संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकारी दफ्तरों को कागजों में फंसाकर जनता की जिंदगी बर्बाद करना बंद करना चाहिए
30-Oct-2021 4:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सरकारी दफ्तरों को कागजों में  फंसाकर जनता की जिंदगी  बर्बाद करना बंद करना चाहिए

केंद्र सरकार के बारे में एक खबर यह आई है कि वह लालफीताशाही और नौकरशाही को घटाने के लिए केंद्र के सचिवालय और मंत्रालय में कोई ऐसी प्रक्रिया लागू कर रही है, जिससे एक फाइल चार अफसरों से अधिक के हाथों तक ना जाए। आज देशभर में अलग-अलग सरकारों में, अलग-अलग सरकारी दफ्तरों में हालत यह रहती है कि एक-एक फाइल बहुत से कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच घूमते रहती है, और जिनका सरकार से वास्ता पड़ता है वे हिंदी के एक बड़े तकलीफदेह सीरियल, ऑफिस-ऑफिस की तरह तकलीफ पाते रहते हैं। अभी इस खबर से हमें केंद्र सरकार के कामकाज में क्या फर्क पड़ेगा यह तो समझ नहीं आ रहा, लेकिन सरकारी दफ्तरों से जिनका वास्ता पड़ता है वे जानते हैं कि वहां बैठे हुए लोगों की दिलचस्पी कागजों को अधिक से अधिक लटकाने और घुमाने में रहती है ताकि थके-हारे लोग खुद होकर रिश्वत की बात करें ताकि काम जल्दी निपट जाए। पर जब लोग इस इशारे को भी नहीं समझते हैं, तो सरकारी अमला खुलकर उन्हें बतलाता है कि इस कागज पर जब तक कुछ नहीं रखोगे, वह उड़ जाएगा, इसलिए कागज पर कुछ रखो। और इस वसूली के चक्कर में सरकारी अमला इतने गैरजरूरी कागजों को मांगता है कि जिन्हें जुटाने में लोग थक जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने रिटायर हुए मुख्य सचिव अरुण कुमार के पीछे लग जाने पर मजबूरी में उन्हें एक काम दिया था, और अपनी पूरी नौकरी काम न करने के लिए जाने जाने वाले अरुण कुमार को उन्होंने प्रशासनिक सुधार कमेटी का चेयरमैन बना दिया था, ताकि 1 बरस उनकी सहूलियतें जारी रहें। आसपास में काम करने वाले लोगों का अरुण कुमार का तजुर्बा यह था कि उनके चेंबर में फाइलें जाती थीं। लेकिन वहां से वापस नहीं आती थीं। ऐसे व्यक्ति को प्रशासनिक सुधार का जिम्मा देकर सरकार ने उससे साल भर के लिए पीछा तो छुड़ा लिया था, लेकिन उससे न कुछ और होना था, और न हुआ। पूरे देश की सरकारों को और दूसरे सरकारी संगठनों, संस्थाओं के दफ्तरों को अपने कामकाज को घटाने की जरूरत है, लेकिन सवाल यह है कि रिश्वत की संभावनाओं को घटाने की यह सलाह दे कौन, और उसे माने कौन?

दुनिया के विकसित और परिपक्व लोकतंत्रों में सरकारों के कागजात देखें, तो उन में लिखा रहता है कि किसी फार्म को भरने में अमूमन कितना वक्त लगेगा। हिंदुस्तान से अमेरिका जाने वाले लोग जब वीजा फार्म भरते हैं, तो उसमें वहां की सरकार ने कोशिश करके कम से कम जानकारी मांगने का काम किया है। ऐसा सभ्य लोकतंत्रों में सभी सरकारी कागजात में होता है। हिंदुस्तान में इसके ठीक उल्टे लोगों को हर सरकारी अर्जी के साथ इतने किस्म के कागज लगाने पड़ते हैं, जो कि उसी सरकारी दफ्तर में पहले से जमा रहते हैं, या उसी सरकारी दफ्तर के जारी किए हुए रहते हैं। किसी विश्वविद्यालय में परीक्षा की अर्जी भरने पर उसी विश्वविद्यालय की पुरानी अंक सूचियों को लगाना पड़ता है जो कि उसी विश्वविद्यालय में जमा हैं, वहीं से बनाई हुई हैं। अब तो तमाम काम का कंप्यूटरीकरण हुए बरसों गुजर चुके हैं, लेकिन अपने चंगुल में फंसे हुए किसी इंसान से अधिक से अधिक कागजात नहीं छोडऩे की सरकारी दफ्तरों की हवस खत्म नहीं होती है।

