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LALU PRASAD YADAV
-नीरज सहाय
बिहार विधानसभा की दो सीटें तारापुर और कुशेश्वर स्थान पर 30 अक्टूबर को होनेवाले उपचुनाव में किसी दल के जीतने या हारने से राज्य में सत्ता बदलती नहीं दिख रही है, लेकिन आरजेडी और जेडीयू जो आक्रामकता दिखा रहे हैं, उसमें लगभग तीन साल बाद पटना पहुंचे लालू प्रसाद यादव के प्रवेश से राजनीति तेज़ हो गयी है. सत्ता भले न बदले, लेकिन यह उपचुनाव सत्ता की छवि को आँकने वाला ज़रूर हो सकता है.
बिहार विधानसभा की 243 सदस्यों वाले सदन में चार दलों के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की नीतीश सरकार मामूली बहुमत से चल रही है, इसलिए मुख्य विरोधी पार्टी आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव के "खेला करने" के दावे के बावजूद यह उपचुनाव राजनीतिक महत्व बढ़ाने वाले जैसा ही है.
दूसरी तरफ विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की ओर से किये गए विकास कार्यों के दावों के बीच यह उपचुनाव जेडीयू की साख और सरकार बचाने जैसा है.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद बिहार में यह उपचुनाव यह भी तय करेगा कि कोरोना और बाढ़ प्रबंधन को लेकर नीतीश सरकार से लोग संतुष्ट हैं या नहीं. चूँकि ये सीटें जेडीयू विधायकों के निधन की वजह से खाली हुई हैं इसलिए बीजेपी चुनावी मैदान में नहीं है.
आरजेडी-कांग्रेस में बढ़ी दूरियां
उधर महागठबंधन के दोनों बड़े दल आरजेडी और कांग्रेस दोनों सीटों पर एक-दूसरे को हराने के लिए वोट मांग रहे हैं. एक-दूसरे पर बयानबाजी कर रहे हैं. कन्हैया कुमार आरजेडी पर हमलावर हैं तो लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास का मज़ाक उड़ाते हुए उन्हें 'भकचोन्नहर दास' कह रहे हैं.
दोनों में मची मारामारी पर पूर्व उपमुख्यमंत्री और सांसद सुशील कुमार मोदी ने कटाक्ष किया और कहा कि "कांग्रेस को कितनी भी गालियाँ दी जाएँ, वह अपना अस्तित्व बचाने के लिए अपमान का घूंट पीकर भी आरजेडी का साथ नहीं छोड़ेगी."
तारापुर से जेडीयू विधायक और पूर्व मंत्री मेवालाल चौधरी की मृत्यु कोरोना संक्रमण से हुई थी तो कुशेश्वर स्थान की सीट वहां के जेडीयू विधायक शशि भूषण हजारी की मौत से खाली हुई.
यादव और कुशवाहा बहुल तारापुर सीट
जमुई संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाली तारापुर विधानसभा सीट नीतीश कुमार की अति- पिछड़ावाद की रणनीति की हार-जीत से जुड़ी हुई है. पिछले चार विधानसभा चुनावों में यहाँ से कुशवाहा समाज के प्रत्याशी ही चुनाव जीत रहे हैं और पिछले तीन चुनावों में इस सीट पर एक ही परिवार का कब्ज़ा रहा है.
यादव और कुशवाहा बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में वैश्य मतदाताओं का भी खासा प्रभाव है. इसके साथ ही अल्पसंख्यक और सवर्ण जाति की भी इलाके में ठीक-ठाक तादाद है. पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के प्रत्याशी मेवालाल चौधरी ने आरजेडी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव की बेटी दिव्या प्रकाश को लगभग सात हज़ार मतों से पराजित किया था.
इलाकाई हसरतों की नुमाइंदगी करने के लिए यहाँ से जेडीयू ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी कुशवाहा जाति से आने वाले राजीव कुमार सिंह पर अपना दांव लगाया है.
इलाके में दबंग माने जाने वाले राजीव कुमार सिंह स्नातक हैं और तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. इनका संबंध लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ रहा है इसलिए इलाके में लोग इन्हें राजनीतिक पर्यटक भी कहते हैं.
वहीं आरजेडी ने पहली बार यादव या कुशवाहा समाज से हटकर वैश्य कार्ड खेला है. यहाँ से आरजेडी ने करीब 50 साल के प्रत्याशी अरुण साव को मैदान में उतारा है. एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर चुके अरुण साव व्यवसायी हैं और एक बार आरजेडी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं.
