं दिखता। किसी भी धर्म स्थल को सडक़ तक कब्जा करते देखा जा सकता है, और वहां आने वाले लोगों के लिए कोई जगह न छोडक़र सब कुछ सडक़ों पर किया जाता है। धर्म स्थलों के अवैध कब्जे और अवैध निर्माण पूरी-पूरी रात जागकर होते हैं, और ऐसी साजिश के साथ होते हैं कि जिन दिनों पर अदालतें बंद हैं, सरकारी दफ्तर बंद है, उन्हीं दिनों पर इन्हें किया जाए ताकि कोई रोकने वाले लोग न रहे। सरकारें चलाने वाले राजनीतिक दल वोटरों के किसी भी तबके को नाराज करने से इस कदर डरे-सहमे रहते हैं कि धर्म या जाति के आधार पर बने हुए संगठनों की किसी भी किस्म की अराजकता पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। नतीजा यह होता है कि धर्म से जुड़े हुए लोग अब तक की जा चुकी अराजकता से आगे बढक़र और अधिक अराजकता की तरफ आगे बढ़ते रहते हैं। हिंदुस्तान की अदालतों के, और खासी बड़ी-बड़ी अदालतों के बड़े-बड़े जज जिस तरह से खुलेआम अपनी धार्मिक आस्था का प्रदर्शन करते हैं, उसके चलते भी लोगों को यह लगता है कि वे भी अपनी धार्मिक आस्था के प्रदर्शन को किसी भी दूसरे धर्म के मुकाबले अधिक बढ़-चढक़र दिखा सकते हैं, और इसके लिए जब तक सडक़ें बंद ना हो जाएं, जब तक शोरगुल से लोगों के कान न फट जाएं, तब तक धर्मांध लोगों को चैन नहीं पड़ता।

अब सवाल यह उठता है कि जब धर्मों के बीच आपसी मुकाबला बढ़ रहा है और यह मुकाबला किसी रहमदिली के लिए नहीं, अराजकता के लिए बढ़ रहा है, गलत कामों के लिए बढ़ रहा है, सडक़ों पर लोगों का जीना हराम करने के लिए बढ़ रहा है, उस वक्त जो लोग अमन-चैन से जीना चाहते हैं, जो लोग धर्म को निजी आस्था का बनाए रखना चाहते हैं, वे लोग क्या करें ? क्या उनको बचाने के लिए कोई है? कोई अदालत, कोई कानून, कोई सरकार कोई है? अभी तक का हमारा जो देखा हुआ है वह यही कहता है कि धर्म की अराजकता को कोई रोकना नहीं चाहते हैं, बल्कि लोग उसे बढ़ाते चले जाना चाहते हैं। राजनीति में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने से लोगों को वोटों की शक्ल में फायदा होता है क्योंकि नफरत और हिंसा लोगों को आपस में तुरंत बांध लेते हैं, तुरंत जोड़ लेते हैं, और राजनीति ऐसा ही फेविकोल के समान मजबूत जोड़ चाहती है ताकि वोटरों को आपस में बांधा जा सके, उन्हें दूसरे धर्म का नाम लेकर डराया जा सके, अपने धर्म की रक्षा की जरूरत बताई जा सके, और यह साबित किया जा सके कि जिस नेता के नाम पर उनसे वोट मांगा जा रहा है वही एक नेता उनके धर्म को बचा सकता है। यह सिलसिला इस देश में बढ़ते चल रहा है और हर चुनाव धर्मांधता को सांप्रदायिकता को कट्टरता को कुछ और आगे तक बढ़ा देता है। ऐसे में सडक़ों पर बेकसूर लोग तकलीफ पाते रहेंगे, और पुलिस इस पूरी अराजकता को अनदेखा करने के लिए बेबस रहेगी क्योंकि उसे वैसा ही कहा गया है।
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