विचार / लेख
-दीपक असीम
बहादुर शाह जफर के शासनकाल में धर्मपरिवर्तन पर रोक थी। बादशाह से इजाज़त लेनी पड़ती थी। एक हिंदू ने मुसलमान होने के लिए अर्जी दी। बादशाह के सामने उसकी पेशी हुई। बादशाह ने पाया कि उक्त शख्स फायदा उठाने के लिए मुस्लिम होना चाहता है। इजाजत नहीं दी गई।
बकरीद पर मुस्लिम धार्मिक धड़े की तरफ से मांग उठी कि हम गाय की कुर्बानी करेंगे। बादशाह ने इसकी अनुमति नहीं दी।
यह सब कपोल कल्पना या वाट्सएप ज्ञान नहीं है। विलियम डेलरिंपल की किताब द लास्ट मुगल में छपे हुए तथ्य हैं। इस किताब को डेलरिंपल ने ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर लिखा है। उन दिनों भी अखबार छपते थे और आज भी अभिलेखागार में वो सुरक्षित हैं जिनसे ये जानकारी ली गई है। साथ ही जानकारी का स्रोत वो खत हैं जो अंग्रेज अफसरों ने अपने परिजनों को यहां से लिखे और वहां से जवाब आए। किताब बहुत ही रोचक है।
1857 की क्रांति में मेरठ से आई हथियारबंद विद्रोही सेना ने अचानक दिल्ली पहुंचकर अंग्रेजों का कत्लेआम किया और बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह घोषित कर दिया। बादशाह की कोई भूमिका इस विद्रोह में नहीं थी। मगर खामियाजा पूरा भुगतना पड़ा। अंग्रेजों ने उनके बेटे का सिर काटकर उन्हें भेजा। अंत में सजा हुई और बर्मा में जेल में ही उनकी मौत हुई। जेल से बचने के लिए जफर ने माफी नहीं मांगी।
अगर मुगल बादशाह हिंदुओं पर अत्याचार किया करते थे, तो विद्रोही सेना ने क्यों जफर को अपना बादशाह बनाया था?
अकबर ने जोधा बाई से विवाह किया मगर जोधा बाई को मुस्लिम नहीं बनाया। उल्टे खुद इस्लाम छोड़ दिया और शाकाहारी भी हो गए। उनके धर्म का नाम दीने इलाही था जो सभी धर्मों की अच्छी अच्छी बातों को जोड़ कर बनाया गया था।
अकबर को सभी धर्मों के लोगों को बुलाकर उनकी परिचर्चा कराने में मजा आता था। शाकाहार की प्रेरणा उसे जैन संतों से मिली।
जैन पर्वों पर तब वधशालाएं बंद रखी जाती थीं और मांसाहार की अनुमति नहीं होती थी, जो आज भी हिंदू जैन पर्वों पर जारी है।
अंधभक्तों को जो इतिहास वाट्सएप पर पढ़ाया जाता है, वो केवल नफरत उपजाने वाला होता है। असल इतिहास बहुत ही ज्यादा दिलचस्प और चौंकाने वाला है।