विचार / लेख
-सनियारा खान
चाय बेचने वाले लोग भी अलग-अलग तरह के होते हैं। वैसे तो हमारे प्रधानमंत्रीजी भी चाय बेच-बेचकर प्रधानमंत्री बने। खैर, अभी हम प्रधानमंत्रीजी की नहीं, कोलकाता की टुकटुकी दास की बात करेंगे।
टुकटुकी के पिता एक वैन ड्राईवर है और मां एक छोटी सी किराना दुकान चलाती है। टुकटुकी के अति साधारण माता-पिता एक ही सपना देखते थे कि उनकी बेटी खूब मेहनत कर अपनी पढ़ाई पूरी करे और कुछ अच्छा काम करे। वैसे तो वे लोग चाहते थे कि उनकी बेटी एक शिक्षिका बने। टुकटुकी आखिर अंग्रेजी साहित्य में एमए जो थी। लेकिन उसे कोई नौकरी नहीं मिली। फिर इंटरनेट पर उसे कई नामी चायवालों के बारे में पता चला। मध्यप्रदेश का प्रफुल्ल किसान का बेटा था। बार-बार कॉमन एडमिशन टेस्ट देकर भी असफल होने के बाद उसने चाय की दुकान का व्यवसाय करने का सोचा। आज पूरे देश में प्रफुल्लजी के अनेकों आउटलेट्स हैं। ये सब पढक़र हिम्मत करके टुकटुकी ने भी हावड़ा स्टेशन में एक चाय की दुकान खोल ली। उस समय उसके माता-पिता को ये सोचकर बहुत बुरा लग रहा था कि इतना पढ़-लिखकर बेटी एक चाय की दुकान चलाएगी। उन्हें समझा-बुझाकर इसी साल की एक नवंबर को चाय दुकान खोलने वाली टुकटुकी ने पहले दिन सभी को पैसे लिए बिना ही चाय पिलाई। उसने अपनी चाय दुकान का नाम रखा-‘एमए इंग्लिश चाय वाली।’
यात्री और अन्य लोग भी इस नाम से आकर्षित होकर खींचे चले आते थे।
आज टुकटुकी दास एक ऐसा नाम बन गया, जो समाज को एक यह संदेश देता है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। अब उसके माता-पिता भी उसे लेकर गौरव महसूस करते हैं। धीरे-धीरे कामयाब हो रही टुकटुकी को अब कई मंत्री और दूसरे लोग भी मदद करना चाहते हैं, जिसे उसने विनम्रता से ठुकरा दिया। अपने बलबूते पर ही वह आगे बढऩा चाहती है। टुकटुकी दास का यू-ट्यूब पर अपना चैनल भी है। अगर उससे कोई सवाल करे कि उसे कहां से प्रोत्साहन मिला तो एमबीए चायवाला प्रफुल्ल बिल्लोर के अलावा भी बीटेक चाय चलाने वाले आनंद और मुहम्मद शफी, अनुभव दुबे की चाय सुट्टा और फिर ऑस्ट्रेलिया की चायवाली उप्पमा विरदी के बारे में भी हम बहुत कुछ जान पाएंगे। मैंने इसीलिए शुरू में ही कहा था कि चाय बेचने वाले लोग भी कई तरह के होते हैं। ये और बात है कि आप किससे प्रेरणा लेना चाहते है!