संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : उघड़े बदन पर मंगलसूत्र, विज्ञापन का विवाद और..
01-Nov-2021 5:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : उघड़े बदन पर मंगलसूत्र, विज्ञापन का विवाद और..

हिंदुस्तान के एक फैशन ब्रांड सब्यसाची ने अभी कुछ मंगलसूत्र बाजार में उतारे तो उनके इश्तहार भी आए और इश्तहारों में एक महिला को मंगलसूत्र पहने हुए और अपने पुरुष साथी की छाती पर सिर टिकाए हुए दिखाया गया है। यहां तक तो ठीक था क्योंकि मंगलसूत्र तो भारतीय शादीशुदा महिला के पुरुष साथी का ही प्रतीक होता है, लेकिन इसमें यह महिला बिना अधिक कपड़ों के, काले रंग की ब्रा में दिख रही है, और यह तस्वीर खासी उत्तेजक लग रही है। ऐसी पोशाक में किसी मॉडल या किसी अभिनेत्री का दिखना कोई अटपटी बात नहीं है, बिकिनी में रोज ही बहुत सी मॉडल दिखती हैं, लेकिन किसी को उसके संदर्भ ही उत्तेजक बनाते हैं। अब इस महिला का संदर्भ क्योंकि एक शादीशुदा हिंदू भारतीय महिला का मंगलसूत्र था, जो कि पति की मंगल कामना करने वाला एक सुहाग या सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे परंपरागत भारतीय हिंदू महिला के संदर्भ में देखा गया, और उस नाते सिर्फ एक काली ब्रा वाला हिस्सा लोगों को अटपटा लगा. मध्य प्रदेश के भाजपा सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तुरंत यह चुनौती दी कि सब्यसाची मुखर्जी 24 घंटे में यह इश्तहार बंद करें वरना मध्य प्रदेश पुलिस उनके खिलाफ जुर्म दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार करने निकलेगी। आज की खबर के मुताबिक सब्यसाची ने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए माफी भी मांग ली है और इस इश्तहार को हटा भी दिया है।

हिंदुस्तान इन दिनों विज्ञापनों को लेकर कई किस्म के विवाद देख रहा है। एक दूसरे ब्रांड की ज्वेलरी के विज्ञापन में हिंदू मुस्लिम को लेकर, या किसी और विज्ञापन में समलैंगिकता को लेकर जरा सी प्रगतिशीलता, उदारता दिखाई गई तो परंपरागत लोगों को वह इतनी बुरी तरह खटकी कि सोशल मीडिया पर उसके बायकाट का अभियान छेड़ गया और कंपनियों को वे विज्ञापन हटाने पड़े। इसमें बड़े-बड़े ब्रांड के विज्ञापन थे, और वह इस तरह कोई बदन दिखाने वाले भी नहीं थे, लेकिन लोगों को न हिंदू-मुस्लिम एकता की बात सुहाई और ना ही समलैंगिकता की बात। विज्ञापन देने वाली कंपनियां चाहतीं तो ऐसे विरोध के सामने डटे रहतीं, लेकिन ऐसा लगता है कि उनको संकीर्णतावादी, परंपरावादी ग्राहकों के खोने का खतरा भी दिख रहा होगा, इसलिए उन्होंने ऐसे विज्ञापन वापस ले लेना बेहतर समझा होगा।

किसी कारोबार के ऐसे किसी एक-दो विज्ञापनों के चलने या न चलने को लेकर हमारी कोई फिक्र नहीं है क्योंकि दुनिया के बहुत से विकसित देशों में या आधुनिक देशों में विज्ञापनों में तरह-तरह का देह प्रदर्शन चलता है, और लोग उसके साथ जीना सीख लेते हैं, वह लोगों को खटकता भी नहीं है। लेकिन जो सबसे उदार देश माने जाते हैं, वहां पर भी राजनीतिक भेदभाव के, रंगभेद के, औरत-मर्द के भेदभाव के विज्ञापनों को बड़ी कड़ाई से रोका जाता है, और कई बार तो ऐसा भी लगता है कि कुछ बड़े ब्रांड भी ऐसे विवादास्पद विज्ञापन जानबूझकर तैयार करवाते हैं, ताकि बाद में उन पर प्रतिबंध लगे, और वे खबरों में बने रहें। इसलिए भारत की संस्कृति और यहां के लोगों का बर्दाश्त देखे बिना यहां कोई विज्ञापन बनाने पर उसका ऐसा नतीजा निकल सकता है। अब यह कानूनी रूप से तो गलत विज्ञापन नहीं था, लेकिन सांस्कृतिक रूप से यह विज्ञापन अटपटा जरूर था, क्योंकि एक शादीशुदा महिला के सुहाग का प्रतीक कहा जाने वाला यह मंगलसूत्र जिस तरह के देह प्रदर्शन के साथ दिखाया जा रहा था, वह मंगलसूत्र की परंपरा से मेल नहीं खा रहा था. कानूनी रूप से यह कोई जुर्म नहीं था लेकिन सांस्कृतिक रूप से लोग इस पर आपत्ति कर सकते थे।

