संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...अब इस घटिया औरत पर लिखने के अलावा चारा नहीं
22-Nov-2021 5:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...अब इस घटिया औरत पर लिखने के अलावा चारा नहीं

कई महीनों से अपने आप को रोकने के बावजूद आज हमें कंगना रनौत पर लिखना पड़ रहा है क्योंकि अब वह एक व्यक्ति से बढक़र एक ऐसा मुद्दा हो गई है जो कि इस देश के लिए एक बड़ा खतरा है। किसी लोकतंत्र के लिए, और उसके भीतर के विविधतावादी समाज के लिए खतरा सिर्फ बंदूक और बम लिए हुए, फौजी वर्दी वाले आतंकी नहीं होते हैं, ऐसे लोग भी खतरा होते हैं जो कि पूरे वक्त समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं, लोगों की सोच में गंदगी घोलते हैं और हर दिन सुबह उठते ही इस देश के इतिहास के गौरव पर थूकते हैं। शायद इस देश के इतिहास के हर महान गौरव पर थूकने के एवज में ही कंगना रनौत को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है, हम उस पर लिखना नहीं चाहते थे, लेकिन अब समाज की जो प्रतिक्रिया उसकी बकवास पर आ रही है उसे देखते हुए भी अगर हम नहीं लिखेंगे, तो यह समाज की अनदेखी होगी। हम अभी तक अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों का कंगना के खिलाफ कहा हुआ अनदेखा कर रहे थे, लेकिन कल की एक खबर है कि दिल्ली की सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने थाने के साइबर प्रकोष्ठ में शिकायत दर्ज कराई है कि कंगना ने सिखों के खिलाफ जानबूझकर अपमान की बातें लिखी हैं और किसानों के प्रदर्शन को खालिस्तानी आंदोलन बतलाया है। गुरुद्वारा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह लिखा है कि सिख समुदाय की भावनाओं को आहत करने के लिए जानबूझकर वह पोस्ट तैयार किया गया और अपराधिक मंशा से उसे साझा किया गया इसलिए इस पर कड़ी कार्यवाही की जाए। कंगना के खिलाफ और भी कई लोगों ने जगह-जगह पुलिस में रिपोर्ट लिखाई है लेकिन इन्हें देखते हुए भी हम अब तक इस महिला को अनदेखा कर रहे थे, लेकिन जब गुरुद्वारा कमेटी ने सिख किसानों वाले आंदोलन को कंगना द्वारा खालिस्तानी करार देने पर रिपोर्ट की है, तो इसे अनदेखा करने का हमारा कोई हक नहीं है।

कंगना को पिछले एक-दो बरस से जिस तरह से बढ़ावा मिल रहा था और जिस तरह से उसकी बकवास बढ़ती चली जा रही थी उसका अंत शायद यहीं पहुंचकर होना था कि उसके खिलाफ कोई अदालत कोई सजा सुनाए। लेकिन हिंदुस्तान की अदालतों का हाल देखते हुए यह आसान और जल्द होने वाला काम नहीं लग रहा है, इसलिए इस महिला की फैलाई जा रही नफरत के खिलाफ राष्ट्रपति को लिखी गई चि_ी बहुत ही जायज है कि इससे पद्मश्री वापस ली जाए। देश का राष्ट्रीय सम्मान इसलिए नहीं होता कि  आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ झोंक देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के मुंह पर यह औरत रोज सुबह थूके और आज़ादी को अंग्रेजों से मिली हुई भीख बताए, और देश की असली आजादी 2014 (में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने) को बताए। हैरानी की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद होकर इस औरत की कही हुई इस बहुत ही घटिया और ओछी बात के खिलाफ कुछ नहीं कहा। प्रधानमंत्री को चाहिए था कि वे देश की आजादी के खिलाफ कही जा रही इन बातों की सांस में ही उनके प्रधानमंत्री बनने को देश की आजादी करार देने की बात को नाजायज कहते। उनकी चुप्पी उनके लिए नुकसानदेह है क्योंकि देश की आजादी कब मिली है यह सबको मालूम है, और एक नफरतजीवी हिंसक औरत के बयानों से देश और दुनिया के इतिहास का वह दौर नहीं बदलता। ऐसी गंदी बातें कहने वाली औरत जिसकी तारीफ करती है उसी का नुकसान करती है। प्रधानमंत्री के आसपास के कुछ लोगों को तो इस बात को समझना चाहिए और प्रधानमंत्री को समझाना चाहिए कि ऐसे प्रशंसक और ऐसे भक्त उनका नुकसान छोड़ और कुछ नहीं कर रहे हैं। देश के देश के इतिहास में यह अच्छी तरह दजऱ् हो रहा है कि ऐसी गंदी बातों को खबरों की सुर्खियों में देखते हुए भी प्रधानमंत्री चुप रहे। नरेंद्र मोदी खुद भी 2014 में देश की आजादी की बात नहीं सोचते होंगे, और उनके नाम को जोडक़र गांधी-नेहरू सहित लाखों स्वाधीनता संग्रामियों के त्याग और बलिदान पर थूकने वाली इस महिला से अपने बारे में ऐसी तारीफ सुनकर प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया क्या होगी यह तो नहीं मालूम, लेकिन ताजा इतिहास इसे अच्छी तरह दर्ज करने वाला है।

सोशल मीडिया का एक सबसे बड़ा प्लेटफार्म ट्विटर पहले ही औरत की बकवास को ब्लॉक कर चुका है, उसके अकाउंट को ही ब्लॉक कर चुका है। अब हैरानी इस बात की है कि देश की कोई अदालत खुद होकर आजादी की लड़ाई में जान गंवाने वाले लोगों की इज्जत को जनहित और देशहित मानकर कोई सुनवाई शुरू क्यों नहीं कर रही है? जिन लोगों ने पुलिस में और राष्ट्रपति को यह लिखा है कि कंगना की बात देशद्रोह है, उन्होंने भी कुछ गलत नहीं लिखा है। अगर कोई गांधी के नाम पर इस तरह बार-बार थूके और बार-बार गांधी के हत्यारों का गुणगान करे, तो उसे देशद्रोही ही मानना चाहिए। यह सिलसिला पता नहीं कब तक चलेगा क्योंकि लोकतंत्र एक बहुत लचीली व्यवस्था रहती है जो इस किस्म के बहुत से गंदे लोगों को उनकी पूरी जिंदगी बर्दाश्त करती है। लेकिन इस औरत के खिलाफ एक जनमत तैयार होना चाहिए और इसकी फैलाई जा रही गंदगी पर लोगों को पुलिस में भी जाना चाहिए, अदालत में भी जाना चाहिए, और लोकतांत्रिक कानूनों से इसका मुंह बंद करवाना चाहिए। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिम्मेदारियों के साथ ही मिलती है, इसलिए नहीं मिलती है कि ऐसी घटिया औरत नफरत और गंदगी को फैलाए और देश के गौरव पर बार-बार थूके, देश के लिए सबसे अधिक क़ुरबानी देने वाले सिखों को खालिस्तानी कहे। इसकी जगह जेल ही हो सकती है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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