इसके अलावा कांग्रेस ने पिछली बार बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे राजेश मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया है तो लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की ओर से चंदन कुमार चुनावी मैदान में हैं.
जेडीयू के तारापुर प्रखंड अध्यक्ष जय कृष्ण सिंह अपने प्रत्याशी की जीत को लेकर आश्वस्त हैं. उनके अनुसार, "हमारे प्रत्याशी पुराने सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं. वे समता पार्टी के समय से ही हमसे जुड़े रहे हैं. क्षेत्र की जनता को उन पर पूरा भरोसा है."
वहीं आरजेडी के तारापुर प्रखंड अध्यक्ष मोहम्मद रफ़ीउज़्ज़मा भी जीत का दावा करते हैं और सवाल करते हैं कि "जो पार्टी कोरोना महामारी में अपने विधायक को नहीं बचा सकी वह आम जनता के लिए क्या काम करेगी? पहले हमारे नेता वैश्य समाज के पास वोट मांगने जाते थे और इस बार हम लोगों ने उसी समाज का प्रत्याशी खड़ा कर उनको सम्मानित किया है. चुपचाप लालटेन छाप के नारे के साथ हमारी जीत तय है."
तारापुर विधानसभा क्षेत्र में जेडीयू और आरजेडी के कांटे की टक्कर के बीच स्थानीय पत्रकार राणा गौरी शंकर कहते हैं कि "वैश्य और राजपूत निर्णायक मतदाता हो सकते हैं. कांग्रेस और एलजेपी (रामविलास) के प्रत्याशी जेडीयू के वोट बैंक को कितना प्रभावित करते हैं ये चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा, लेकिन सेंधमारी होनी तय है. आरजेडी ने वैश्य उम्मीदवार देकर मतदाताओं को चौंकाया है. जेडीयू चूँकि सत्ताधारी दल है तो इसका फायदा उसे मिल सकता है. कुल मिलाकर यहाँ की चुनावी लड़ाई काफी रोचक होने जा रही है."
कुशेश्वर स्थान का राजनीतिक गणित
वहीं 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आये दलितों के लिए आरक्षित कुशेश्वर स्थान विधानसभा सीट पर जेडीयू की जय-पराजय की लड़ाई है. इलाके में यादव, पासवान, ऋषिदेव, अल्पसंख्यक आदि मुख्य जातियां हैं.
वर्ष 2010 से यहाँ के विधायक शशि भूषण हज़ारी रहे हैं. पिछले चुनाव में इन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी अशोक राम को छह हज़ार मतों से पराजित किया था. समस्तीपुर लोकसभा में पड़ने वाला कुशेश्वर स्थान दिवंगत लोजपा नेता रामविलास पासवान का ननिहाल रहा है जहाँ उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हुई थी.
समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद प्रिंस राज हैं जो रामविलास पासवान के भतीजे हैं तो कुशेश्वर स्थान के विधायक रहे शशि भूषण हज़ारी भी उनके रिश्तेदार हैं. जेडीयू ने शशि भूषण हज़ारी के 27 वर्षीय बेटे अमन भूषण हज़ारी को मैदान में उतारा है.
दसवीं पास अमन भूषण हज़ारी ने एक बार पंचायत समिति का चुनाव लड़ा था जिसमें वो जीत नहीं सके. लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने अपनी भाभी अंजू देवी को प्रत्याशी बनाया है जो दिवंगत रामविलास पासवान के मामा और पूर्व विधायक जगदीश पासवान की बहू हैं.
आरजेडी ने इस विधानसभा क्षेत्र से पहली बार अपना उम्मीदवार लगभग 45 वर्ष के गणेश भारती को बनाया है. दसवीं तक की पढ़ाई पूरी करने वाले गणेश भारती ऋषिदेव (मुसहर) जाति से आते हैं जो पूर्व में पंचायत समिति के सदस्य और मुखिया रह चुके हैं. वहीं कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता अशोक राम के बेटे अतिरेक कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है.
रामविलास पासवान के प्रभाव वाले इस दलित बहुल विधानसभा क्षेत्र में जेडीयू और आरजेडी दोनों के अपने-अपने दावों के बीच आरजेडी बिरौल प्रखंड के अध्यक्ष कैलाश कुमार का कहना है कि "सत्ताधारी दल के नेता मतदाताओं को प्रलोभन दे रहे हैं. हमें लालू जी का आशीर्वाद प्राप्त है. पहली बार हम यहाँ चुनाव लड़ रहे हैं और जीत रहे हैं. अबकी बार यहाँ की जनता सत्तापक्ष के झांसे में नहीं आने वाली."