भारत में इन दिनों अलग-अलग प्रदेशों, और देश, की सरकारें अपनी-अपनी सांस्कृतिक सोच, या अपनी धार्मिक प्राथमिकता के मुताबिक अपनी भावनाओं को बहुत जल्दी-जल्दी आहत पा रही हैं, और उन्हें लेकर बड़ी रफ्तार से मामले मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। बहुत से मामले ऐसे हैं जो राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी की पसंद या नापसंद के आधार पर दर्ज होते हैं और फिर अदालतों में उनका कोई भविष्य नहीं रहता है। सब्यसाची के इस शहर के लिए मध्य प्रदेश के गृह मंत्री की सार्वजनिक चेतावनी, चेतावनी तो कम थी, वह एक सत्ता की धमकी अधिक थी, जिसके हाथ में जुर्म दर्ज करना और गिरफ्तार करना है. इसके बाद अदालत से क्या फैसला होता इसकी अधिक फि़क्र सत्तारूढ़ पार्टियों को रहती नहीं है क्योंकि वे अपनी जनता के बीच, अपने वोटरों के बीच, जो संदेश देना चाहती हैं, वह संदेश तो ऐसा केस दर्ज करने और ऐसी गिरफ्तारी से चले ही गया रहता। लेकिन ऐसे विज्ञापनों के विवाद से परे यह भी समझने की जरूरत है कि किसी देश में अगर बरदाश्त को इस तरह घटाया जाएगा, तो वह धीरे-धीरे आम जनता के दिमाग में बैठने लग जाएगा  कि जो बात उसे सांस्कृतिक रूप से ठीक न लगे, उसे वह गैरकानूनी मानकर उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे। और फिर हिंदुस्तान में पुलिस और अदालत का सिलसिला तो लोगों ने देखा हुआ है कि किस तरह बेकसूर लोगों को भी मुकदमे से निकलने में वर्षों लग सकते हैं।

इसलिए जब किसी लोकतंत्र में लोगों का बर्दाश्त सत्ता के उकसावे पर इस तरह घटाया जाए, उसे खत्म किया जाए, तो फिर वह सिलसिला खतरनाक हो चलता है। यह हवा का एक ऐसा झोंका है जो कि इस रवैये को आगे बढ़ाते चलेगा। जब लोगों को लगेगा कि खबरों में आने का यह एक अच्छा जरिया है, अपने वोटरों को रिझाने का यह एक असरदार तरीका है, तो लोग उस काम में लग जाएंगे। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा अपनी पार्टी भाजपा की परंपरागत सोच पर चलते हुए ही इस विज्ञापन का ऐसा विरोध कर रहे थे, और उनसे परे भी बहुत से लोगों को यह विज्ञापन अटपटा लगा होगा, लेकिन कानून इस विज्ञापन को गैरकानूनी नहीं मानेगा। अदालत में इस विरोध का कोई भविष्य नहीं है, इसका भविष्य केवल उस सरकार के हाथ है जिसके हाथ में पुलिस नाम का डंडा है। यह डंडा आगे चलकर किस राज्य में किस पर चलेगा, इसका कोई ठिकाना नहीं है, और लोकतंत्र में ऐसी लाठीबाजी को बढ़ावा देना भी ठीक नहीं है। हर जगह सत्ता को नापसंद कई अलग अलग सर हो सकते हैं जो कि इस डंडे से तोड़े जा सकते हैं।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news