सामान्य ज्ञान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंध्रप्रदेश की नई राजधानी के रूप में अमरावती में 22 अक्टूबर 2015 को शिलान्यास किया। तेलंगाना से अलग होने के बाद अब अमरावती आंध्रप्रदेश की नई राजधानी बनी है। कृष्णा नदी के किनारे गुंटूर और विजयवाड़ा के बीच आंध्र की नई राजधानी अमरावती बनेगी। राजधानी बनने के साथ ही अमरावती देश की पहली स्मार्ट राजधानी भी बनेगी। कृष्णा नदी के किनारे बसा यह शहर केंद्र सरकार की हैरिटेज सिटी योजना के लिए भी चुना गया है साथ ही इसे बड़ा पर्यटन केंद्र बनाने की भी तैयारी है।
जून 2014 में आंध्रप्रदेश से तेलंगाना अलग राज्य बना। इसके बाद से हैदराबाद दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी थी। अब अमरावती को आंध्रप्रदेश नई राजधानी हेतु घोषणा हुई है। एन. चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने अमरावती को राजधानी बनाने के लिए 32 हजार एकड़ जमीन ली है। सरकार के पास अब 50 हजार एकड़ जमीन है।
कृष्णा नदी के किनारे विजयवाड़ा-गुंटुर रीजन में नई राजधानी के लिए किसानों की जमीन ली गई है। यहां के किसान साल में तीन फसल लेते हंै। उनकी इतनी बड़ी जमीन लिए जाने की भी आलोचना हो रही है। अमरावती किसी राज्य की यह पहली ऐसी राजधानी होगी जिसे इस तरह जमीन जुटा कर बनाया जा रहा है। इसे लैंड-पूलिंग कॉन्सेप्ट कहा जाता है। यह ऐसा पहला शहर होगा जहां पोस्ट डेवलपमेंट में मालिकों को शेयर मिलेगा। नए डिजाइन के तहत इस शहर को ईस्ट कोस्ट पर इसे गेटवे ऑफ इंडिया के रूप में स्थापित किया जाएगा।
अमरावती आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर जि़ले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित यह नगर सातवाहन राजाओं के शासनकाल में हिन्दू संस्कृति का केन्द्र था। इसका प्राचीन नाम धान्यघट या धान्यकटक अथवा धरणिकोट है। कृष्णा नदी के तट पर बसे होने से इस स्थान का बड़ा महत्व था। क्योंकि समुद्र से कृष्णा नदी से होकर व्यापारिक जहाज़ यहां पहुंचते थे। यहां से भारी मात्रा में आहत सिक्के (पंच मार्क्ड) जो सबसे पुराने हैं, मिले हैं।
धम्मपद अ_कथा में उल्लेख है कि बुद्ध अपने किसी पूर्व जन्म में सुमेध नामक एक ब्राह्मण कुमार के रूप में इस नगर में पैदा हुए थे। अशोक की मृत्यु के बाद से तकऱीबन चार शताब्दियों तक दक्षिण भारत में सातवाहनों का शासन रहा। आंध्रवंशीय सातवाहन नरेश शातकर्णी ने लगभग 180 ई.पू. अमरावती को अपनी राजधानी बनाया। सातवाहन नरेश ब्राह्मण होते हुए भी महायान मत के पोषक थे। और उन्हीं के शासनकाल में अमरावती का प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप बना, जो तेरहवीं शताब्दी तक बौद्ध यात्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहा। मूल स्तूप घण्टाकार था। स्तूप की ऊंचाई सौ फुट थी। आधार से शिखर तक तक्षित शिला-पट्ट लगाये गये थे। इस प्रकार का अलंकरण अन्यत्र नहीं मिलता। चीनी यात्री युवानच्वांग ने उस स्थान के बारे लिखा था कि बैक्ट्रिया के समस्त भवनों की शान-शौक़त इसमें निहित थी। बुद्ध के जीवन की कथाओं के दृश्य उन पर उत्कीर्ण थे।
अमरावती स्तूप लगभग द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में कर्नल कालिन मैकेंजी ने ही सर्वप्रथम इस स्तूप का पता लगाया था। अमरावती स्तूप घंटाकृति में बना है। इस स्तूप में पाषाण के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग किया गया है। आन्ध्र वंश के पश्चात् अमरावती पर कई शताब्दियों तक इक्ष्वाकु राजाओं का शासन रहा। उन्होंने उस नगरी को छोडक़र नागार्जुनकोंडा या विजयपुर को अपनी राजधानी बनाया।