वहीं जेडीयू कुशेश्वर स्थान प्रखंड के अध्यक्ष राज कुमार राय का मानना है कि उनके प्रत्याशी को सहानुभूति का लाभ मिलेगा. साथ ही विकास कार्यों और नीतीश कुमार की छवि का भी उनको फायदा होगा और वो जीत रहे हैं.
जातीय समीकरण तय करते हैं हार-जीत
इन दावों-प्रतिदावों के बीच स्थानीय पत्रकार विजय कुमार श्रीवास्तव का मानना है कि इस क्षेत्र में विकास और लच्छेदार भाषण काम नहीं आते. यहाँ जातीय समीकरण ही सब कुछ तय करेगा.
वह कहते हैं कि "जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) के प्रत्याशी एक ही जाति से आते हैं और दोनों ही रिश्तेदार हैं. सहानुभूति का लाभ दोनों को मिल सकता है, लेकिन इसका किसको कितना फायदा मिलेगा यह देखना होगा. कांग्रेस आरजेडी का बहुत ज़्यादा नुकसान नहीं कर पाएगी. जेडीयू सत्ताधारी दल है यह उसके लिए सकारात्मक है."
बिहार विधानसभा में आरजेडी, कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) के 75, 19 और 12 विधायक हैं. वहीं भाजपा के 74, जेडीयू के 43, हम और वीआईपी के चार-चार विधायक हैं, सीपीआई और सीपीएम के दो-दो, एआईएमआईएम के पांच और एक निर्दलीय विधायक हैं.
एनडीए गठबंधन को एक निर्दलीय विधायक का समर्थन प्राप्त है और उसके कुल विधायकों की संख्या 126 है जबकि महागठबंधन में फिलहाल 91 विधायक हैं. शेष कांग्रेस और एआईएमआईएम के कुल 24 विधायक हैं. दो सीटें रिक्त हैं जिन पर उपचुनाव हो रहा है.
जेडीयू से केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा दोनों विधानसभाओं में दौरा कर चुके हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनावी सभा सोमवार से शुरू हो गयी है.
वहीं जेडीयू के समर्थन में केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस और भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद आदि चुनावी दौरा कर रहे हैं. तो चिराग पासवान भी अपने प्रत्याशियों के पक्ष में समर्थन जुटाने में लगे हैं. कांग्रेस की ओर से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भी मंगलवार को दोनों विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगी.
लगभग तीन साल बाद लालू प्रसाद यादव चुनाव प्रचार कर रहे हैं. यह उपचुनाव तय करेगा कि लालू प्रसाद का करिश्मा मतदाताओं के बीच अब भी कायम है या नहीं, तेजस्वी की युवा नेतृत्व से मतदाता आकर्षित होते हैं या नीतीश कुमार पर अपना भरोसा बनाए रखते हैं.
इन तमाम अटकलों के बीच वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय का मानना है कि वर्तमान सरकार बहुत ही मामूली बहुमत वाली सरकार है इसलिए यह उपचुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया है, वहीं महागठबंधन में भी दरार पड़ गयी है.
वह कहते हैं कि "सत्तापक्ष अगर दोनों सीट हार भी जाती है तो सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन बहुमत के अंतर को बड़ा रखने के लिए इन दोनों सीटों का बहुत महत्व है. मात्र छह विधायकों के अंतर से यह सरकार चल रही है. वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह उपचुनाव मतदाताओं के बीच अपने प्रभाव को दिखाने वाला और सत्तारूढ़ गठबंधन पर और हमलावर होने के मौके जैसा है."
वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी का कहना है कि 'दो सीटें हारने या जितने से किसी दल या सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन इस उपचुनाव से जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस की प्रतिष्ठा जुड़ गयी है. उपचुनाव कितना महत्वपूर्ण है इस बात से समझा जा सकता है कि लालू प्रसाद को भी चुनाव के लिए आना पड़ा है. आरजेडी और कांग्रेस ने अलग होना उचित समझा, लेकिन अपनी दावेदारी नहीं छोड़ी. बहुकोणीय होते हुए भी यह उपचुनाव अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है.' (bbc.com)