हिंदुस्तान के दफ्तरों को चाहिए कि अपने हर फार्म में यह देखें कि कौन-कौन सी जानकारी मांगना गैरजरूरी है, कौन-कौन से कागजात मांगना गैरजरूरी है। इसके अलावा अभी केंद्र सरकार जो पहल करते दिख रही है, वैसी पहल भी राज्य सरकारों में और स्थानीय संस्थाओं के दफ्तरों में जरूरी है कि फाइल कम से कम टेबिलों पर जाए, और जल्द से जल्द उसका निपटारा हो। इसके लिए जरूरी हो तो हर फाइल की स्थिति विभागों की वेबसाइट पर चलनी चाहिए ताकि लोगों को घर बैठे पता लग सके और खुद सरकार भी जांच सके कि कौन सी फाइल किस टेबल पर कितने दिन रही। ऐसा नहीं कि सरकार में सारे के सारे लोग खराब रहते हैं, बहुत से ईमानदार, और बहुत से भ्रष्ट लोग, ऐसे रहते हैं जो कि हर शाम ऑफिस छोडऩे के पहले टेबल खाली करके जाते हैं। ऐसे लोग काम को तेजी से निपटाते हैं फिर भले उसके पीछे उनकी कमाई की नीयत हो या ईमानदारी से काम करने की नीयत हो। देर से होने वाले काम से वसूली-उगाही का खतरा तो रहता ही है, देश की उत्पादकता का भी बड़ा नुकसान होता है। लोगों को सरकारी दफ्तरों के बार-बार चक्कर लगाने पड़ते हैं और कुल मिलाकर उन दफ्तरों में काम करवाने वाले दलालों के मार्फत काम करवाना पड़ता है। ऐसा करते हुए बहुत से लोगों के सामने यह दिक्कत भी सामने आती है कि वे जब दफ्तर पहुंचते हैं संबंधित अधिकारी या कर्मचारी छुट्टी पर, या गैरमौजूद मिलते हैं। होना यह चाहिए कि विभागीय वेबसाइट पर हर अधिकारी और कर्मचारी की छुट्टी दिख जानी चाहिए, या वे दौरे पर हैं, या पूरे दिन किसी बैठक में हैं, तो वह भी दिख जाना चाहिए ताकि लोगों का वक्त खराब ना हो। और क्योंकि यह बात मामला सरकारी कामकाज से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसमें लोगों की निजी जिंदगी का कोई राज भी उजागर नहीं हो रहा है। अफसर और कर्मचारी किस-किस दिन दफ्तर में नहीं रहेंगे, यह जानकारी सार्वजनिक रूप से उजागर होनी चाहिए।

हिंदुस्तान में जब से सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ है तबसे फाइलों का रहस्य थोड़ा सा घटा है, फिर भी यह आम लोगों के बस का नहीं रह गया कि वे अपने से संबंधित हर फाइल की कॉपी आरटीआई के तहत हासिल कर सकें, और फिर अपना काम तेजी से करवा सकें। लोग फाइल ले भी लेते हैं, तो भी उनका काम रफ्तार से नहीं हो सकता क्योंकि सरकार का ढांचा काम को रोकने के हिसाब से बनाया गया है, काम को करने के हिसाब से नहीं। सरकारी अमला अपनी जिम्मेदारियों की बात ही नहीं करता, अपने अधिकारों की बात करता है, उन्हें यह मालूम है कि वे कितने दिन तक कागज को रोक सकते हैं, क्या अड़ंगा लगाकर वापस भेज सकते हैं, और कौन-कौन सी दूसरी गैरजरूरी चीजों को मांग सकते हैं।

छत्तीसगढ़ का हमारा तजुर्बा यह कहता है कि यहां जब कभी प्रशासनिक सुधार के बारे में कोई बात तो हुई है, तो वह नारे की तरह अधिक हुई है, लेकिन हकीकत में जमीनी स्तर पर लोगों की परेशानी घटाने की कोई कोशिश नहीं हुई। सरकार को अपने अफसरों से प्रशासनिक सुधार का प्रयोग बंद करना चाहिए। इसके लिए तो आम जनता के बीच के लोगों को लेकर उनसे सलाह लेनी चाहिए कि कौन-कौन सी जानकारी गैरजरूरी है, और कौन-कौन सी प्रक्रिया वक्त बर्बाद करती है। सरकारें अगर यह सोचती हैं कि आम जनता का वक्त बर्बाद करने में कोई हर्ज नहीं है, तो यह भी समझ लेना चाहिए कि इससे राष्ट्रीय उत्पादकता भी प्रभावित होती है और जनता का सरकार में भरोसा तो खत्म होता ही है। यह भी एक बड़ी वजह रहती है कि एक कार्यकाल पूरा करने के बाद कोई-कोई सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव हार जाती है क्योंकि लोगों के मन में उसके कामकाज के खिलाफ एक नाराजगी बैठी रहती है। इसलिए न केवल जनता की तरफ से ऐसी मांग उठनी चाहिए, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी को भी अपने खुद के भले के लिए ऐसी कोशिश करनी चाहिए जिससे अगले चुनाव के वक्त एंटी इनकंबेंसी कही जाने वाली नौबत ना आए, और लोग सरकार से नाराज होकर सत्तारूढ़ पार्टी को पूरी तरह ख़ारिज न कर दें।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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