विचार / लेख
-कनुप्रिया
आज फेसबुक पर शाहरुख खान छाए हुए हैं, मैं शाहरुख की कभी बड़ी फैन नहीं रही, कुछ फिल्मों में अच्छे लगे हैं, मगर ये समझ नहीं आ रहा कि आर्यन खान के मामले में उन्हें क्यों घसीटा जा रहा है। सिर्फ शाहरूख को ही नहीं उनके पिता की जन्म कुंडली भी खोली जा रही है। अगर शाहरुख के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे तब भी आर्यन खान के मामले में उससे कुछ सिद्ध नहीं होता, और अगर आर्यन खान दोषी हैं तब भी शाहरुख दोषी नहीं होते। क्या सलमान खुान के मामले में भी जो साफ़ दोषी होने पर भी सत्ता की साँठ गाँठ से निर्दोष सिद्ध हो गए थे, सलीम खान को घसीटा गया था? तब शाहरुख दोषी की तरह क्यों ट्रीट किए जा रहे हैं। क्या शाहरुख़ द्वारा आर्यन ख़ान पर हो रही कार्यवाही को रोकने या प्रभावित करने का कोई मामला सामने आया है? संतान की गलती की सजा शाहरुख या गौरी यूँ भी भुगत ही रहे हैं, मगर क्या इसमें शाहरुख खान को अपने बारे में कोई सफाई देने की जरूरत है?
बाकी मीडिया किस तरह व्यवहार करता है, सरकारें कैसी द्वेषपूर्ण कार्यवाही कर रही हैं और बहुसंख्यक तबका इस सरकार और मीडिया के चलते किस तरह सोचने और प्रतक्रिया देने लगा है उस बारे में तो कोई सन्देह ही नहीं है।
संविधान के मूल्यों के हिसाब से तो बिगाड़ की पावर होने पर भी जो सरकार न्यायपूर्ण बनी रहती है वही चुनी चाहिए मगर वर्तमान सरकार तो संविधान को पूज भले ले, उसकी लगभग सारी कसौटियों पर फेल है। इसलिये फिलहाल बेगुनाह होने और देशभक्त होने का आपकी कारगुजारियों से कोई लेना देना नहीं है, सही क्या है गलत क्या, आपकी गलती कितनी बड़ी है, और उसके मुकाबले सजा कैसी है, ये सब कुछ संविधान नहीं, धर्म, जाति, जेंडर और सत्ता तय कर रहे हैं।
वरना सावरकर वीर और गोडसे देशभक्त सिद्ध न हो रहे होते, दिल्ली दंगों के असली दोषी बाहर और बेगुनाह जेल में न होते। आतंकवादियों को शरण देने वाला देवेंद्र सिंह बरी न हुआ होता, और ट्विटर पर टूल किट लिखने भर से मुकदमे न हो रहे होते। सचिन तेंदुलकर अब भी म्यूच्यूअल फंड का विज्ञापन न कर रहे होते, पनामा और पेंडोरा फाइल्स से न आय पर फर्क पड़ रहा है न देशभक्ति पर। 3000 किलो की अफीम के अडानी बंदरगाह पर उतरने के बावजूद अडानी वैसे ही मासूम हैं जैसे इस देश मे सब कुछ गलत होने पर भी प्रधान सेवक जी बेदाग और मासूम बने रहते हैं।
मगर आर्यन खान के जरा से नशे के पीछे शाहरुख खान को अपना और पुरखों का हिसाब देने की जरूरत है और ऐसा हिसाब माँगने वालों के पास झाँकने के लिए गिरेबाँ भी नहीं है।